ट्रेन में BSF जवान को नशा खिला लूटा, खुद को फौजी साबित करने के लिए करनी पड़ी मिन्‍नतें

छुट्टी लेकर घर जा रहा था कश्मीर के जिला बारामूला निवासी शब्बीर अहमद। आरोपित ने खुद को डबवाली निवासी कपड़ा व्यापारी बताया था इसलिए डबवाली पहुंचा पीडि़त जवान

By Manoj KumarEdited By: Publish:Wed, 05 Feb 2020 11:35 AM (IST) Updated:Wed, 05 Feb 2020 11:35 AM (IST)
ट्रेन में BSF जवान को नशा खिला लूटा, खुद को फौजी साबित करने के लिए करनी पड़ी मिन्‍नतें
ट्रेन में BSF जवान को नशा खिला लूटा, खुद को फौजी साबित करने के लिए करनी पड़ी मिन्‍नतें

डबवाली (सिरसा) जो सेना के जवान हमारी सुरक्षा के लिए अपनी जान तक दांव पर लगा देते हैं, कुछ लोग उन्‍हें भी अपना निशाना बना लेते हैं। ऐसा ही मामला सामने आया है। अवध-आसाम ट्रेन से घर लौट रहे बीएसएफ जवान कश्मीर के बारामूला जिला के गांव सिंहपुरा निवासी शब्बीर अहमद को रास्ते में कचौरी में नशा खिलाकर लूट लिया गया। मगर हैरानी की बात ये है कि पीडि़त जवान बीएसएफ में है ये बात शुरुआत में लोग मानने को तैयार ही नहीं थे। आरोपित ने पीडि़त जवान से बातचीत के दौरान खुद को डबवाली निवासी कपड़ा व्यापारी बताया था, इसलिए उसे ढूंढते हुए जवान डबवाली पहुंच गया। बाजार में कपड़े की सभी दुकानें छान मारी, लेकिन आरोपित का सुराग नहीं लगा। इस दौरान शब्बीर को खुद को फौजी साबित करने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ी। बाद में लोगों ने उसकी मदद करते हुए घर तक का किराया दिया।

दरअसल, कटिहार जंक्शन पर आरोपित ट्रेन में शब्बीर अहमद के साथ वाली सीट पर बैठा था। बातचीत के दौरान आरोपित ने अपना नाम डबवाली निवासी नरेश बताते हुए खुद को कपड़ा व्यापारी कहा। गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) के निकट उसने शब्बीर को खाने के लिए कचौरी दी थी, जिसे खाने के बाद वह बेसुध हो गया। बेहोशी की हालत में वह मंगलवार सुबह बठिंडा रेलवे स्टेशन पर पहुंचा, जहां जीआरपी ने उसे ट्रेन से नीचे उतारा। होश में आने पर उसने बताया कि उसके पर्स से जरूरी कागजात और 18 हजार रुपये गायब है। इसके बाद आरोपित को ढूंढता हुआ शब्बीर डबवाली पहुंचा।

40 दिन की छुट्टी पर घर लौट रहा था

शब्बीर अहमद के अनुसार वह बीएसएफ की 193 बीएन बटालियन में कार्यरत है। उसका परिवार कश्मीर में सेब की खेती करता है। वह 40 दिन की छुट्टी लेकर घर जा रहा था, ताकि सेब के बाग को ठेके पर दे सकें। वह गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से अवध-आसाम एक्सप्रेस में सवार हुआ था। गोरखपुर के नजदीक कचौरी खाने के बाद उसे कुछ पता नहीं कि क्या हुआ। वह अभी तक परिजनों को सूचित नहीं कर सका है, क्योंकि बारामूला इलाके में मोबाइल सेवा शुरू नहीं हुई है।

मेरे पिता फौजी थे, वो कारगिल युद्ध लड़े थे, मेरा विश्वास करो

वर्दी होने के बावजूद शब्बीर अहमद को अपने नाम के कारण काफी परेशानी हुई। क्योंकि शब्बीर अहमद डार के नाम से खूंखार आतंकी भी रहा है। ऐसे में खुद को फौजी साबित करने के लिए उसे काफी मिन्नतें करनी पड़ी। उसने आधार कार्ड की फोटो कॉपी दिखाते हुए बताया कि मेरे पिता गुलाम मोहम्मद डार बीएसएफ में थे। उन्होंने कारगिल युद्ध लड़ा था। मैं 1996 में सेना में भर्ती हुआ था। मणिपुर में नक्सली अटैक के दौरान उसके दाएं कंधे के निकट गोली लगी थी। उसने गोली के निशान दिखाए तो लोगों को भरोसा हुआ। उसकी मदद करते हुए उसे घर तक पहुंचने का किराया दिया।

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