अभिभावकों के सवाल : यह कैसी शिक्षा, नौंवी का छात्र नाम तक नहीें लिख सकता

ई शिक्षा नीति के मंथन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित सुझाव दिवस कार्यक्रमों में अभिभावकों ने पढ़ाई के स्‍तर पर खूब सवाल उठाए। एक अभिभावक ने कहा कि ऐसी श्‍ािक्षा काे क्‍या कहें, जब उसका नौवीं में पढ़ रहा बेटा उसका नाम तक ठीक नहीं लिख सकता।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Mon, 24 Aug 2015 05:58 PM (IST) Updated:Tue, 25 Aug 2015 10:49 AM (IST)
अभिभावकों के सवाल : यह कैसी शिक्षा, नौंवी का छात्र नाम तक नहीें लिख सकता

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़ : नई शिक्षा नीति के मंथन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित सुझाव दिवस कार्यक्रमों में अभिभावकों ने पढ़ाई के स्तर पर खूब सवाल उठाए। एक जगह तो एक अभिभावक ने कहा कि ऐसी श्ािक्षा काे क्या कहें, जब उसका नौवीं में पढ़ रहा बेटा उसका नाम तक ठीक से नहीं लिख सकता। इस पर वहां मौजूद शिक्षक बगलें झांकने लगे।

नो डिटेंशन पालिसी खत्म करने का सुझाव

इस कार्यक्रम के दाैरान अभिभावकों ने वर्तमान शिक्षा पद्धति पर खूब सवाल उठाए। ग्राम सभा की बैठकों में अभिभावकों ने नो डिटेंशन पालिसी को बच्चों के लिए नुकसानदायक बताया। अभिभावकों ने पहली से आठवीं तक फेल न करने की नीति को खत्म कर बोर्ड परीक्षाएं शुरू करने का सुझाव दिया। उन्होंने पांचवीं कक्षा के लिए भी बोर्ड परीक्षा की मांग रखी।प्राथमिक शिक्षा की बदहाल स्थिति का मुद्दा भी उठाया गया।

उनका कहना था कि प्राइमरी स्कूलों में पांच कक्षाओं में एक शिक्षक है। ऐसे में बच्चे निजी स्कूलों के छात्रों का मुकाबला पढ़ाई में कैसे कर सकते हैं। प्राइमरी स्कूलों में हर कक्षा के लिए एक शिक्षक होना चाहिए। स्कूल से बच्चों के गैर हाजिर रहने पर अभिभावकों ने सख्ती बरतने व नाम काटने का प्रावधान कड़ाई से लागू करने पर जोर दिया। शिक्षा का अधिकार कानून को लेकर स्कूल प्रबंधन ने अभिभावकों के समक्ष बच्चों के लिए किए गए प्रावधान के बारे में बताया।

यह भी पढ़ें : मनचलों से भिड़ी मर्दानी, लड़काें ने पंचायत में पेर पकड़ कर मांगी माफी

यह भी पढ़ें :छेड़छाड़ की शिकायत की तो पूरे मोहल्ले का पानी बंद किया

प्रिंसिपल व मुख्याध्यापकों ने कहा कि अब कानून सख्त हो गया है। शिक्षक बच्चे को गलती करने और बात न मानने पर डांट तक नहीं सकते। इसका भी छात्र फायदा उठा रहे हैं। अभिभावकों ने इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दी। कुछ ने डांट डपट के साथ गलती करने पर पुरातन परंपरा अपनाने व कुछ ने समझाने की बात कही।

अभिभावकों ने मुफ्त शिक्षा को दसवीं कक्षा तक लागू करने का सुझाव दिया। साथ ही वर्दी, जूतों के लिए मिलने वाला भत्ता दाखिला के समय देने की मांग की। मिडिल स्कूलों में भी सांइस लैब स्थापित करने का सुझाव भी दिया गया।

कहा, अमीर व सरकारी कर्मियों भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएं

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का भी बैठकों में कई जगह जिक्र हुआ। ग्रामीणों ने कहा कि अमीर लोग व सरकारी कर्मी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते। सरकार उनके लिए भी कानून बनाया जाए कि वे अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूलों में कराएं।

यह भी पढ़ें : चांद पर बग्घी चलाना चाहती है कैथल की जेसिका

chat bot
आपका साथी