Vijay Shekhar Gupta: सुशांत सिंह पर बेस्ड फिल्म में इन स्टार्स की भी होगी कहानी, रहस्मयी तरीके से हुई थी जिनकी मौत
सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद सनोज मिश्रा ने उन पर फिल्म सुशांत बनाने का ऐलान परिवार की अनुमति के बिना ही कर दिया। विरोध के बाद उन्होंने फिल्म का नाम शशांक कर दिया।
नई दिल्ल, जेएनएन। सुशांत सिंह राजूपत के निधन के चंद दिनों बाद ही उन पर दो फिल्में बनाने की घोषणा हुई। उत्तर प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे पर फिल्म और वेब सीरीज दोनों बनाने की घोषणा हो चुकी है। इससे पहले भी मुजफ्फरनगर दंगों, आरुषी कांड, जेसिका लाल हत्या मामले सहित कई चर्चित कांड और घटनाक्रमों पर फिल्में बनी हैं। सनसनीखेज मुद्दों पर फिल्मनिर्माण के पीछे की सोच और बॉक्स ऑफिस पर उनकी सफलता के समीकरण की पड़ताल कर रही हैं स्मिता श्रीवास्तव...
पिछले साल तत्कालीन राज्य जम्मू एवं कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद कई फिल्मकारों ने धड़ाधड़ उससे जुड़ाव रखते शीर्षक का पंजीकरण करा लिया। कुछ ने फिल्म बनाने का ऐलान भी किया। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मौत का मसला अभी सुलझा भी नहीं है और उन पर दो फिल्में बनाने की घोषणा हो चुकी है। अजय देवगन लद्दाख की गलवन घाटी में भारतीय और चीनी सेना के बीचहुई खूनी भिड़ंत में भारतीय जवानों की शहादत की कहानी को बड़े पर्दे पर दिखाएंगे। उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे पर भी फिल्म बनाने की घोषणा हो चुकी है। विकास दुबे पर ही हंसल मेहता ने वेब सीरीज बनाने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि राजनीति, अपराध और कानून बनाने वालों का गठजोड़ दिखाती यह एक बेहतरीन थ्रिलर फिल्म होगी। उपरोक्त फिल्मों के निर्माण की योजना से ही यह स्पष्ट है कि जो मुद्दे सुर्खियां बटोरते हैं, उन्हें भुनाने की कोशिश में फिल्मकार फिल्म बनाने की घोषणा कर डालते हैं।
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विषय का प्रासंगिक होना जरूरी:
पिछले साल अजय बहल ने मी टू अभियान की पृष्ठभूमि में फिल्म 'सेक्शन 375' का निर्देशन किया था। चर्चित मुद्दों पर फिल्म बनाने के संबंध में अजय कहते हैं, 'जब आप समसामयिक मुद्दों पर फिल्म बनाते हैं तो निश्चित रूप से वह दर्शकों का ध्यान आकर्षित करती है। हालांकि इसका दूसरा पहलू है कि उन पर विवाद होने की संभावना भी रहती है।' सुशांत सिंह राजपूत के निधन के करीब दस दिन बाद सनोज मिश्रा ने उन पर फिल्म 'सुशांत' बनाने का ऐलान परिवार की अनुमति के बिना ही कर दिया। विरोध के बाद उन्होंने फिल्म का नाम 'शशांक' कर दिया। उन्होंने फिल्म का पोस्टर भी जारी कर दिया है। इस बीच निर्माता विजय शेखर गुप्ता ने भी सुशांत को लेकर फिल्म बनाने की घोषणा कर डाली।
सनोज मिश्रा कहते हैं, 'सुशांत की बहन ने फिल्म पर आपत्ति जताई है। मैं उनके स्वजनों से इस मुद्दे पर बात करूंगा। उसके बाद इस पर आगे बढ़ेंगे। मुझे लगा कि हमें नाम को लेकर कोई विवाद नहीं खड़ा करना है, इसलिए उसका नाम बदलकर 'शशांक' कर दिया, पर चीजें उसमें वास्तविक ही दिखाई जाएंगी। इस कहानी का अंत अभी हमारे पास नहींहै, क्योंकि जांच चल रही है। यह उनकी बायोपिक नहींहोगी। अगर सब ठीक रहा तो फिल्म की शूटिंग दिसंबर में आरंभ होगी। लोग भी उनकी मृत्यु का सच जानना चाहते हैं।'
मौका भुनाने पर तर्क:
उधर निर्माता विजय शेखर गुप्ता, सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की कहानी को दिखाकर लाभ कमाने की मंशा को खारिज करते हैं। उनकी फिल्म का संभावित शीर्षक सुसाइड या मर्डर है। विजय कहते हैं, 'यह सिर्फ सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म नहीं है। यह परवीन बॉबी, दिव्या भारती, जिया खान की कहानी भी है। उन सभी की फिल्मी पृष्ठभूमि नहीं थी। उनके अवसादग्रस्त होने की बातें कही गईं। सबकी मौत रहस्यमयी थी। हालांकि मेरी फिल्म का मुख्य विषय है नेपोटिज्म और बॉलीवुड माफिया। मैंने इसे कभी सुशांत से प्रेरित नहीं कहा। सुशांत का एक एंगल है। अगर मौका भुनाने की बात होती तो मैं नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर फिल्म बनाता। यह फिल्म मैं 2013 में तब बनाना चाहता था जब जिया खान की मौत हुई थी। उस समय कुछ निजी कारणों से फिल्म बन नहीं पाई। मगर सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान के बाद सुशांत के निधन की खबर आई तो मुझे यह वक्तसही लगा। फिल्म की शूटिंग सितंबर के अंत में नोएडा में शुरू होगी।'
