¨हदू धर्म किसी मठ-मंदिर-पुस्तक से निर्धारित नहीं होता

शनिवार को होटल बीएनआर में कलम प्रोग्राम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक पवन कुमार ने अपनी पुस्तक की बारे में विस्तार से बताया। उनसे सवाल जवाब कि डॉ अजीत ने।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 16 Sep 2018 09:01 AM (IST) Updated:Sun, 16 Sep 2018 09:01 AM (IST)
¨हदू धर्म किसी मठ-मंदिर-पुस्तक से निर्धारित नहीं होता
¨हदू धर्म किसी मठ-मंदिर-पुस्तक से निर्धारित नहीं होता

ब्रह्मा सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापर:..। यही कहा था आदि शंकराचार्य ने आज से 12 सौ साल पहले। यानी ब्रह्मा सत्य है और जगत मिथ्या है। सांप और रस्सी का उदाहरण देते हुए साहित्य और कूटनीति को एक साथ साधने वाले पवन कुमार वर्मा ने शंकरचार्य के अद्वैतावाद को समझाया। पूर्व राज्यसभा सांसद ने आदि शंकराचार्य के उन पहलुओं का उद्घाटन किया, जिसको आज देश को जरूरत है। परा-अपरा से होते हुए ईश्वर और ब्रह्मा के अंतर्सबंधों के संग-साथ शिव और शक्ति के लय-विलय और श्रीचक्र की ज्यामितीय आभा पर प्रकाश डाला। दैनिक जागरण, नवरस स्कूल ऑफ परफार्मिग आर्ट्स, श्री सीमेंट और प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से आयोजित 'कलम' के इस पांचवें पड़ाव का आयोजन शनिवार को चाणक्या बीएनआर में किया गया था। पवन कुमार वर्मा की नई पुस्तक 'आदि शकराचार्य-¨हदूधर्म के महानतम विचारक' पर चर्चा हुई। चर्चा की डॉ. अजीत प्रधान ने। दैनिक जागरण कार्यक्रम का मीडिया पार्टनर था। डेढ़ घंटे तक चली इस ज्ञान की यात्रा में समय शून्य में स्थित हो गया था। श्रोता ध्यानस्थ थे। संचालन अन्विता प्रधान ने किया। लेखक को सम्मानित दैनिक जागरण के वरीय महाप्रबंधक मनोज गुप्ता ने किया।

--------------------

जागरण संवाददाता, रांची

आदि शंकराचार्य शास्त्रार्थ करते थे। वे दूसरे की बात सुनते थे। इसके बाद खंडन-मंडन का दौर चलता था। तब, लाठी से अपनी बात मनवाने की परंपरा नहीं थी। वह संवाद का समय था और आज देश को संवाद की जरूरत है। भारतीय परंपरा यही है। साहित्य, सौंदर्यशास्त्र और संस्कृति के गहन अध्येता और लेखक पवन कुमार वर्मा ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हर ¨हदू को जिज्ञासु होने की जरूरत है और खुद थोड़ा अध्ययन करने की। जरा सी जिज्ञासा से हम अंधकार से ज्ञान के प्रकाश में प्रवेश कर सकते हैं। तभी हम ¨हदू धर्म को समझ सकते हैं, क्योंकि ¨हदू धर्म किसी मठ, मंदिर या किसी पुस्तक से निर्धारित नहीं होता है। यह आदि है। अनंत है। सनातन है। आज जो ¨हदू धर्म के रक्षक का दावा करते हैं, उन्हें ¨हदू धर्म के बारे में कुछ नहीं पता। ¨हदू धर्म एक जीवन शैली है, इसके लिए हमें पढ़ना चाहिए। हमारे पास उनके लिए काट होनी चाहिए। हमें अपने पर्व-त्योहारों के प्रतीकों का ज्ञान होना चाहिए। प्रतीकात्मकता के मायने की समझ हमारे अंदर होनी चाहिए, तभी हम इनका जवाब दे सकते हैं।

