स्वस्थ शरीर के लिए अमर राविश जगा रही योग की अलख

जेबीटी शिक्षक शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अध्यापक अमर राविश महिलाओं में योगा की अलख जगा रही है। इनका उद्देश्य सिर्फ इतना है कि कोई भी महिला बीमारी से ग्रसित न हो इसके लिए सुबह व शाम के समय कक्षाएं लगा योग के माध्यम से महिलाओं को जागरूक कर रही हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 14 Aug 2019 08:58 AM (IST) Updated:Thu, 15 Aug 2019 06:51 AM (IST)
स्वस्थ शरीर के लिए अमर राविश जगा रही योग की अलख
स्वस्थ शरीर के लिए अमर राविश जगा रही योग की अलख

जागरण संवाददाता, कैथल :

जेबीटी शिक्षक शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अध्यापक अमर राविश महिलाओं में योगा की अलख जगा रही है। इनका उद्देश्य सिर्फ इतना है कि कोई भी महिला बीमारी से ग्रसित न हो, इसके लिए सुबह व शाम के समय कक्षाएं लगा योग के माध्यम से महिलाओं को जागरूक कर रही हैं। राविश सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण देकर योग शिक्षक बना चुकी हैं। उनमें शिक्षित-अशिक्षित दोनों ही तरह की महिलाएं शामिल हैं। अब ये महिलाएं भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर घर-घर योग की अलख जगा रही हैं। राविश बताती हैं कि उनका जीवन संघर्षमय रहा है। वे मानती हैं कि उनको दूसरा जीवन मिला है और उसका उपयोग वे सामाजिक कार्यो के लिए करना चाहती हैं। यही कारण है कि वे 12 वर्षो से पंतजलि महिला समिति के जिलाध्यक्ष के पद पर कार्य कर रही हैं। उसके लिए वे थोड़े-थोड़े समय बाद योग शिविरों का आयोजन करती रहती हैं। इसके अलावा जाट स्कूल में वे पांच वर्षो से सुबह चार बजे निशुल्क योग शिविर लगाकर शहर के लोगों को स्वस्थ रहने की शिक्षा प्रदान कर रही हैं। अमर सामाजिक कार्यो से कभी पीछे नहीं हटी। उन्होंने बताया कि 2001 में जब उन्होंने हुडा स्कूल में ज्वाइन किया तो वहां 20 बच्चों के करीब पढ़ रहे थे। उसके बाद उन्होंने सामाजिक संस्थाओं के साथ काम करना शुरू किया और उनसे सहयोग लेते हुए झुग्गी-झोंपड़ियों में शिक्षा से वंचित बच्चों को स्कूल ले आई। उस समय उनकी फीस और आने-जाने का खर्च भी उन्होंने संस्थाओं के साथ उठाया।

2006 के बाद आया बदलाव :

बाबा रामदेव 2006 में कुरुक्षेत्र गुरुकुल में पीटीआइ और डीपीई को सात दिनों तक प्रशिक्षण देने के लिए आए थे। वे बतौर जेबीटी पढ़ा रही थीं तो उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी से शिविर में भाग लेने की लिए अनुमति ली और कुरुक्षेत्र पहुंची। यहीं से उनके जीवन में बदलाव आया। उसी दिन ठान लिया था कि उन्हें अब योग को घर-घर तक पहुंचाना हैं। अब वे इस कार्य में लगी रहती हैं। योग के लिए प्रेरित करने में उनके प्राध्यापक पति सूबे सिंह को भी विशेष योगदान रहा है। अब भी वह उनके साथ रोजाना शिविर में भाग लेने जाते हैं।

दिव्यांगों के लिए किया कोर्स :

राविश ने बताया कि जब उन्होंने देखा कि दिव्यांग बच्चों के साथ व्यवहार और उनकी शिक्षा में परेशानी हो रही है, तो उन्होंने रोहतक से 2007 में दिव्यांगों के लिए फाउंडेशन कोर्स किया और उसके बाद उनके जीवन में बदलाव लाने के प्रयास किए। वह उन बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ योग, खेलों, नृत्य और गायन के लिए भी प्रोत्साहित करती। यही कारण है कि आज उनसे पढ़े कुछ दिव्यांग बच्चे अपने जीवन में उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं।

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