कसौली से भड़की थी 1857 के विद्रोह की चिंगारी

नमोहन वशिष्ठ, सोलन प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी कसौली से भड़की थी। 20 अप्रैल, 1857 को अंग्र

By JagranEdited By: Publish:Thu, 20 Apr 2017 01:01 AM (IST) Updated:Thu, 20 Apr 2017 01:01 AM (IST)
कसौली से भड़की थी 1857 के विद्रोह की चिंगारी
कसौली से भड़की थी 1857 के विद्रोह की चिंगारी

नमोहन वशिष्ठ, सोलन

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी कसौली से भड़की थी। 20 अप्रैल, 1857 को अंग्रेजों के सुरक्षित गढ़ कही जाने वाली कसौली छावनी से आजादी के लिए पहली क्रांति शुरू हुई थी। अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति पाने और आजादी के लिए हिमाचली जवानों ने भी इसमें अपने जीवन का बलिदान दिया था। 20 अप्रैल, 1857 को को अंबाला राइफल डिपो के छह भारतीय सैनिकों ने कसौली थाने को जलाकर राख कर दिया था। उस समय अंग्रेजों के शक्तिशाली गढ़ कहे जाने वाले कसौली छावनी में भारतीय सैनिकों द्वारा सेंध लगाने से ब्रिटिश अधिकारी बौखला गए थे। अंग्रेजों ने कई क्रांतिवीरों को पकड़कर जेलों में ठूंस दिया था। कई को फासी पर चढ़ा दिया था। कसौली में क्रांति की ज्वाला से भड़की चिंगारी ने पूरे हिमाचल वासियों में आजादी की अलख जगा दी थी।

अंग्रजो के खिलाफ उठाए हथियार

क्रांति की जो चिंगारी कसौली से शुरू हुई थी उससे ड़गशाई, सुबाथू, कालका, और जतोग छावनियों समेत पूरे हिमाचल में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की लहर फैल गई थी। अंग्रेजों ने मेरठ, दिल्ली और अंबाला में भी विद्रोह की सूचना मिलते ही कसौली छावनी के सैनिकों को अंबाला कूच करने के आदेश दिए जिसे भारतीय सैनिकों ने नहीं माना और खुले तौर पर विद्रोह करके बंदूकें उठा लीं। कसौली की नसीरी बटालियन (गोरखा रेजिमेंट) ने भी ब्रिटिश अधिकारियों के अंबाला कूच करने के निर्देश नहीं माने। उस समय कसौली में नसीरी बटालियन हुआ करती थी, इसके सूबेदार भीम सिंह बहादुर थे।

कसौली ट्रेजरी को भी लूटा

13 मई, 1857 को सैनिकों ने अंग्रेजों के ऊपर हमला कर उन्हें धूल चटा दी थी और कसौली ट्रेजरी में रखी चालीस हज़ार की राशि लूट ली थी। अंग्रेजों के तत्कालीन कमिश्नर पी. मैक्सवैल ने अपनी डायरी में लिखा था कि यह हैरत की बात है कि मुट्ठीभर क्रातिकारियों ने अपने से चार गुना अधिक अंग्रेज सेना को हरा दिया था। गौरतलब है कि सिर्फ 45 क्रांतिकारियों ने 200 अंग्रेजों को धूल चटा दी थी। कोष लूटने के बाद नसीरी सेना जतोग कूच कर गई। उसके बाद विद्रोह की डोर स्थानीय पुलिस ने अपने हाथों में ले ली। तत्कालीन दरोगा बुध सिंह ने अंग्रेजों को काफी आतंकित किया। जब वे घिर गए तो उन्होंने खुद को गोली से उड़ा लिया और शहीद हो गए।

वैरागी को फांसी पर चढ़ाया

पूरे देश में क्राति के संचालन के लिए एक गुप्त संगठन बनाया गया था। पहाड़ों में इसके नेता पंडित राम प्रसाद वैरागी थे जो सुबाथू के मंदिर में पुजारी थे। संगठन पूरे देश में पत्रों के माध्यम से क्राति का संचालन कर रहा था। 12 जून 1857 को इस संगठन के कुछ पत्र अंबाला के कमिश्नर जीसी बार्नस के हाथ लग गए। इनमें दो पत्र राम प्रसाद वैरागी के भी थे, जिससे संगठन का भेद खुल गया। वैरागी को पकड़ कर अंबाला जेल में फासी पर चढ़ा दिया।

नही मिलता कसौली क्रांति का इतिहास

कसौली से इतनी बड़ी आजादी की लड़ाई लड़ी गई, लेकिन दुख का विषय है कि कसौली की क्रांति के इतिहास को बहुत ही कम लोग जानते हैं। युवा पीढ़ी को तो इस क्राति और शहीदों के बारे में कुछ भ पता नहीं है। कसौली में इस क्रांति और शहीदों के कोई भी नामोनिशा नही मिलते, जबकि कसौली में सरकार को ऐतिहासिक स्तंभ बनाकर उस पर पंडित रामप्रसाद वैरागी, दरोगा बुधसिंह और सूबेदार भीमसिंह बहादुर और कसौली की क्राति का उल्लेख करवाना चाहिए ताकि युवा पीढ़ी व यंहा आने वाला हर शख्स इस इतिहास को जान सके।

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