आदि शंकराचार्य समाज सुधारक नहीं, संत थे

पवन ने जोर देकर कहा कि शंकराचार्य समाज सुधारक नहीं थे। पर, वह संत थे। श्रुतिवादक थे। ज्ञानमार्गी थे। उन्होंने बुद्ध और ¨हदू धर्म के बारे में कहा कि बुद्ध का बीज दुख है। वह दुख के निवारण की बात करता है। ¨हदू धर्म का बीज आनंद है और यह परमानंद की बात करता है। शंकराचार्य ने उपनिषद की परंपरा को ही आगे बढ़ाया। जो वहां संकेत में थे, उसका विस्तार और व्याख्या शंकराचार्य ने की। इस मूल को समझना चाहिए। उन्होंने केरल से कश्मीर तक की यात्रा और उसके पड़ावों और वैचारिक आंदोलनों पर भी बात की। कश्मीर के शैव दर्शन से लेकर फिर मिथिला के मंडन मिश्र के मीमांसा दर्शन के कर्मकांड पर। अद्भुत और सधे अंदाज में मां से माया और अद्वैतवाद का भक्ति की गंगा में गोते लगाने की दार्शनिक यात्रा भी कराई। अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद और शुद्ध विशिष्टाद्वैत तक।

गालिब पर लिखी पहली किताब

पवन ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि अब तक 22 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। गालिब पर पहली किताब थी। इसे लिखने के बाद देश के प्रकाशकों ने इसे छापने में कोई रुचि नहीं दिखाई। बाद में खुशवंत सिंह की पहल पर पेंग्विन ने इसे छापा तो फिर इसके संस्करण पर संस्करण होते गए। इसके बाद तो किताब लिखना आसान हो जाता है।

चारों धामों की यात्रा की

पवन कुमार वर्मा ने कहा कि 12 सौ साल पहले शंकराचार्य ने पैदल की देश को नाप दिया था। इस पुस्तक को लिखने के लिए भी शंकराचार्य के जन्म स्थान से यात्रा शुरू की। चारों धामों की यात्रा की। कई शंकराचार्य से मिला। श्रृंगेरी के शंकरचार्य से भी मिला। उनकी सादगी और काम से प्रभावित भी हुआ। शंकराचार्य के जीवन के कई प्रसंगों पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि ईश्वर और ब्रह्मा अलग नहीं हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि मंदिर में प्रवेश को लेकर कोई दलितों के प्रवेश को अनुचित ठहराता है तो वह आदि शंकराचार्य का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता।

लेखक का परिचय

पवन कुमार वर्मा लेखक, कूटनीतिज्ञ और राजनेता हैं। राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के सलाहकार रहे। अभी जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं महासचिव भी हैं। एक दर्जन से भी ज्यादा बेस्टसेलिंग किताबें लिख चुके हैं। गालिब द मैन, द टाइम्स, द ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास, द बुक ऑफ कृष्ण, बीइंग इंडियन, बिकमिंग इंडियन और चाणक्याज न्यू मैनिफैस्टो मुख्य रूप से शामिल हैं। कई देशों में राजदूत भी रहे। नेहरु सेंटर के निदेशक, विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता और भारत के राष्ट्रपति के प्रेस सचिव रहे हैं। पवन कुमार वर्मा को कूटनीति, साहित्य, संस्कृति और सौंदर्यशास्त्र के क्षेत्रों में योगदान के लिए 2005 में इंडियानापॉलिस यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा। इनकी रही उपस्थिति

पीके झा, दुर्गेश साहु, डॉ माया प्रसाद, माया वर्मा, सरोज भगत, रेणु मिश्रा, किरण साहु, रश्मि शर्मा, जया साहु, सु¨रदर कौर नीलम, ऋषि पांडेय, वीणा श्रीवास्तव, राजेंद्र तिवारी, एनसी झा, एस कुमार, सारिका भूषण, आशुतोष, डा. अभिषेक कुमार आदि।

chat bot
आपका साथी