काली मिट्टी ला रही है जीवन में उजियारा

राजीव गांधी स्नातकोत्तर आयुर्वेदिक महाविद्यालय के अस्पताल मिट्टी के सहारे लोगों की बीमारियों को ठीक कर रहा है। इससे कई मरीजों को राहत मिली है।

By Edited By: Publish:Wed, 14 Nov 2018 11:38 AM (IST) Updated:Wed, 14 Nov 2018 11:18 AM (IST)
काली मिट्टी ला रही है जीवन में उजियारा
काली मिट्टी ला रही है जीवन में उजियारा

पपरोला, मुनीष सूद। खड्डों व नालों के किनारे मिलने वाली काली मिट्टी आपके जीवन में खुशियां लाएगी। जी हां! यह संभव हुआ है राजीव गांधी स्नातकोत्तर आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं अस्पताल पपरोला के चिकित्सकों की बदौलत। अस्पताल में काली मिट्टी के सहारे कई बीमारियों का उपचार किया जा रहा है। यह मिट्टी नदी, नालों और सांपों की ओर से बनाई गई बामी से एकत्रित की जाती है।

अस्पताल में मृतिका चिकित्सा पद्धति से लोगों का उपचार किया जा रहा है। रोजाना 15 से 20 मरीज मिट्टी से उपचार करवाने के लिए पहुंच रहे हैं। मानव शरीर में असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए इस मृतिका चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। इस विधि से उपचार के लिए खास प्रकार की काली मिट्टी का प्रयोग होता है। यह मिट्टी बैजनाथ के शीतला चौक, एहजू और बीड़ की खड्डों और नालों में मिलती है। मिट्टी का लेप बनाकर पीठ दर्द , गर्दन दर्द, कंधों का जम जाना, नींद न आना, बवासीर का प्रारंभिक अवस्था में होना और पेट दर्द आदि बीमारियों का उपचार किया जा रहा है। अस्पताल के डॉ. टेक चंद ठाकुर और डॉ. राजिका गुप्ता ने बताया कि रोजाना इस विधि से उपचार के लिए 20 मरीज पहुंच रहे हैं। उन्होंने बताया कि साठ साल से अधिक आयु के मरीजों को प्राथमिकता दी जाती है।

ऐसे तैयार होती है मिट्टी

मिट्टी को एक बर्तन में डालकर बिना हाथ लगाए लकड़ी के सहारे उबाला जाता है। जब मिट्टी सूखने की कगार पर होती है तो बर्तन को नीचे उतारकर मिट्टी को एक कपड़े की पट्टी में बिछाया जाता है। उपचार से पहले मरीज को हल्की एक्सरसाइज करवाई जाती है और फिर उसे गर्म पानी का सेंक दिया जाता है। बाद में शरीर के उस हिस्से में मिट्टी को पट्टी से बांध दिया जाता है जहां मरीज को दर्द है। यह प्रक्रिया तीस से चालीस मिनट होती है और यह तीन हफ्ते तक चलती है। हर रोज पट्टियों को बार-बार बदला जाता है।  

अस्पताल में मृतिका चिकित्सा पद्धति से कई रोगों का उपचार किया जा रहा है। इससे लोगों को काफी राहत मिल रही है। इलाज नि:शुल्क होता है।

-वाई के शर्मा, प्राचार्य आयुर्वेदिक अस्पताल पपरोला

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