ठाकुर साहब का कंफ्यूजन से उड़ा फ्यूज... पढ़ें सत्‍ता के गलियारे की खरी-खरी

Political Gossip and Rumors in Jharkhand Politics. लंबे लोगों का ऊपर का माला कुछ खाली बताया जाता है। कंफ्यूजन की चुनौती भारी पड़ गई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 15 Jun 2020 02:16 PM (IST) Updated:Mon, 15 Jun 2020 02:16 PM (IST)
ठाकुर साहब का कंफ्यूजन से उड़ा फ्यूज... पढ़ें सत्‍ता के गलियारे की खरी-खरी
ठाकुर साहब का कंफ्यूजन से उड़ा फ्यूज... पढ़ें सत्‍ता के गलियारे की खरी-खरी

रांची, आनंद मिश्र। पटकथा-संवाद किसी ने लिखे और कॉपी राइट कोई ले गया। दरअसल, ठाकुर ने केंद्रीय पात्र ही गलत चुन लिया था। अब उड़ा हुआ है फ्यूज। वैसे भी रायबहादुर की महिमा सब जानते हैं। जब भी चलते हैं ढाई घर ही चलते हैं। चाल ऐसी की सामने वाला अपने ही प्यादों से पिट जाए। यकीन न हो तो पूरब वालों से पूछ लें, जो जब-जब टीस उठती है पुरवैया राग अलापने लगते हैं। तो अपने ठाकुर की बिसात ही क्या। वैसे भी लंबे लोगों का ऊपर का माला कुछ खाली बताया जाता है। भारी पड़ गई कंफ्यूजन की चुनौती। 'क' गायब हो कानपुर निकल लिया, फ्यूज इस कदर उड़ा है कि तारों के सिरे तक ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। अपने-पराए सबकी नजर अलग टेढ़ी हो गई है। अब तो हर ओर से आवाज आ रही है कि 'यह हाथ हमें दे दे ठाकुर'।

बादलों की जुगलबंदी

झारखंड में बादलों की चल रही जुगलबंदी में मानसूनी बादलों ने बाजी मार ली। सरकारी बादल गजरते रह गए और मानसूनी बादल बरसने भी लगे। इन दोनों की जुगलबंदी में किसान बीज के लिए तरसते ही रह गए। दरअसल सारी गलती मानसून की है। झारखंडी बादल तो सिस्टम से ही चल रहे थे। सरकारी सिस्टम लेट-लतीफी से ही चलता है। पुरानी परंपराएं तोड़ी भी नहीं जा सकती। टेंडर में तो कतई नहीं। धोखा तो मानसून ने दिया। केरल से चला और 15 दिन में टपक पड़ा। लॉक डाउन का फेवर मिला और बगैर जाम में फंसे निकल आया। केरल से कुछ दिन पहले ट्रेनें भी आई थीं, मजदूरों के साथ मानसून का पैगाम साथ लाई थी, लेकिन कर दी अनदेखी। अब झेलो। वैसे भी हाथ वाले पनौती साथ लेकर चलते हैं। इनके तो हाथ हवन करते भी जलते हैं। सिस्टम से चले तो मुसीबत, न चले तो मुसीबत।

रियल से टूटा नाता

पुरानी पार्टी की नई विचारधारा से अब तक समन्वय बना हो या न हो लेकिन एक बात तो इन्हेंं पता चल गई है कि यहां बात तो हाईटेक ही करनी होगी। तो कर दी है डिमांड सरकारी स्कूलों के बच्चों को स्मार्ट फोन देने की वो भी डेटा के साथ। डिमांड-सप्लाई का सिरा मिले न मिले, इनकी बला से। सब वर्चुअल का असर है, कुछ इस कदर रम गए हैं कि रियल से नाता ही टूट गया है, इन दिनों। रोजी-रोटी से शुरू हुए थे, स्मार्ट फोन पर भी थमते नहीं दिख रहे हैं। बात पूरी संजीदगी से करते हैं लेकिन यकीन कोई नहीं करता। इधर, तीर-कमान वाले जब देखो चुटकी काट लेते हैं। जब रिदम में आते हैं इनकी पुरानी फाइल खोल कर रख देते हैं। अखबार की पुरानी कतरनें कबूतर को थमा देते हैं। कुतुबमीनार और हरिद्वार का दीदार खुद-ब-खुद हो जाता है।

लौट के वापस आए

कहावत है लौट के ... वापस आए। शालीन भाषा में कहें तो सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। सो मूल एजेंडे पर जनाब वापस आ गए हैं। वक्त की नजाकत भी कुछ ऐसा ही संदेश दे रही थी। अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा सबके बस की बात नहीं, इसके सबक होते ही निराले हैं। फीस माफी में ज्यादा उलझते तो खुद की फीस माफ हो जाती। वैसे भी कहते हैं जो लेगा टेंशन, वो पाएगा पेंशन। सो टेंशन छोड़ निकल लिए पतली गली से और अलापने लगे पुराना स्थानीयता का राग। इस पुराने राग में दम भी बहुत है। सत्ता के साथ कुर्सी का सुख इसी के बूते भोग रहे हैं। वैसे भी राजनीति में तो पाला बदल चलता है, इन्होंने तो सिर्फ एजेंडा ही बदला है। अब देखने की बात होगी कि इस एजेंडे से इनका कितना फायदा होता है।

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