पाशविक मनोवृत्तियां मनुष्य के प्रबल रूप से विद्यमान

संवाद सूत्र, सफीदों : जीवन के निचले स्तर की पाशविक मनोवृत्तियां मनुष्य के प्रबल रूप से विद्यमान हैं।

By Edited By: Publish:Thu, 02 Jul 2015 06:36 PM (IST) Updated:Thu, 02 Jul 2015 06:36 PM (IST)
पाशविक मनोवृत्तियां मनुष्य के प्रबल रूप से विद्यमान

संवाद सूत्र, सफीदों : जीवन के निचले स्तर की पाशविक मनोवृत्तियां मनुष्य के प्रबल रूप से विद्यमान हैं। उक्त उद्गार कथावाचक ज्योतिर्मयानंद तीर्थ महाराज ने प्रकट किए। वे बृहस्पतिवार को नगर की गुरुद्वारा कालोनी स्थित शिव शक्ति कृपा मंदिर में पुरुषोत्तम मास के मौके पर वेदाचार्य दंडी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज के पावन सानिध्य में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि अधिकतर मनुष्य खाने-पीने, बच्चे पैदा करने, लड़ने -झगड़ने और सस्ते मनोरंजन में ही अपना जीवन बीता रहे हैं। चेतना के उच्चतर स्तर पर ले जाने के लिए शारीरिक, प्राणिक और मानसिक स्तर के जीवन से ऊपर उठना आवश्यक है। प्रत्येक समाज और प्रत्येक काल में ये दो धाराएं स्पष्ट दिखाई देती हैं। समाज के अधिकांश व्यक्ति भौतिक सूखों की तलाश में भटकते रहते हैं जबकि उसी समाज के कुछ थोड़े लोग अपनी चेतना को शारीरिक-मानसिक स्तर के ऊपर उठाते हुए आध्यात्मिकता की ओर ले जाने का प्रयत्न करते हैं।

परमात्मा की उपासना सभी लोग अपने-अपने उद्देश्यों से करते हैं। अधिकांश लोग तो किसी वर्तमान शारीरिक या मानसिक कष्ट के निवारण के लिए भगवान की शरण में जाते हैं। कुछ लोग वर्तमान में बहुत कष्ट में नहीं होते पर भविष्य में अपना कोई प्रयोजन सिद्ध करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं। परीक्षा या व्यापार में सफलता के लिए की जानी वाली प्रार्थना इस कोटि में नहीं आती है। दार्शनिक प्रवृत्ति के लोग ईश्वर से कुछ मांग नहीं करते, लेकिन उसे जानना जरूर चाहते हैं।

अंतिम कोटी उन लोगों की है, जिन्होंने ईश्वर को जान व पा लिया है। वे बिना किसी आलस्य के ईश्वर की आराधना में लगे रहते हैं। उद्देश्य भले ही कुछ हो, ईश्वर की ओर मुड़ना मनुष्य के लिए श्रेयस्कर है। अपने से बड़ी शक्ति के निकट जाकर ही मनुष्य अपने आप को समझ सकता है। यदि मनुष्य की हर प्रार्थना ईश्वर मानता जाए तो मनुष्य के ¨चतन का स्तर कभी भी ऊपर नहीं उठ सकेगा। इच्छाओं के पूर्ण न होने पर ही मनुष्य ज्ञान की ओर प्रवृति होता है। ईश्वर के प्रति एक बार जिज्ञासा जगने पर जीवन के अनेक प्रकार के घुमावदार रास्तों पर से गुजरते हुए मनुष्य की चेतना के उस स्तर पर पहुंचता है, जहां वह अपने स्वरूप को ईश्वर से अभिन्न रूप में जानता है। इस मौके पर एडवोकेट सुरेश गुप्ता, नरेश मंगला, मंशाराम मित्तल, साधु राम बंधू, महेश गर्ग, महाबीर तायल, श्रवण गोयल, ईश्वर कौशिक, साधु राम तायल, पंकज मंगला व परदेशी लाल गुप्ता आदि मौजूद थे।

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