प्रथम रहने की होड़:
गैंगस्टर विकास दुबे पर फिल्म बनाने की घोषणा करने वाले निर्माता संदीप कपूर मानते हैं कि चर्चित कांड पर फिल्म बनाने में खतरा भी होता है। संदीप कहते हैं, 'समसामयिक मुद्दे ध्यान खींचते हैं। एक रोचक कहानी मिलती है। दर्शक भी उसे देखना चाहते हैं। मगर ऐसे मुद्दों पर कई फिल्मकारों की नजर होती है। हमने भी शीर्षक के लिए आवेदन किया है। इस कहानी पर वेब सीरीज भी बन रही है। यह खतरा तो रहता है कि कोई दूसरा फिल्मकार उसे पहले न बना ले। एक ही विषय पर अगर कोई फिल्म पहले आ जाए तो दूसरे की उतनी अहमियत नहीं रह जाती है, जैसे गंजेपन की समस्या पर दो फिल्में आईं। 'बाला' में आयुष्मान खुराना जैसे स्टार थे। वह फिल्म हिट रही, जबकि 'उजड़ा चमन' नहीं चली। बड़े स्टार की मौजूदगी भी कुछ हद तक मायने रखती है। यह चुनौती होती है कि कौन पहले बाजी मारता है।'
सितारों की मौजूदगी अहम:
अजय बहल भी सहमति जताते हैं कि बड़े स्टार की मौजूदगी उस फिल्म की ओर लोगों को ज्यादा खींचती है। वह कहते हैं, 'स्टार की मौजदूगी से फिल्म को सिनेमाघरों में अच्छी शुरुआत मिलने की उम्मीद रहती है। सितारों को अच्छी फीस भी मिलती है। अगर सभी कलाकारों की फिल्मों को सिनेमाघरों में अच्छी शुरुआत मिल जाए तो हमारा सिस्टम ही बदल जाएगा। दरअसल, सिनेमा रचनात्मक अभिव्यक्ति और कला का माध्यम होने के साथ व्यवसाय भी है। फिल्म निर्माण महंगी प्रक्रिया है। बाकी कलाओं में इतने पैसों की जरूरत नहीं होती।'
सफलता की गारंटी नहीं:
चर्चित मुद्दों पर बनने वाली फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर सफलता मिलने के संबंध में ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन कहते हैं, 'हर दौर में ऐसा होता है कि कोई मुद्दा या कांड सुर्खियां बटोरता है। ऐसे विषयों पर फिल्म निर्माण की घोषणा को लेकर होड़ होती है। भले बाद में फिल्म बने या न बने। जल्दबाजी में लाई गई फिल्मों की बॉक्स ऑफिस पर सफलता की गारंटी नहीं होती। मिसाल के तौर पर मुजफ्फरनगर में हुए दंगों पर चार फिल्में बनी थीं, पर कोई भी सफल नहीं रही। वे फिल्में सेंसर बोर्ड में भी अटकी थीं। जहां तक 'बाटला हाउस', 'नो वन किल्ड जेसिका', 'तलवार' जैसी फिल्मों की बात है तो वे घटनाक्रम के कुछ साल बाद आई हैं। फिल्मकारों ने उन पर गहनता से काम किया। 'बाटला हाउस' में जॉन अब्राहम जैसे स्टार की मौजूदगी भी दर्शकों
को खींचती है। यह भी फिल्म की सफलता का एक अहम कारण है।'
बॉक्स
रचनात्मक स्वतंत्रता की भी सीमा चर्चित मुद्दों पर फिल्म निर्माण में रचनात्मक स्वतंत्रता के बाबत अतुल मोहन कहते हैं, 'चर्चित मुद्दों पर फिल्म बनाने के दौरान आप तथ्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं। आप लोकेशन और किरदारों के नाम के साथ कुछ हेरफेर कर सकते हैं, पर अपनी तरफ से कहानी का अंत नहीं बदल सकते हैं। जब लोगों को तथ्य पता हों और आप उनमें छेड़छाड़ करते हैं तो वहीं पर फेल हो जाते हैं।'
विवाद से प्रचार
'सेक्शन 375' रिलीज से पहले विवादों के घेरे में आई थी। उसके निर्देशक अजय बहल के मुताबिक, फिल्म का ट्रेलर देखकर कुछ लोगों को लगा था कि वकीलों की छवि को गलत तरीके से दिखाया गया है, जबकि ऐसा कुछ नहींथा। हालांकि यह सच है कि कई बार कुछ लोग प्रचार पाने के लिए विवादों की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। मामला अदालत चला गया तो प्रचार मिल जाता है। कई बार मामले का निपटारा अदालत के बाहर ही हो जाता है। वरना सेंसर बोर्ड से फिल्म पास होने के बाद कोई विरोध मायने नहीं रखता है।