हत्‍या के दोनों केस में मुकर गए थे शिकायतकर्ता, रामपाल को फिर भी मिली उम्रकैद, जानें कैसे

मुकदमा नंबर 429 में दिल्ली के बदरपुर का शिवपाल शिकायतकर्ता था वह अदालत में पूर्व में दिए बयान से पलट गया था। मुकदमा नंबर 430 में मृतका रजनी की दादी और पति शिकायतकर्ता थे जो मुकर गए

By manoj kumarEdited By: Publish:Thu, 18 Oct 2018 03:19 PM (IST) Updated:Thu, 18 Oct 2018 07:05 PM (IST)
हत्‍या के दोनों केस में मुकर गए थे शिकायतकर्ता, रामपाल को फिर भी मिली उम्रकैद, जानें कैसे
हत्‍या के दोनों केस में मुकर गए थे शिकायतकर्ता, रामपाल को फिर भी मिली उम्रकैद, जानें कैसे

जेएनएन, हिसार : बरवाला के सतलोक आश्रम प्रकरण में हत्या के दोनों ही मामलों में पुलिस के पास ठोस गवाह नहीं था। फिर भी पुलिस और सरकारी पक्ष कोर्ट में यह साबित करने में सफल रहे कि एक सोची-समझी साजिश के तहत रामपाल ने खुद को गिरफ्तारी से बचाने के लिए अनुयायियों को ढाल बनाया था। अनुयायी बंधक बनने के कारण बाहर नहीं निकल पाए थे।मुकदमा नंबर 430 में दर्ज मामले के तहत यूपी के ललितपुर की रजनी नामक महिला की मौत हो गई थी।

    पुलिस के पास इस मुकदमे में ठोस गवाह नहीं था। इस मुकदमे में दो प्राइवेट गवाह थे। मृतका का पति सुरेश और उसकी दादी सास कांशी बाई। पुलिस ने उनको गवाह तो बना लिया, मगर वे अदालत में टिक नहीं पाए। दोनों ने आश्रम प्रमुख रामपाल के हक में बयान दे दिया था। उन्होंने कहा था कि रजनी की मौत पुलिस द्वारा छोड़े गए आंसू गैस के गोलों के कारण हुई है।

इससे पुलिस को झटका लगा था, लेकिन पुलिस कर्मियों, डाक्टरों और कुछ सुबूतों ने अदालत में रामपाल का दोष साबित कर दिया और यदि पुलिस जान से मारने की नीयत से हमला करती तो क्या चार दिन लगते। हमला करती तो क्या सिर्फ महिलाओं या बच्चे को निशाना बनाती। परिजनों की तरफ से मौत को लेकर पुलिस पर कोई एफआइआर दर्ज नहीं कराई गई। रामपाल ने अनुयायियों को इसलिए ढाल बनाया था कि पुलिस उसे गिरफ्तार न कर सके। लेकिन टकराव के दौरान रजनी और अन्य की मौत हो गई। सरकारी पक्ष का मानना है कि यदि रजनी का समय पर इलाज होता तो कहानी कुछ और होती। बंधक तब तक कैद रहे, जब तक पुलिस ने रामपाल को गिरफ्तार नहीं किया। 

पुलिस ने बनाए थे 23 गवाह

बरवाला थाना पुलिस ने हत्या के मुकदमा नंबर 430 में 23 गवाह बनाए थे। पुलिस ने मृतका रजनी के पति सुरेश, दादी सास कांशीबाई और 21 पुलिस कर्मियों व डाक्टरों को गवाह बनाया था। अदालत में सुरेश कुमार और कांशी बाई पूर्व में दिए अपने बयान से पलट गए। पुलिस कर्मियों और डाक्टरों ने आरोपितों के खिलाफ गवाही दी।

दोनों पक्षों के वकीलों ने अदालत में रखे अपने तर्क

सेंट्रल जेल वन में सजा सुनाए जाने से पहले सरकारी पक्ष और आरोपित पक्ष के वकीलों के बीच तर्क-वितर्क हुए। सरकारी पक्ष से डीए महेंद्र पाल खीचड़, डीडीए राजीव सरदाना, ओपी बिश्नोई व नरेंद्र कुमार तथा आरोपित पक्ष की तरफ से वकील एपी सिंह, जेके गक्खड़ व महेंद्र सिंह नैन अदालत में मौजूद थे। सरकारी पक्ष के वकीलों का कहना था कि दोषियों को सजा में कोई रियायत न दी जाए। उनको कड़ी से कड़ी सजा दी जाए। आरोपित पक्ष के वकीलों का कहना था कि रामपाल ने भ्रूण हत्या रोकने समेत समाजसेवा के कई काम किए हैं। कम सजा दी जाए।

स्टाफ सदस्य रहे मुस्तैद

एसआइ कर्णपाल सिंह, सतबीर सिंह, एएसआइ कर्मबीर सिंह, नायब कोर्ट एएसआइ डूंगर सिंह, रीडर विजय धवन, राकेश जांगड़ा, अहलमद मुकेश कक्कड़, पवन कुमार, स्टेनो जतिन कुमार और नरेश गुप्ता फैसले को लेकर मुस्तैद रहे। ये वही कर्मचारी हैं, जो हत्या के दोनों मुकदमों में ट्रायल के दौरान पहले से मौजूद रहे। ये कर्मचारी सुबह सेंट्रल जेल वन में लगी अदालत में पहुंच गए थे। वे फैसले के बाद लौटे।

