दशहरा में परंपराओं का पहले की तरह निर्वहन न होने पर मूल स्थल को रवाना देवता आधे रास्ते से लौटे
Kullu Dussehra 2020 कुल्लू के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के समाप्त होते ही सभी देवी देवता अपने अपने मूल स्थल को रवाना हो गए। देवता जमलू रविवार को रवाना हुए। तीन देवता नाग धूंबल मेहा के नारायण और डमचीन के वीरनाथ आधे रास्ते से कुल्लू लौट आए।
कुल्लू, जेएनएन। कुल्लू के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के समाप्त होते ही सभी देवी देवता अपने अपने मूल स्थल को रवाना हो गए। देवता जमलू रविवार को रवाना हुए। तीन देवता नाग धूंबल, मेहा के नारायण और डमचीन के वीरनाथ आधे रास्ते से कुल्लू लौट आए। उन्होंने रात को भगवान रघुनाथ के मंदिर में पहुंचकर नराजगी जाहिर की और देवता ने अपने गूर के माध्यम से कहा कि अगर ऐसे ही घर चले गए तो अमंगल हो सकता है। इसके लिए छिद्रा करवाई जाए। इसके बाद तीनों देवी-देवता ढालपुर में भगवान रघुनाथ के अस्थायी शिविर में पहुंचे और देव कार्यवाही शुरू की। इसमें भगवान रघुनाथजी के छड़ीबरदार और कारदार दानवेंद्र यहित सभी देवलुओं को बिठाकर छिद्रा की प्रक्रिया को पूरा किया गया। इसमें प्रशासन, सरकार, की ओर से भी जो भी निर्णय लिया गया था उसके लिए देवी-देवताओं से माफी मांगी गई है और आगे सुख शांति बनी रहे इसके लिए यह प्रक्रिया निभाई गई।
भगवान रघुनाथ जी के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने बताया इस वर्ष कुल्लू दशहरा उत्सव में जैसे देवी-देवताओं का मिलन हुआ, इसके लिए भगवान रघुनाथ जी भी रूष्ट हैं और देवी-देवताओं ने तो पहले भी नाराजगी जाहिर कर ली है। रविवार को छिद्रा करवाई गई। यह एक तरह का पश्चाताप किया गया है। भगवान से माफी मांगी गई है।
इसमें देवी देवताओं, पुलिस द्वारा देवी देवताओं को रोकने, धारा 144 के तहत रोकने व लोगों को दर्शन न करने देने को लेकर पश्चाताप किया गया। देवता ने कहा था कि यह कार्यवाही नहीं की गई तो बहुत बुरा हो सकता है। वीरनाथ डमचीन ने यह प्रक्रिया निभाई। कोरोना पर भी रोक लगे और सभी को सुख शांति प्रदान की जाए। जल्द ही देवी-देवताओं के कहने पर जगती करवाई जाएगी।
पूरे ढालपुर मैदान में लगाई फेरी
देवता नाग धूंबल और वीरनाथ डमचीन ने भगवान रघुनाथ के अस्थायी शिविर से लेकर पूरे ढालपुर का चक्र लगाया और कुछ भी गलत न हो इसके लिए लोगों को आश्वस्त किया। पहली मर्तबा कुल्लू में दशहरा उत्सव के दौरान ऐसा मंजर देखने को मिला। इससे पूर्व कभी भी दशहरा उत्सव ऐसे नहीं मनाया गया। इसमें देवी-देवताओं सहित आम लोगों पर भी पाबंदी लगाई गई।