फिल्‍म रिव्‍यू: बेअसर और बहकी 'नूर' ( 2 स्टार)

‘नूर’ में बतौर अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्‍हा कुछ नया करती हैं। वह अपने निषेधों को तोड़ती है। खिलती और खुलती हैं, लेकिन लेखक और निर्देशक उनकी मेहनत पर पानी फेर देते हैं।

By मनोज वशिष्ठEdited By: Publish:Thu, 20 Apr 2017 11:54 AM (IST) Updated:Fri, 21 Apr 2017 06:51 AM (IST)
फिल्‍म रिव्‍यू: बेअसर और बहकी 'नूर' ( 2 स्टार)
फिल्‍म रिव्‍यू: बेअसर और बहकी 'नूर' ( 2 स्टार)

 -अजय ब्रह्मात्‍मज

मुख्य कलाकार: सोनाक्षी सिन्हा, पूरब कोहली, शिबानी डांडेकर, कनन गिल आदि।

निर्देशक: सुनील सिप्पी

निर्माता: भूषण कुमार

स्टार: ** (दो)

जब फिल्‍म का मुख्‍य किरदार ‘एक्‍शन’ के बजाए ‘नैरेशन’ से खुद के बारे में बताने लगे और वह भी फिल्‍म आरंभ होने के पंद्रह मिनट तक जारी रहे तो फिल्‍म में गड़बड़ी होनी ही है। सुनील सिप्पी ने पाकिस्‍तानी पत्रकार और लेखिका सबा इम्तियाज के 2014 में प्रकाशित उपन्‍यास ‘कराची,यू आर किलिंग मी’ का फिल्‍मी रूपांतर करने में नाम और परिवेश के साथ दूसरी तब्‍दीलियां भी कर दी हैं। बड़ी समस्‍या कराची की पृष्‍ठभूमि के उपन्‍यास को मुंबई में रोपना और मुख्‍य किरदार को आयशा खान से बदल कर नूर राय चौधरी कर देना है। मूल उपन्‍यास पढ़ चुके पाठक मानेंगे कि फिल्‍म में उपन्‍यास का रस नहीं है।

कम से कम नूर उपन्‍यास की नायिका आयशा की छाया मात्र है। फिल्‍म देखते हुए साफ पता चलता है कि लेखक और निर्देशक को पत्रकार और पत्रकारिता की कोई जानकारी नहीं है। और कोई नहीं तो उपन्‍यासकार सबा इम्तियाज के साथ ही लेखक,निर्देशक और अभिनेत्री की संगत हो जाती तो फिल्‍म मूल के करीब होती। नूरऐसा आग्रह करना उचित नहीं है कि फिल्‍म उपन्‍यास का अनुसरण करें, लेकिन किसी भी रूपांतरण में यह अपेक्षा की जाती है कि मूल के सार का आधार या विस्‍तार हो। इस पहलू से सुनील सिन्‍हा की ‘नूर’ निराश करती है। हिंदी में फिल्‍म बनाते समय भाषा, लहजा और मानस पर भी ध्‍यान देना चाहिए। ‘नूर’ महात्‍वाकांक्षी नूर राय चौधरी की कहानी है। वह समाज को प्रभावित करने वाली स्‍टोरी करना चाहती है, लेकिन उसे एजेंसी की जरूरत के मुताबिक सनी लियोनी का इंटरव्‍यू करना पड़ता है। उसके और भी गम है। उसका कोई प्रेमी नहीं है। बचपन के दोस्‍त पर वह भरोसा करती है, लेकिन उससे प्रेम नहीं करती।

नौकरी और मोहब्‍बत दोनों ही क्षेत्रों में मनमाफिक न होने से वह बिखर-बिखरी सी रहती है। एक बार वह कुछ कोशिश भी करती है तो उसकी मेहनत कोई और हड़प लेता है। बहरहाल, उसका विवेक जागता है और मुंबई को लांछित करती अपनी स्‍टोरी से वह सोशल मीडिया पर छा जाती है। उसे अपनी स्‍टोरी का असर दिखता है, फिर भी उसकी जिंदगी में कसर रह जाती है। फिल्‍म आगे बढ़ती है और उसकी भावनात्‍मक उलझनों को भी सुलझाती है। इस विस्‍तार में धीमी फिल्‍म और बोझिल हो जाती है। अफसोस है कि नूर को पर्दे पर जीने की कोशिश में अपनी सीमाओं को लांघती सोनाक्षी सिन्‍हा का प्रयास बेअसर रह जाता है।

‘नूर’ में बतौर अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्‍हा कुछ नया करती हैं। वह अपने निषेधों को तोड़ती है। खिलती और खुलती हैं, लेकिन लेखक और निर्देशक उनकी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। 21 वीं सदी की मुंबई की एक कामकाजी लड़की की दुविधाओं और आकांक्षाओं की यह फिल्‍म अपने उद्देश्‍य तक नहीं पहुंच पाती।

अवधि: 116 मिनट 

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