मिंट्टी में बहाया पसीना, विदेश में जीता सोना

इरादे मजबूत हों तो कठिन से कठिन मंजिल भी कदम चूमती है । ऐसा ही कुछ कर दिखाया है नूरपुर क्षेत्र के गांव छत्रोली के 1

By JagranEdited By: Publish:Fri, 11 Jan 2019 08:02 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jan 2019 08:02 PM (IST)
मिंट्टी में बहाया पसीना, विदेश में जीता सोना
मिंट्टी में बहाया पसीना, विदेश में जीता सोना

अश्वनी शर्मा, जसूर

इरादे मजबूत हों तो मंजिल तक पहुंचने में कोई कठिनाई बाधा नहीं बन सकती। नूरपुर उपमंडल के छत्रोली गांव का 18 वर्षीय विशाल इसकी मिसाल है। बचपन में स्थानीय मेलों में मिट्टंी के अखाड़े में कुश्ती लड़ने से शुरू हुआ सफर अंतरराष्ट्रीय ग्रैपलिंग (मैट पर खेली जाने वाली कुश्ती) स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने के बाद भी जारी है। विशाल का लक्ष्य अब विश्व चैंपियनशिप में देश के पदक जीतना है। बेटे की इस हसरत को पूरा करने के लिए दिव्यांग पिता कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।

विशाल सेन का जन्म नूरपुर उपमंडल के छत्रोली गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 6 दिसंबर 2000 को हुआ। दसवीं तक की पढ़ाई आदर्श भारतीय स्कूल जसूर व जमा दो राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला जसूर से की। विशाल राजकीय महाविद्यालय देहरी में बीएससी द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत है। माता सरिता देवी गृहिणी हैं तो पिता सुदर्शन सिंह दिव्यांग होते हुए अपना व्यवसाय कर रहे हैं और बेटे को बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए दिनरात एक किए हुए हैं। विशाल का छोटा भाई साहिल सेन 12वीं में पढ़ता है।

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बचपन से ही जागा शौक

विशाल को बचपन से ही कुश्ती का शौक था। तीन साल तक क्षेत्र में होने वाले हर छोटे-बडे़ दंगल में जोरआजमाइश की कुश्ती कौशल के जौहर दिखाए। इस दौरान उसका झुकाव ग्रैप¨लग की ओर बढ़ा तो जून 2018 में बजरंग अखाड़ा जवाली से ग्रैप¨लग के दावपेंच सीखने शुरू किए। यहां से शुरू हुआ सफर निरंतर आगे बढ़ रहा है।

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अब तक का सफर

विशाल ने जवाली में राज्यस्तरीय ग्रैप¨लग प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक, अगस्त 2018 में रोहतक में रजत पदक, दिसंबर 2018 में दिल्ली में ओपन इंटरनेशनल ग्रैप¨लग चैंपियनशिप में पांचवां स्थान हासिल किया। पांच और छह जनवरी 2019 को भूटान में आयोजित साउथ एशियन ग्रैप¨लग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

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भविष्य की तैयारी

विशाल के अनुसार अब वह मार्च में रोहतक में होने वाली अंतर विश्वविद्यालय प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है। विशाल का कहना है कि अगर उसका चयन विश्व चैंपियनशिप के लिए हुआ तो वह देश के लिए स्वर्ण पदक लाने का पूरा प्रयास करेगा।

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सुविधाओं की दरकार

विशाल के अनुसार घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ न होना सबसे बड़ी बाधा है। अभी तक उसे सरकार की ओर से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल पाई है। यदि उस जैसे खिलाडि़यों पर भी सरकार की नजर-ए-इनायत हो और प्रतियोगिताओं में आने जाने के लिए आर्थिक सहायता का प्रावधान हो जाए तो भविष्य में ग्रैपलिंग से जुड़े सभी खिलाड़ी उमदा प्रदर्शन करने में पूरी तरह सक्षम होंगे।

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क्या कहते हैं माता-पिता

माता सरिता देवी व पिता सुदर्शन सिंह ने बताया कि विशाल उक्त खेल के साथ साथ पढ़ाई में अव्वल है। प्रशिक्षण, जिम और खान-पान पर महीने में 10 हजार रुपये खर्च आता है। पढ़ाई और खेलने के लिए देश-विदेश में आने-जाने का खर्च अलग। मध्यमवर्गीय परिवार के लिए इतनी राशि का जुगाड़ करना कठिन है। सरकार को उनके बेटे व उस जैसे अन्य खिलाड़ी जो देश व विदेश में पदक जीतकर आते हैं, को विशेष प्रोत्साहन राशि मुहैया करवाए।

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