दो दशक से नहीं गिरी अनहोनी टालने वाली बिजली

कुल्लू जिला में ब्यास व पार्वती नदियों के संगम स्थल के पास पर्वत पर बिजली महादेव का वास है। इन्हें ऐसे ही बिजली महादेव नहीं कहा जाता है

By Munish DixitEdited By: Publish:Thu, 26 Jul 2018 11:46 AM (IST) Updated:Thu, 26 Jul 2018 11:46 AM (IST)
दो दशक से नहीं गिरी अनहोनी टालने वाली बिजली
दो दशक से नहीं गिरी अनहोनी टालने वाली बिजली

रविंद्र पंवर, कुल्लू : हिमाचल को देवों के देव महादेव की स्थली माना जाता है। प्रदेश के कुल्लू जिला में ब्यास व पार्वती नदियों के संगम स्थल के पास पर्वत पर बिजली महादेव का वास है। इन्हें ऐसे ही बिजली महादेव नहीं कहा जाता, यहां स्थापित प्राचीन शिवल‍िंग आकाशीय शक्ति एवं आधार शक्ति का मेल है। आदिकाल से भोलेनाथ का यह प्रतीक आसमानी बिजली गिरने से खंडित होता था और इसे मक्खन से जोड़ दिया जाता था।

बदलते समय में करीब दो दशक से मंदिर के साथ स्थापित आधार स्तंभ पर न तो बिजली गिरी है और न ही गर्भगृह का शिवल‍िंग खंडित हुआ है। यहां शिवरात्रि पर बड़े आयोजन के अलावा सावन के महीने में भी श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

कुलांत राक्षस से कुलूत देश और कुल्लू जनपद तक :

कुल्लू जिला और बिजली महादेव में गहरा नाता है, देव संस्कृति की इस घाटी में हालांकि भगवान रघुनाथजी यहां के अधिष्ठाता हैं, लेकिन बिजली महादेव को ही बड़ा देव माना जाता है। इसका कारण कुल्लू के नामकरण में बिजली महादेव का बड़ा योगदान रहा है, जिन्होंने घाटी को कुलांत नामक दैत्य के भय से मुक्त किया था। प्राचीन काल में यहां का नाम कुलांत व कुलूत देश पड़ा और बाद में कुल्लू बन गया।

मान्यता है कि सदियों पहले इस क्षेत्र में कुलांत राक्षस का आतंक था, जिसने एक समय में विशाल अजगर का रूप धारण कर लिया। वह ब्यास व पार्वती नदी के संगम पर कुंडली मारकर बैठ गया। उसका इरादा नदी का बहाव रोककर इलाके को जलमग्न करने का था, ताकि यहां का जन-धन सब पानी में डूब जाए। ऐसे में भगवान शिव बीच में आए और उन्होंने अजगर को बहकाकर उसका फन कुचल दिया। जिस जगह पर उसका शरीर था, वह विशाल पहाड़ के रूप में बदल गया। कुल्लू घाटी में बिजली महादेव से लेकर रोहतांग दर्रा और मंडी के घोग्घरधार तक की घाटी कुलांत के शरीर से निर्मित मानी जाती है।

12 साल में गिरती थी बिजली

किवदंती के अनुसार कुलांत दैत्य के अंत के बाद जिस स्थान पर उसका सिर था, वहां शिवल‍िंग स्थापित कर मंदिर का निर्माण हुआ। भगवान शिव ने इंद्र देव को कहा कि अजगर के सिर पर 12 साल बाद बिजली गिराएं ताकि वह दोबारा फन न उठा सके। इसके बाद से जब-जब यहां बिजली गिरती थी शिवल‍िंग खंडित हो जाता। बाद में पुजारी शिवल‍िंग के टुकड़ों को मक्खन से जोड़कर उस पर रेशम का वस्त्र बांधकर किल्टे से ढक देते और कुछ दिन में शिवल‍िंग वापस अपने आकार में आ जाता। बाद में मंदिर के साथ एक विशाल आधार स्तंभ स्थापित किया गया और बिजली उसी पर गिरने लगी, जिसे तीसरे-चौथे वर्ष में बदल दिया जाता था।

कई वर्ष से खंडित नहीं हुआ शिवलिंग :

बिजली महादेव का शिवलिंग कई साल से खंडित नहीं हुआ है, जिसे स्थानीय लोग अनहोनी की आशंका से भी देखते हैं। इसका कारण आधुनिक व तकनीकी युग भी माना जा रहा है। बिजली महादेव मंदिर समिति के सलाहकार रामकृष्ण के मुताबिक इस पहाड़ी पर एक कंपनी का बड़ा टॉवर लगा है। इलाके में आसपास तो बिजली गिरती है, लेकिन आधार स्तंभ तक नहीं आती। यह स्थल आकाशीय शक्ति एवं आधार शक्ति का मेल है और अब यहां बिजली न गिरने से ही इलाके में प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। मंदिर की परंपरा के अनुसार शिवल‍िंग पर मक्खन का लेप और तीन-चार साल बाद आधार स्तंभ को यूं ही बदला जा रहा है।

मंदिर की व्यवस्था संभालती है समिति :

बिजली महादेव मंदिर समिति के महासचिव हेमराज शर्मा ने बताया यह मंदिर कुल्लू जिला ही नहीं प्रदेश व देश के लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है, यहां विदेशी पर्यटक भी आते हैं। मंदिर के रखरखाव एवं अन्य व्यवस्था के लिए 50 सदस्यीय समिति का गठन किया गया है।

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