आखिर क्या है हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के मर्ज की दवा, विधानसभा चुनाव से पहले वर्चस्‍व की जंग तेज

Himachal Politics एक धारा जो वीरभद्र सिंह से विपरीत चलती है वह फिलहाल अलग ही रहेगी। सक्रिय विपक्ष लोकतंत्र के लिए नेमत होता है लेकिन राष्ट्रीय पटल पर और प्रांतों में कांग्रेस का हाल देख कर उम्मीद नहीं जगती।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 03 Jun 2021 11:24 AM (IST) Updated:Thu, 03 Jun 2021 12:17 PM (IST)
आखिर क्या है हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के मर्ज की दवा, विधानसभा चुनाव से पहले वर्चस्‍व की जंग तेज
बाली का एक होर्डिंग फाड़ कर यह संदेश दिया कि वीरभद्र के लिए कुछ कर गुजरने वाले लोग हैं।

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। Himachal Politics जोव्यक्ति या संगठन आत्महंता प्रवृत्ति से ग्रस्त हो, अपना दुश्मन आप हो, वह व्यक्ति या ऐसे संगठन से जुड़े लोग जब जीने की बात करें, कुछ उद्यम करने का संकेत दें तो उम्मीद जगती है। अब तक प्रधानमंत्री के कांग्रेसमुक्त भारत अभियान में स्वयं कांग्रेस सबसे बड़ी योगदानकर्ता रही है। लेकिन इस बीच हिमाचल प्रदेश से एक अलग दृश्य उत्पन्न हुआ है। प्रदेश कांग्रेस के तीन नेता एक साथ बैठे। इन सभी लोगों ने समझदारी की बात की। आशा कुमारी, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा ने तय किया कि हाथ मजबूत न हुआ तो कांग्रेस के ठाकुर हाथ नहीं बचा पाएंगे। आपसी सहमति बनी कि पहले बिखराव को दूर कर जनता से जुड़ें और फिर जब उचित जनादेश मिल जाए तो बैठकर निश्चित करें कि किसे क्या बनना है।

ये तीनों वरिष्ठ नेता समझ चुके हैं कि रटी-रटाई विज्ञप्तियों, मुख्यालय से लेटर पैड पर जारी होते बासी बयानों से राजनीति में कोई उबाल नहीं आएगा। बात इसलिए समझदारी की है, क्योंकि अगले वर्ष विधानसभा चुनाव है। प्रदेश कांग्रेस का संक्षिप्त इतिहास बताता है कि खेमे शुरू से रहे हैं। जनाधार और पहचान के मामले में वीरभद्र सिंह के बाद कोई ऐसा नाम, जो उस हद तक स्वीकार्य हो, दिखता नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को अपना कमाल दिखाता रहे, वही धारावाहिक अब तक जारी है।

कांग्रेस की बेचेहरगी : शिमला स्थित कांग्रेस मुख्यालय में कांग्रेस द्वारा फाड़ा गया अपना होर्डिंग। जागरण आर्काइव

तीनों नेता क्यों एक साथ आए? क्योंकि राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर कांग्रेस ने ही कांग्रेस के होर्डिंग फाड़ दिए। बाकायदा वीडियो बने, सुर्खियां बनीं, निष्कासन हुए और आरोप-प्रत्यारोप चले। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने वही कहा जो उन्हें कहना था, ‘अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं होगी। दोषी कोई भी हों, बख्शे नहीं जाएंगे।’ जब कांग्रेस ने स्वयं को नहीं बख्शा, वह किसी और को बख्शे या न बख्शे, यह सवाल बेमानी है। दरअसल कांग्रेस की एक समिति बनी जिसका काम था, कोरोना पीड़ितों को मदद पहुंचाना। समिति के अध्यक्ष बने बहुर्चिचत पूर्व मंत्री जीएस बाली। अगले दिन शिमला में एक होर्डिंग लगी, जिसमें सबसे ऊपर देश-प्रदेश के नेताओं की कतार थी और कुछ नीचे मुख्यत: दो फोटो बड़े थे। एक राजीव गांधी का और दूसरा लगभग उसी आकार में जीएस बाली का। फोटो नहीं था तो बस छह बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का। जीएस बाली कांगड़ा से हैं।

