लोगों को खींचते हैं धर्मेद्र के गोलगप्पे

शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसे गोलगप्पे पसंद नहीं। खासकर इलाहाबादी गोलगप्पे की अपनी बात है। धर्मेद्र के गोलगप्पे को लोग खूब पसंद करते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 Feb 2020 06:52 PM (IST) Updated:Fri, 07 Feb 2020 06:52 PM (IST)
लोगों को खींचते हैं धर्मेद्र के गोलगप्पे
लोगों को खींचते हैं धर्मेद्र के गोलगप्पे

जागरण संवाददाता, रांची : शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसे गोलगप्पे पसंद नहीं। खासकर इलाहाबादी गोलगप्पे की बात ही कुछ और है। प्रयाग के धर्मेद्र कुमार गुप्ता 15 सालों से रांची में गोलगप्पा बेच रहे हैं। वो बताते हैं कि उनके घर के कुछ लोग सालों पहले कमाने के लिए कोलकाता गए। वहां भी उन्होंने गोलगप्पे का काम शुरू किया। बाद में कुछ बंगाली परिवार रांची आ रहे थे। उनके साथ वो भी यही आ गए। धर्मेद्र के गोलगप्पे खाने के लिए शाम में काफी भीड़ होती है। कई बार लोगों को आधे घंटे तक इंतजार करना पड़ता है। धर्मेद्र बताते हैं कि वो बहुत पढ़े लिखे नहीं हैं मगर सालों से गोलगप्पे का गणित अच्छे से समझते हैं। हर मौसम में पुदीने के पानी का मिलता है गोलगप्पा

धर्मेद्र ने कहा कि उनके पास हर मौसम में पुदीने के पानी का गोलगप्पा मिलता है। इसके साथ ही खंट्टा मिठा-पानी उनकी खासियत है। हर किसी की टेस्ट अलग होती है। किसी को मिर्च पसंद है, तो किसी को खंट्टा पानी। ऐसे हर ग्राहक से पूछकर उसके हिसाब से गोलगप्पा बनाया जाता है। इससे लोगों को उनके मनपसंद का टेस्ट मिल जाता है। धर्मेद्र बतातें हैं कि गोलगप्पा के कई स्टॉल आसपास में हैं। मगर उनके यहां सालों भर ग्राहकों के पंसद के हिसाब से एक जैसा टेस्ट दिया जाता है। ये हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है। ग्राहक जो सोचकर आते हैं अगर वो नहीं मिलेगा तो दूसरी बार वो अपने टेस्ट की तलाश में किसी और दूकान का रुख कर लेते हैं। मगर हमने अपने ग्राहकों को टेस्ट और व्यवहार से अपने में बांधकर रखा है। शुद्धता का रखा जाता है ध्यान

धमेंद्र बताते है कि खाने के मामले में शुद्धता नहीं हो तो उसका कभी स्वाद नहीं आ सकता है। इसलिए वो अपने घर पर गोलगप्पा बनाते हैं। इसके साथ ही इसका मसाला भी खुद ही तैयार करते हैं। अपर बाजार से थोक में खड़े मसाले खरीदते हैं। इसके बाद उसकी सफाई करके घर में धूप में सुखाते हैं। इसके बाद पास के मिल में उसे पिसने के लिए देते हैं। गोलगप्पे का पानी बनाने में सफाई और शुद्धता का खास ध्यान रखा जाता है। धमेंद्र का परिवार प्रयागराज से कुछ किलोमीटर दूर एक गांव में रहता है। वो बताते हैं मेन रोड में सैकड़ों गोलगप्पे वाले हैं। उसमें ज्यादातर लोग प्रयागराज से आये हैं। ऐसे में इस शहर में कभी अकेलापन महसूस नहीं होता है। अगर कभी घर की याद आ भी जाती है तो रांची के ग्राहक उनके परिवार की कमी पूरा कर देते हैं। कई ग्राहक ऐसे हैं जो दसों साल से उनकी दुकान पर गोलगप्पा खाने के लिए आते हैं। गोलगप्पे के स्वाद और शुद्धता की तरह एक अटूट रिश्ता उनसे भी जुड़ सा गया है।

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