खबर के पार: मान्यवर! ये भी प्राथमिकताएं हैं?

देश भर में मंदी के बावजूद हिमाचल में पर 50000 करोड़ से अधिक का कर्ज है ऐसे में विधायकों के यात्रा भत्ते में किया इजाफा चर्चा में है।

By Babita kashyapEdited By: Publish:Fri, 06 Sep 2019 11:31 AM (IST) Updated:Fri, 06 Sep 2019 11:31 AM (IST)
खबर के पार: मान्यवर! ये भी प्राथमिकताएं हैं?
खबर के पार: मान्यवर! ये भी प्राथमिकताएं हैं?

शिमला, नवनीत शर्मा। देश भर में मंदी और उससे जूझने के सार्थक प्रयासों के बीच हिमाचल प्रदेश का सच फिलहाल यही है कि राज्य पर 50,000 करोड़ से अधिक का कर्ज है। इसे आप करीब 75 लाख जनसंख्या के साथ विभक्त कर दें तो प्रति व्यक्ति कर्ज दर भी दर्शन दे देगा। ऐसे माहौल में हिमाचल प्रदेश के विधायकों का यात्रा भत्ता ढाई लाख से बढ़ा कर चार लाख रुपये किया जाना और यात्रा के लिए पूर्व विधायकों के परिवार को भी अधिकृत कर देना चर्चा में है। सोशल मीडिया से लेकर अन्यथा भी जबरदस्त प्रतिक्रिया आई।

कहीं-कहीं तो विधायकों के लिए एकएक रुपया चंदा भी इकट्ठा करने के उपक्रम जनता ने शुरू कर दिए। इस संदेश के साथ कि आइए, माननीयों की मदद की जाए। दिलचस्प यह है कि इस कदम में पक्ष के साथ ही विपक्ष भी पक्ष में है और विरोध में विपक्ष के साथ ही पक्ष भी है। सुविधा ऐसी है कि दलीय आधार पर पक्ष विपक्ष नहीं हो रहा है। कुछ विधायकों ने एलान कर दिया है कि वे बढ़ा हुआ यात्रा भत्ता नहीं लेंगे। इस पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कह दिया है कि जिन विधायकों को बढ़ा हुआ यात्रा भत्ता नहीं चाहिए, वे लिख कर दे दें। सदन में तो सबने सहमति व्यक्त की थी।

मोटे तौर पर भत्ते बढ़ाने के विषय में दो प्रकार के पक्ष सामने आ रहे थे- ‘पूर्व में भी ऐसा होता रहा है...’ ‘...यह यात्रा भत्ता वास्तविक है यानी यात्रा करो तो पाओ के आधार पर।’ ‘....यह वेतन नहीं है जो मिल ही जाएगा, लोग यात्रा करेंगे तो ही मिलेगा’, ‘...वास्तव में नब्बे प्रतिशत लोग तो यात्रा भत्ता लेते ही नहीं हैं, फिर हाय तौबा क्यों?’ 

नयनादेवी के कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर ने कहा, ‘मुख्य सचिव के वेतन से भले ही एक रुपया अधिक वेतन हो, होना चाहिए।’ मुख्य सचिव के साथ तुलना कितनी गंभीर है, यह सहज ही समझा जा सकता है। बात चाय के खर्च गिनाने तक आ गई। इसके साथ ही सबकी संपत्ति को सार्वजनिक होना चाहिए, के आख्यान पर वर्षों से कार्यरत कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और नादौन के विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वे मजबूरियां गिनाने की कोशिश की जिनके तहत यात्रा भत्ता या वेतन बढ़ाया जाना वास्तविक मांग है।

इसके प्रतिपक्ष में आने वाले तर्क ये हैं, ‘...अगर इस्तेमाल ही नहीं होता तो बढ़ाने की जरूरत क्या थी?’ ‘...

पक्ष प्रतिपक्ष की ऐसी एकजुटता क्या कर्मचारियों को नियमित करने और पेंशन देने के सवाल पर भी होती है?’ ‘...अगर वित्तीय कठिनाइयां ही तर्क हैं तो वह तो आम आदमी के साथ अधिक हैं माननीय!’ मुख्यमंत्री से मुलाकात वाले दिन देर शाम को एक बार पुन: राजनीति छोड़ने की घोषणा करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने इसे ऐसा विषय बताया जिस पर बात ही नहीं की जा सकती। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का कहना है कि लोकराज तो लोकलाज से चलता है। इस पर एक समिति का गठन किया जाता और उसकी सिफारिशों पर काम किया जाता तो बेहतर था।

पक्ष और प्रतिपक्ष में उपरोक्त बातें अपनी-अपनी जगह ठीक होंगी लेकिन कुछ सवाल उठते हैं। यात्रा भत्ता कितनी बार बढ़ा होगा लेकिन इस बार इतना विरोध क्यों? इसलिए क्योंकि प्रदेश की आर्थिक दिक्कतें हैं। जनता मुखर हो रही है। पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक प्रबंधक अनुमान ही नहीं लगा सके कि इतनी तीखी प्रतिक्रिया आएगी कि विधायक स्वयं इसे लेने से इन्कार करेंगे। इधर, मुख्यमंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री के बयान को मुस्कराते हुए ‘मार्गदर्शन’ की तरह लिया है। साथ ही यह भी जोड़ा है कि पूर्व में जितने भी मुख्यमंत्री हुए हैं, सबके कार्यकाल में भत्ते बढ़े हैं।

इन सबसे हटकर सवाल यह है कि विधायक का काम विधान बनाना है। वे सब काम तो पांच मिनट में हो

जाते हैं। अपने हलके की जनता की आवाज बनना है। बात यह नहीं है कि बढ़ा क्यों? बात यह है कि जरूरत क्या थी? क्या ये प्राथमिकताएं हैं राज्य की? क्या विधायक होना नौकरी करना है?

क्या भारतीय दर्शन में वर्णित ‘अर्थ संयम’ के सार पर शोध करने की जरूरत है? 2012 से लेकर 2017 तक विधायक रहे 60 उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके शपथपत्र बताते हैं कि उनकी संपत्ति में 80 फीसद वृद्धि हुई है। क्या यह सूरत-ए-हाल तनिक भी गरीबी की शक्ल से मिलती है?

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अब जिक्र उन विधायकों का  जिन्होंने जनता को यह दिखाना चाहा कि जनता के साथ हैं। विक्रमादित्‍य सिंह ने फेसबुक पर लिखा कि वह नहीं लेंगे। सदन में सहमति व्यक्त कर दी। उसके बाद घुमारवीं से भाजपा

विधायक राजेंद्र गर्ग ने कह दिया कि वह बढ़ा हुआ भत्ता नहीं लेंगे। फिर जयसिंहपुर के विधायक रविंद्र रवि धीमान ने यही कहा। दबाव देख कर! सदन पहले दिन से इस बात का विरोध केवल माकपा विधायक राकेश सिंघा ने किया लेकिन अकेला चना होने के कुछ लाभ हैं तो कुछ नुकसान भी। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री की घोषणा पर कितने विधायक लिख कर यात्रा भत्ता लेने से इन्कार करते हैं। बहरहाल,

आम आदमी की बात सुनी गई, ऐसा लगता है :

वक्त की बात है या उनकी

इनायत है शजीर

सुन रहा हूं कि मेरा जिक्र वहां

होता है...।

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