बिष्टुपुर में बिखरी आदिवासियों का व्यंजनों की सौंधी खुशबू

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आदिवासी सभ्यता व संस्कृति को करीब से जानना है तो कभी उनके व्यंजन का स्वा

By JagranEdited By: Publish:Sat, 09 Jun 2018 08:00 AM (IST) Updated:Sat, 09 Jun 2018 08:00 AM (IST)
बिष्टुपुर में बिखरी आदिवासियों का व्यंजनों की सौंधी खुशबू
बिष्टुपुर में बिखरी आदिवासियों का व्यंजनों की सौंधी खुशबू

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आदिवासी सभ्यता व संस्कृति को करीब से जानना है तो कभी उनके व्यंजन का स्वाद चख कर देखिए। शर्तिया मजा आना ही आना ही आना है। इन दिनों तो इसे चखने के लिए आपको कोई दुर्गम गांव भी नहीं जाना पड़ेगा, क्योंकि बिष्टुपुर में ही आपको यह उपलब्ध हो जाएगा। आप सोच रहे होंगे कहां..तो जनाब कला मंदिर में पिछले दो दिनों से लगे मिनी आदि महोत्सव में हो आइए, यहां आज-कल आदिवासी व्यंजनों की सौंधी खुशबू लोगों का मन मोह रही है, आपका भी मोहेगी। शुक्रवार को महोत्सव में संताल आदिवासियों के विशेष व्यंजन जिल पीठा को लोगों के बीच परोसा गया। रांची से आई लक्ष्मी बेसरा ने अपने हाथों से जिल पीठा बनाकर लोगों को परोसा। सबने बड़े चाव से इसका लुत्फ भी उठाया। चावल के आटे व पके चिकन को गूंथ कर बनने वाला यह व्यंजन संताल आदिवासियों में संक्रांति यानी मकर साकरात जैसे पर्व त्योहारों पर विशेष रूप से बनाया जाता है।

बिष्टुपुर स्थित कलामंदिर में शुक्रवार को मिनी आदि महोत्सव का दूसरा दिन था। इस दिन यहां जनजातीय व्यंजन का स्टॉल सजाया गया। स्टॉल में पहले दिन जिल पीठा बनाया गया, जिसे लोगों ने खूब पसंद किया गया। लोगों ने इस लजीज व्यंजन का लुत्फ उठाया। महोत्सव में अब रोज अलग-अलग जनजातीय व्यंजन लोगों के बीच परोसे जाएंगे। बताते चलें कि आदिवासी सहकारी विपणन विकास संघ, जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार के तत्वावधान में आयोजित महोत्सव में देश भर के जनजातीय कलाकारों द्वारा बनाए गए कला-संस्कृति से जुड़े उत्पादों को बिक्री और प्रदर्शन के लिए रखा गया है। महोत्सव में कुल दस स्टॉल लगाए गए हैं, जिनमें आधे ट्राईफेड के और आधे कलामंदिर संस्था के हैं। इन स्टॉलों में आदिवासी कलाकारों द्वारा बनाए गए उत्पादों की बिक्री की जा रही है। शुक्रवार को ट्राईफेड की कुछ और सामग्री महोत्सव में पहुंचा। मिनी आदि महोत्सव के दूसरे दिन ट्राईफेड के क्षेत्रीय प्रबंधक अमिताभ रॉय ने महोत्सव की जानकारी ली।

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ऐसे बनाते हैं जिल पीठा

आदिवासी समुदाय (संताल) के लोग साकरात (मकर संक्राति) में जिल (मास) पीठा खास तौर पर बनाते हैं। इसे चावल के आटे से बनाया जाता है, जिसमें मास पकाकर मिलाया जाता है। सबसे पहले तेल मसाले के साथ मास पकाया जाता है। मसाले में फ्राइ किए गए मास को पकाने के बाद इसे चावल के आटे के साथ सान दिया जाता है। इसके बाद उसे साल वृक्ष के हरे पत्तों से बने पतड़ा (पत्तल) में परोसा जाता है। रोटी के आकार में सना हुआ चावल का आटा व मास परोसने के बाद उसे एक और पतड़ा (साल के पत्तल) से ऊपर से भी ढंक दिया जाता है, इसके बाद मिट्टी के बड़े बर्तन में उसे चूल्हे पर गर्म होने के लिए चढ़ा दिया जाता है और तबतक पकने दिया जाता है, जबतक कि साल के हरे पत्ते (पत्तल) पूरी तरह से काले नहीं हो जाते। फिर उसे उतार लिया जाता है और गरमागरम परोसा जाता है। चूंकि इसमें मास (संथाली में जिल) मिलाया जाता है, इसलिए इसे जिल पीठा या मास पीठा कहा जाता है।

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