झारखंड में बच्चों के पोषाहार पर फिर संकट

समाज कल्याण निदेशालय ने महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग को इस आशय का त्राहिमाम संदेश भेजा है।

By Edited By: Publish:Sat, 23 Jun 2018 11:36 AM (IST) Updated:Sat, 23 Jun 2018 11:36 AM (IST)
झारखंड में बच्चों के पोषाहार पर फिर संकट
झारखंड में बच्चों के पोषाहार पर फिर संकट

रांची, विनोद श्रीवास्तव : बच्चों, गर्भवती तथा धातृ महिलाओं के लिए झारखंड में संचालित पूरक पोषाहार योजना पर एक बार फिर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। पोषाहार की आपूर्तिकर्ता कंपनियों की एक्सटेंशन अवधि मार्च में ही समाप्त हो चुकी है। मार्च तक हुई आपूर्ति से बहुत मशक्कत से मई तक टेक होम राशन (टीएचआर) तथा रेडी टू ईट (आरटीई) योजना के तहत पोषाहार सामग्री का वितरण किया जा सका है। कुछ आंगनबाड़ी केंद्रों में अप्रैल के बाद से ही पोषाहार का संकट उत्पन्न हो गया है।

इधर, अगले नौ महीने तक पोषाहार की आपूर्ति के लिए टेंडर प्रक्रियाधीन है। टेंडर की प्रक्रिया फाइनल होने तथा नव चयनित आपूर्तिकर्ता द्वारा पोषाहार की आपूर्ति अगस्त से पहले संभव नहीं हो सकेगी। समाज कल्याण निदेशालय ने महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग को इस आशय का त्राहिमाम संदेश भेजा है। निदेशालय ने नियमित आपूर्ति शुरू होने से पूर्व पोषाहार वितरण कैसे सुनिश्चित रखा जाए, इसके लिए महिला, बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग से दिशानिर्देश मांगा है। इससे पूर्व निदेशालय ने 21 फरवरी 2018 को भी पत्र लिखकर विभाग से दिशानिर्देश मांगा था। निदेशालय ने एक बार फिर 12 जून 2018 को पत्र लिखकर विभाग को इस ऊहापोह से अवगत कराया है।

बताते चलें कि आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से सात माह से तीन वर्ष तक केबच्चों, गर्भवती और धातृ महिलाओं केबीच इस कार्यक्रम के तहत हर महीने चार-चार पैकेट पोषाहार बांटे जा रहे हैं। अलग-अलग पोषक तत्वों से निर्मित पोषाहार बच्चों को लाल, गर्भवती महिलाओं को हरा और धातृ माताओं को गुलाबी रंग के पैकेट में उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इससे इतर तीन से छह साल तक के बच्चों को खिचड़ी देने का प्रावधान है। पोषाहार के टेंडर में लेटलतीफी की मूल वजह सुप्रीम कोर्ट की उस नसीहत को दी जा रही है, जिसमें उसने पोषाहार की आपूर्ति महिला स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सुनिश्चित कराने को कहा था। अलबत्ता यह सिर्फ नसीहत थी न कि बाध्यता। इससे इतर सरकार ने इस नसीहत को आजमाने की कड़ी में ग्रामीण विकास विभाग के साथ बैठकें की, परंतु पोषाहार निर्माण से लेकर आपूर्ति तक में महिला एसएचजी की सांगठनिक ढ़ांचा और आर्थिक स्थिति आड़े आने लगी। सूत्रों के अनुसार यूनिसेफ के स्वास्थ्य मानकों तथा स्वच्छता के पैमाने पर एसएचजी स्तर पर न तो पोषाहार की पैकेजिंग संभव थी और न ही वितरण।

आपूर्तिकर्ताओं को अबतक तीन बार एक्सटेंशन दे चुकी है सरकार पोषाहार आपूर्ति के लिए टेंडर में लेटलतीफी की यह बानगी भर है कि आपूर्तिकर्ताओं को अब तीन बार तीन-तीन महीने का एक्सटेंशन दिया जा चुका है। आपूर्ति में लगी तीन कंपनियों का करार पिछले साल जून में ही खत्म हो गया था, जिसे पहली बार बढ़ाकर सितंबर, दूसरी बार दिसंबर और तीसरी बार मार्च तक किया गया। इस नौ महीने की अवधि में विभाग नए सिरे से इस कार्य के लिए टेंडर नहीं करा सका।

सरकार पर तीन कंपनियों के तीन अरब से अधिक बकाया और तो और झारखंड में पोषाहार की आपूर्ति करने वाली तीन कंपनियों कोटा दाल मिल, इंटर लिंक फूड्स तथा आदित्य फ्लोर मिल्स का सरकार पर 335 करोड़ 29 लाख 44 हजार रुपये बकाया है। यह बकाया पिछले तीन वित्तीय वर्षो से चला आ रहा है। केंद्रांश व राज्यांश मद से पूरक पोषाहार कार्यक्रम के तहत संचालित इस योजना से बहरहाल 34,85,416 लाभुक जुड़ें हैं। इनमें 27,02,944 बच्चे, 20,216 अति कुपोषित बच्चे व 7,62,256 गर्भवती एवं धातृ महिलाएं शामिल हैं। बार-बार पत्राचार के बावजूद केंद्रांश मद में 167 करोड़ 64 लाख 32 हजार रुपये की राशि जारी नहीं होने से सरकार ऊहापोह में हैं।

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