हत्‍या के 429 नंबर मुकदमा में भी भी यही रही स्थिति

सतलोक आश्रम प्रकरण में हत्या के मुकदमा नंबर 429 में दो डंडों की बरामदगी और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों ने आश्रम प्रमुख रामपाल, उसके बेटे वीरेंद्र उर्फ बिजेंद्र, भानजे जोगेंद्र उर्फ बिल्लू और अन्य दोषियों की सजा का रास्ता पक्का कर दिया था। इस हाईप्रोफाइल हत्या के मुकदमे को लेकर पुलिस के पास ऐसा कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, जो दोषियों को सजा सुनाने के लिए अहम कड़ी साबित होता। बरवाला थाना पुलिस ने 18 नवंबर 2014 को आश्रम में संगरूर की मलकीत कौर, राजबाला, संतोष, आदर्श और दिल्ली की सरिता की मौत हो गई थी। पुलिस ने इस संबंध में हत्या का केस दर्ज कर आश्रम प्रमुख रामपाल समेत 15 को आरोपित बनाकर गिरफ्तार किया था।

शिकायतकर्ता अपने बयान से मुकर गया था

दिल्ली के बदरपुर का शिवपाल हत्या के मुकदमे का शिकायतकर्ता था। वह अदालत में पूर्व में दिए अपने बयान से पलट गया था। उसने कहा था कि आश्रम प्रमुख की वजह से नहीं, बल्कि पुलिस की वजह से सरिता और अन्य की मौत हुई है। इससे पुलिस को झटका लगा था। लेकिन फिर भी आश्रम प्रमुख रामपाल और अन्य आरोपितों को राहत नहीं मिली। उसने कहा था कि पुलिस के आंसू गैस के गोलों की वजह से ये मौतें हुई हैं।

45 में से 5 गवाह अपने बयान से पलट गए

बरवाला थाना पुलिस ने इस मुकदमे में 45 गवाह बनाए थे। इसके अलावा 13 गवाह सफाई के बनाए गए थे।

पुलिस के पांच प्राइवेट गवाह मुकर गए थे। वे न केवल मुकरे थे। उन्होंने तो आरोपितों के हक में बयान दिए थे। 40 गवाहों में पुलिस कर्मचारी, डॉक्टर और ड्यूटी मजिस्ट्रेट शामिल थे। उन 40 गवाहों ने रामपाल के खिलाफ ठोककर गवाही दी।

सरकारी और बचाव पक्ष के वकीलों में हुए तर्क-वितर्क

अदालत में सजा सुनाए जाने से पहले सरकारी पक्ष और आरोपित पक्ष के वकीलों में तर्क-वितर्क हुए। सरकारी पक्ष के वकील महेंद्र पाल, राजीव सरदाना, ओपी बिश्नोई व नरेंद्र कुमार और आरोपित पक्ष के जेके गक्खड़, एपी ङ्क्षसह व महेंद्र सिंह नैन ने सजा की अवधि पर अपनी-अपनी बात रखी। सरकारी पक्ष के वकीलों ने मामले को दुर्लभतम श्रेणी का मानने की गुहार लगाते हुए दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की। लेकिन आरोपित पक्ष के वकीलों ने कहा कि यह मामला दुर्लभतम श्रेणी का ना माना जाए और दोषियों को साधारण सजा सुनाई जाए। आश्रम संचालक ने काफी गरीब लड़कियों की शादी कराई हैं और भी नेक काम किए हैं।

स्टाफ सदस्य पहले से थे अलर्ट

इस मुकदमे को लेकर एसआइ कर्णपाल, सतबीर सिंह और अन्य चौकन्ने रहे। नायब कोर्ट एएसआइ डूंगर सिंह, रीडर विजय धवन, राकेश जांगड़ा, अहलमद मुकेश कक्कड़, पवन कुमार, स्टेनो जतिन कुमार और नरेश कुमार फैसले को लेकर चौकन्ने थे। ये स्टाफ सदस्य सुनवाई के दौरान सेंट्रल जेल वन में गए थे। वे फैसले के बाद लौटे।

साक्ष्यों ने जुर्म को किया साबित

बेशक पुलिस के पास वारदात का चश्मदीद गवाह नहीं था। फिर भी दोषियों को सजा हुई। बताया जाता है कि हाईकोर्ट ने बार-बार रामपाल को पेश होने के बारे में कहा था। उसने न सरेंडर किया और न अदालत में पेश हुआ। उसने पेश होने की बजाय आश्रम में हजारों लोगों को सत्संग के बहाने एकत्रित किया। ताकि उनको ढाल बनाया जा सके। लेकिन हालात बेकाबू हुए तो महिलाओं की मौत हो गई। कोर्ट ने माना है कि मृतक आश्रम में दोषियों के कब्जे में थे। दोषी कड़े प्रयास के बावजूद यह साबित नहीं कर सके कि वे निर्दोष हैं। उनकी मौत होने तक पुलिस आश्रम में नहीं घुसी थी। मेडिकल एविडेंस में उनकी मौत दम घुटने से होना पाया गया। यदि समय पर इलाज हो जाता तो वे बच सकते थे। कोर्ट ने मौतों को प्राकृतिक मौत नहीं माना है। 

इन धाराओं में सुनाई सजा

अदालत ने रामपाल समेत अन्य दोषियों को भादसं की धारा 302 के तहत प्राकृतिक मौत तक के कठोर कारावास और एक-एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। जुर्माना न भरने पर उनको दो-दो साल की अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी। अदालत ने दोषियों को भादसं की धारा 120-बी के तहत धारा 302 वाली सजा सुनाई है। अदालत ने उनको बंधक बनाने पर धारा 343 के तहत 2 साल की कैद और 5000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।

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