womens day: भूखे पेट पढ़ी, बच्चों को पढ़ाया और आज बनी कॉलेज की प्रिंसिपल

इस महिला के संघर्ष की कहानी औरों के लिए प्रेरणादायक है। यह हमें सीख देती है कि हालात से टूटों नहीं जज्बे को जिंदा रखो कामयाबी कदम चूमेगी। नाम है डॉ. मुदिता चंद्रा।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Fri, 08 Mar 2019 12:11 PM (IST) Updated:Fri, 08 Mar 2019 12:58 PM (IST)
womens day: भूखे पेट पढ़ी, बच्चों को पढ़ाया और आज बनी कॉलेज की प्रिंसिपल
womens day: भूखे पेट पढ़ी, बच्चों को पढ़ाया और आज बनी कॉलेज की प्रिंसिपल

जमशेदपुर, [ वेंकटेश्वर राव]। इस महिला के संघर्ष की कहानी औरों के लिए प्रेरणादायक है। यह हमें सीख देती है कि हालात से टूटों नहीं, जज्बे को जिंदा रखो, कामयाबी कदम चूमेगी। नाम है डॉ. मुदिता चंद्रा। डॉ मुदिता आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। काफी संघर्ष के बाद एबीएम कॉलेज में कमीशंड प्रिंसिपल के रूप में पदस्थापित हैं।

अपने जीवन के बारे में उन्होंने बताया कि कठिनाइयों से कभी हिम्मत नहीं हारी। स्वयं भी पढ़ा और बच्चों को भी पढ़ाया। मूल रूप से रांची की रहने वाली डॉ. मुदिता परिवार में सबसे बड़ी हैं।  स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही 1981 में जमशेदपुर में रहने वाले मुंगेर निवासी से शादी हो गई। शादी के बाद ससुराल में पति व अन्य सदस्यों के अनबन हो गई। हालात कुछ ऐसे हुए कि अपने बच्चों के साथ रांची आकर स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। फिर वापस जमशेदपुर आकर ग्रेजुएट कॉलेज में अनुबंध के आधार पर शिक्षिका के पद पर योगदान दिया। बच्चों को लालन-पालन की जिम्मेदारियों को निभाते हुए कई बार वे भूखे पेट सोईं। स्वयं पढ़ाई की और बच्चों को भी पढ़ाया। वेे कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से जुड़ी हुई है। 

बच्चों ने दिया सहारा

डॉ. मुदिता ने बताया कि आर्थिक तंगी के दौरान बेटा अंशु कुमार व बेटी यशा स्पृहा ने साथ दिया। किस्मत भी अच्छी रही। बेटा आइआइटी से इंजीनियङ्क्षरग व प्रबंधन करने के बाद  एप्पल कंपनी में नौकरी कर रहा है। बेटी स्कॉलरशिप प्राप्त कर लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स में पढ़ रही है। 

ये है संदेश

महिलाएं जितनी संघर्ष करती है, वह उतनी ही तपती है। संघर्ष से और मजबूती आती है। पुरुष नहीं होने के बावजूद भी बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सकती है।

-डॉ. मुदिता चंद्रा, प्रिंसिपल एबीएम कॉलेज। 

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