World Athletics Day 2020 : लड़खड़ाती जिंदगी को संभाल ब्लेड रनर बन गए सुशांत, हादसे में खो दिया था बायां पैर

World Athletics Day. सुशांत के जज्बे को सलाम कीजिए। एक सड़क हादसे में बायां पैर खो देने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने हौसले की बदौलत ट्रैक के बादशाह बन गए।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Thu, 07 May 2020 12:33 PM (IST) Updated:Thu, 07 May 2020 12:33 PM (IST)
World Athletics Day 2020 : लड़खड़ाती जिंदगी को संभाल ब्लेड रनर बन गए सुशांत, हादसे में खो दिया था बायां पैर
World Athletics Day 2020 : लड़खड़ाती जिंदगी को संभाल ब्लेड रनर बन गए सुशांत, हादसे में खो दिया था बायां पैर

जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। World Athletics Day 2020 आंधियों को जिद है जहां बिजलियां गिराने की, मुझे भी जिद है, वहीं आशियां बसाने की, हिम्मत और हौसले बुलंद हैं, खड़ा हूं अभी गिरा नही हूं, अभी जंग बाकी है, और मैं हारा भी नहीं हूं। यह कहना है ब्लेड रनर सुशांत सोना का।

सुशांत के जज्बे को सलाम कीजिए। एक सड़क हादसे में बायां पैर खो देने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने हौसले की बदौलत ट्रैक के बादशाह बन गए। वह झारखंड के पहले ब्लेड रनर हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी। चेन्नई के सत्यभामा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से एमबीए कर चुके सुशांत आजकल बैंकिंग की तैयारी कर रहे हैं। जमशेदपुर में ब्लेड रनर नाम से चर्चित सुशांत आज देश में आयोजित मैराथन में हिस्सा लेते हैं। अगले ही महीने वह पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया द्वारा मैसूर में आयोजित होने वाले नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेने वाले थे, पर लॉकडाउन के कारण यह रद करना पड़ा।

एंडोलाइट कंपनी के पूर्वी क्षेत्र के ब्रांड एंबेसडर

उन्होंने 2018 में चेन्नई में आयोजित चेन्नई 21 किलोमीटर की हाफ मैराथन एक घंटे 45 मिनट में पूरा कर सभी को चौंका दिया था। सुशांत कहते हैं, जब मैंने कृत्रिम पैर से दौड़ना शुरू किया तो स्वजन ने काफी मना किया। लेकिन मैंने अपनी जिद के आगे किसी की नहीं मानी। कृत्रिम पैर से दर्द होता था। ऐसे में कार्बन फाइबर से बने ब्लेड की जरूरत है। इस ब्लेड की कीमत तीन लाख है। लेकिन, उनके पास इतने पैसे नहीं थे। तब अमेरिकी कंपनी एंडोलाइट का सहारा मिला। आज वह एंडोलाइट कंपनी के पूर्वी क्षेत्र के ब्रांड एंबेसडर हैं।

इंसान दिव्यांग दिमाग से होता है, शरीर से नहीं

सुशांत आज सड़क हादसों में अपना अंग गवां चुके अपने जैसे युवाओं को जीने के लिए प्रेरित करते हैं। वह कहते हैं, इंसान दिव्यांग दिमाग से होता है, शरीर से नहीं। अगर आप खुद पर विश्वास रखें तो जिंदगी की हर चुनौतियों का सामना कर सकते हैं। टेल्को स्थित रिवर व्यू के सुशांत सोना 28 सितंबर 2014 का काला दिन आज भी नहीं भूल पाए हैं। ओवरटेक करने के चक्कर में पानी टैंकर की चपेट में आ गए। पैर टैंकर के चक्के के नीचे चला गया। घर मात्र 50 मीटर दूर यह हादसा हुआ। इस हालत में भी सुशांत ने खुद घर फोन किया। टाटा मोटर्स अस्पताल ले जाए गए। 20 मिनट में उनकी जिंदगी ही बदल गई। डॉक्टरों ने तुरंत पैर काटने का फैसला किया। 22 दिन अस्पताल में रहे। ऐसा भी समय आया जब खुदकशी का ख्याल आया। लेकिन सकारात्मक सोच के बूते इस पर काबू पा लिया।

कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

दक्षिण अफ्रीका के ब्लेड रनर ऑस्कर पिस्टोरियस, मेजर डीपी सिंह को याद किया, जिन्होंने दिव्यांगता को जिंदगी की दौड़ में कभी बाधक नहीं बनने दिया। सुशांत बताते हैं कि एक बार टीवी में देखा कि कोई सरदार जी एक पैर से ही दौड़ लगा रहे हैं। उन्हें याद किया। तीन माह बाद एक जनवरी 2015 को कृत्रिम पैर के सहारे चलना शुरू किया। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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