शिमला में ही नहीं, कांगड़ा में भी बाली का एक होर्डिंग फाड़ कर यह संदेश दिया गया कि वीरभद्र सिंह के लिए कुछ कर गुजरने वाले लोग कांगड़ा में भी हैं। बाद में मंडी में भी ऐसा ही हुआ। एक बड़े कांग्रेस नेता कहते हैं, ‘कांग्रेस ने जो कोरोना किट बांटी है, उसमें कुछ दवाएं और आक्सीमीटर हैं। हर हलके में 50 बांटनी थी, पर समझ में यह नहीं आ रहा कि केवल 50 किसे दें?’ वीरभद्र सिंह के नाम तले बेशक काफी हिस्सा कांग्रेस बन जाता है लेकिन उन्हें चुनौती देने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू भी हैं, जो छह साल पूरी ठसक के साथ प्रदेशाध्यक्ष रहे। इसके अलावा ठाकुर कौल सिंह, आशा कुमारी, जीएस बाली, राम लाल ठाकुर, मुकेश अग्निहोत्री और सुधीर शर्मा ने भी पार्टी के लिए ‘काम किया’ है।

बेशक यह हर दल में होता है कि चेहरे जितने मर्जी हों, कोई बड़ा चेहरा जोड़ने वाला भी होता है। कांग्रेस में योजक कौन है, यह शोध का विषय है। दरअसल, मेहनत करने वाले लोग कम हैं। जो जनाधार वाले हैं, उन्हें पाश्र्व में रखा जाता है। सुविधा की राजनीति का असर यह होता कि जो जनता के बीच न जाए, उसे आगे रखा जाता है। वंशवाद भी रहा है। अंतत: किसी न किसी नाम का सहारा ढूंढते हैं। अपनी कारगुजारी से पहचान बनाने वाले आशीष बुटेल, इंद्र दत्त लखनपाल और अनिरुद्ध सिंह जैसे लोग कम हैं। जाहिर है, ऐसे में सबको साफ दिखता है कि बेशक अस्वस्थ हों, कांग्रेस की नाव वीरभद्र सिंह ही पार लगा सकते हैं।

तो ऊपर से कोई देखता नहीं है क्या? राजीव शुक्ला प्रभारी हैं, लेकिन वह समझ गए होंगे कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और हिमाचल प्रदेश की उलझी हुई कांग्रेस में बेहद अंतर है। जहां तक राहुल गांधी की बात है, उनके लिए और भी गम हैं जमाने में हिमाचल के सिवा। अंदर के लोगों के मुताबिक कुछ लोग ऐसे हैं जो सोनिया गांधी को पसंद हैं और कुछ राहुल गांधी को। शिमला में घर बना चुकी प्रियंका वाड्रा की भी पसंद-नापसंद होगी ही।

हिमाचल में बेहद कम दिखने वाले राज्यसभा सदस्य आनंद शर्मा के करीबी प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर वीरभद्र सिंह के ‘आशीर्वाद’ से सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं, लेकिन कार्यकारिणी हो या कुछ और, ‘सब’ इतने हैं कि एक पोस्टर में आसानी से नहीं आ सकते तो हल क्या है? मुकेश जरूर विपक्ष के धर्म का निर्वहन करने में प्रयासरत रहते हैं। आशा, मुकेश और सुधीर की पहल से पार्टी एक छत के नीचे आएगी, ऐसी आशा करनी चाहिए क्योंकि सुधीर भी कोरोना काल में जनता के साथ जुड़े रहे हैं और अनुभवी आशा की राजनीति भी हल्की नहीं है। इसके बावजूद एक धारा जो वीरभद्र सिंह से विपरीत चलती है, वह फिलहाल अलग ही रहेगी। सक्रिय विपक्ष लोकतंत्र के लिए नेमत होता है लेकिन राष्ट्रीय पटल पर और प्रांतों में कांग्रेस का हाल देख कर उम्मीद नहीं जगती। 

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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