एचआरटीसी की खटारा पुरानी बसों में प्रशिक्षण से कैसे चमके हुनर, आधुनिक वाहनों के अभाव में पिछड़ रहे युवा
HRTC Old Damage Buses हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) की पुराने मॉडल की खटारा बसें कबाड़ में नहीं बेची जाती हैं।
शिमला, प्रकाश भारद्वाज। हिमाचल पथ परिवहन निगम (एचआरटीसी) की पुराने मॉडल की खटारा बसें कबाड़ में नहीं बेची जाती हैं। इन बसों को राज्य के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आइटीआइ) को दे दिया जाता है। आइटीआइ में मोटर मैकेनिक ट्रेड के प्रशिक्षुओं को इन बसों में प्रशिक्षित किया जाता है। देशभर में आजकल आधुनिक तकनीक के वाहन चल रहे हैं। हिमाचल में भी इलेक्ट्रिक बसें और दूसरे आधुनिक छोटे वाहन आ चुके हैं। ऐसे वाहनों में हाइड्रोलिक प्रणाली का इस्तेमाल भी हो रहा है।
इसके बावजूद प्रदेश के सभी जिलों में स्थित आइटीआइ में पुरानी बसों पर ही प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ऐसे में उनका हुनर चमक नहीं पा रहा है। इसका नतीजा यह है कि प्रशिक्षित होने के बाद युवाओं को देश-विदेश में काफी कम वेतन मिल रहा है। वे हर महीने औसतन 12 हजार रुपये वेतन ले रहे हैं। आधुनिक वाहनों में प्रशिक्षण की कमी के कारण हीरो मोटर, होंडा, मारूति सुजुकी जैसी कंपनियां कैंपस प्लेसमेंट तो करती हैं मगर प्रदेश के युवाओं को अधिक वेतन का प्रस्ताव नहीं मिलता है। इस कारण कहीं न कहीं तकनीकी रूप से पिछड़ा होना माना जा सकता है।
क्या कहते हैं अधिकारी परिवहन निगम की बस पर बेसिक प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद कार में प्रशिक्षण होता है। -चमल लाल तंवर, प्रधानाचार्य, आइटीआइ, सोलन। संस्थान से प्रशिक्षित युवाओं को हीरो मोटर कंपनी नौकरी देती है। वेतन करीब 10 हजार रुपये मिलता है। ऐसे में कई युवा अपना कारोबार शुरू करते हैं। -संजीव कुमार, प्रधानाचार्य, आइटीआइ नूरपुर। प्रशिक्षुओं के करियर का खास ख्याल रखा जाता है। उनकी बेहतरी के लिए उन्हें स्टाफ के पास उपलब्ध वाहनों पर प्रशिक्षण दिलाते हैं। -मनीष राणा, प्रधानाचार्य, आइटीआइ, धर्मशाला। प्रशिक्षुओं को बसों के अलावा दूसरे भारी वाहनों पर भी प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें इंजन, इलेक्ट्रिकल सिस्टम सहित सभी कलपुर्जाे की जानकारी दी जाती है। -शुभकरण सिंह, निदेशक, तकनीकी शिक्षा विभाग।