आज की तेज रफ्तार जिंदगी में हर कोई यही कहता मिल जाता है कि क्या करें मेरे पास तो समय ही नहीं है। अगर माता-पिता दोनों कामकाजी हैं तब तो यह समस्या और अधिक बढ़ जाती है। कारण, उनके पास अपने बच्चों के लिए समय ही नहीं होता है। बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे के समुचित विकास के लिए थोड़ा सा वक्त अवश्य निकालें।
बच्चों का सही मार्गदर्शन करें और उसे ज्ञानवद्र्धक पुस्तकें, खिलौने आदि देकर समय का सदुपयोग करना सिखाएं।बच्चा यदि पढ़ नहीं रहा है तो उससे यह न कहें कि तुम पढ़ोगे नहीं तो टीचर डांटेंगी या स्कूल में सजा मिलेगी। इसके बजाय यह कहें कि तुम पढ़ना शुरू करो, मैं तुम्हारी सहायता करूंगी।बाजार में यदि बच्चा किसी खिलौने के लिए मचल जाए तो उसे उसी वक्त वह खिलौना खरीदकर न दें। इससे उसके मन में यह संदेश जाएगा कि हठ करने से हमारी जरूरत पूरी हो जाएगी। बच्चे को समझाएं कि यह खिलौना मैं तुम्हें बाद में दिला दूंगी।अपने बच्चे की किसी अन्य बच्चे से तुलना न करें। चाहे वो घर का कोई बच्चा हो या बाहर का।बचपन से ही बच्चे को बचत की आदत सिखाएं। इसके लिए उसे एक सुंदर सा गुल्लक खरीदकर दें और उसमें पैसे डालने के लिए प्रेरित करें। इससे बच्चे में स्वत: बचत की आदत डेवलप होगी।अपने बच्चे के लिए स्वयं आदर्श बनें। बच्चे से वैसा ही व्यवहार करें जैसे व्यवहार की आप उससे अपेक्षा करती हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है बच्चे घर-परिवार से ही सीखते हैं।बच्चे के अनापेक्षित व्यवहार को अनदेखा करें और उसके रोने, चिल्लाने और बेकार की जिद पर ध्यान न दें।बच्चे को अपने खिलौने और अन्य वस्तुएं दूसरे बच्चों के साथ बांटना सिखाएं। इससे उसमें शेयरिंग और परोपकार की भावना पनपेगी।समय-समय पर घर के कार्यों में बच्चे की सहायता लें और उसे उसकी उम्र के अनुसार जिम्मेदारी सौंपें।बच्चे को अपने से बड़ों का आदर करना और उनकी सहायता करना सिखाएं।
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