बदल रहा है हॉरर फिल्मों का मिजाज, धीरे-धीरे दर्शकों में बढ़ रही है हॉरर जॉनर में रुचि

हॉरर कॉमेडी फिल्मों में ‘चमत्कार’ ‘भूल भुलैया’ ‘गोलमाल अगेन’ ‘स्त्री’ जैसी फिल्में आईं। इससे पहले भी कई हॉरर कॉमेडी आईं लेकिन चली नहीं। अब ‘रुही अफजाना’ ‘भूत पुलिस’ जैसी कई हॉरर कॉमेडी फिल्में बन रही हैं। ‘स्त्री’ का कंटेंट बहुत अच्छा था इसलिए पसंद की गई।

By Priti KushwahaEdited By: Publish:Fri, 04 Dec 2020 03:55 PM (IST) Updated:Fri, 04 Dec 2020 03:55 PM (IST)
बदल रहा है हॉरर फिल्मों का मिजाज, धीरे-धीरे दर्शकों में बढ़ रही है हॉरर जॉनर में रुचि
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स्मिता श्रीवास्तव, जेएनएन। बीते दिनों अक्षय कुमार अभिनीत हॉरर थ्रिलर फिल्म ‘लक्ष्मी’ आई। भूमि पेडणेकर अभिनीत ‘दुर्गामती’ 11 दिसंबर को अमेजॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज होगी। अगले साल हॉरर कॉमेडी में ‘रुही अफजाना’, ‘फोन भूत’, ‘भूत पुलिस’, ‘भूल भळ्लैया 2’ आएगी। उसके अलावा ‘द वाइफ’, मलयालम फिल्म ‘एजरा’ की हिंदी रीमेक समेत कई हॉरर फिल्में आ रही हैं। इन दिनों हॉरर के साथ कॉमेडी व मनोवैज्ञानिक पहलू को शुमार करने का ट्रेंड बढ़ा है, जबकि कुछ फिल्मकार विशुद्ध हॉरर फिल्में बनाने में रुचि ले रहे हैं। हॉरर फिल्मों की दुनिया में आए बदलाव की पड़ताल कर रही हैं स्मिता श्रीवास्तव... 

कमाल अमरोही की फिल्म ‘महल’ को हिंदी सिनेमा की पहली हॉरर फिल्म कहा जाता है। उसमें डर दर्शाने वाले सभी तत्व मसलन भूत बंगला, सफेद साड़ी में लिपटी भूत जैसी दिखती महिला और कब्रिस्तान शामिल थे। उसके बाद आई ‘वो कौन थी’, ‘जॉनी दुश्मन’ हिट रही थीं। राम गोपाल वर्मा निर्देशित ‘रात’ ने हॉरर जॉनर को नया अर्थ दिया। हालांकि यह फिल्म रामसे ब्रदर्स की ‘दो गज जमीन के नीचे’ के करीब 22 साल बाद आई थी।‘पुराना मंदिर’ रामसे ब्रदर्स की सबसे बड़ी हिट फिल्म थी। उनके हिस्से में भले ही कोई अवार्ड नहीं आया, लेकिन इस जॉनर में उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। वक्त के साथ हॉरर फिल्मों में बदलाव भी आया है। डराने के तरीकों में बदलाव: ‘राज’, ‘1920’, ‘शापित’, ‘हांटेड 3डी’ जैसी हॉरर फिल्में बनाने वाले विक्रम भट्ट कहते हैं, ‘कहानी बदलेगी, किरदार और लोकेशन बदलेंगे। डराने के चुनिंदा तरीके होते हैं। साउंड इफेक्ट या किसी चीज से झटका दें, ताकि इंसान झटका खाकर डर जाए या फिर धीरे-धीरे बैकग्राउंड म्यूजिक, कैमरा और लाइटिंग के साथ आप ऐसा माहौल बनाएं, जहां उसे लगे जैसे रूह में डर बस गया है। हम हॉरर फिल्मों में साउंड इफेक्ट को डायलॉग्स की तरह इस्तेमाल करते हैं। जब हॉरर फिल्म बनाते हैं तो यही तरीके इस्तेमाल करते हैं। इन्हें छोड़कर अन्य तरीका है ही नहीं।’ 

धीरे-धीरे बढ़ रही है हॉरर जॉनर में रुचि: हॉरर फिल्मों में अभी तक चुनिंदा फिल्मकारों की दिलचस्पी रही है। इसकी वजह इंगित करते हुए ‘1920- एविल रिटर्न्स’, ‘रागिनी एमएमएस 2’ जैसी फिल्मों के निर्देशक भूषण पटेल कहते हैं, ‘हॉरर पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा देखा जाने वाला जॉनर है। भारत में भी उसे काफी पसंद किया जाता है। अब बड़े सितारे भी हॉरर फिल्में करने लगे हैं, इसलिए फिल्मों की संख्या बढ़ने लगी है। अगर वे नहीं होंगे तो निर्माता कम हो जाएंगे। कहते हैं कि हॉरर में स्टार की जरूरत नहीं होती है, क्योंकि स्टार डरता नहीं है। अगर शाह रुख खान को हॉरर फिल्म का प्रस्ताव मिले तो उन्हें भूत से डरना होगा। 

उनकी छवि ऐसी है कि वह डर नहीं सकते। लिहाजा कहानी में परिवर्तन करना पड़ेगा। हॉरर फिल्मों में विजुअल इफेक्ट्स के लिए हमें बजट चाहिए होता है। हमारी फिल्मों की तुलना हॉलीवुड से होती है। वहां के बड़े-बड़े सितारे हॉरर फिल्में करते हैं। हमारे यहां बड़े कलाकार न होने की वजह से हमारा बजट कम हो जाता है। दूसरा, हॉरर पसंद करने वालों को अन्य जॉनर की फिल्में पसंद हैं, लेकिन अन्य जॉनर को पसंद करने वालों को हॉरर पसंद नहीं है, इसलिए कम लोग बनाते हैं। रामगोपाल वर्मा, विक्रम भट्ट और मेरे जैसे कुछ निर्देशकों ने इस जॉनर का बीड़ा उठा रखा है। हालांकि अब नए फिल्ममेकर्स भी इसमें दिलचस्पी ले रहे हैं।’ 

हॉरर फिल्मों में फॉर्मूला: भारतीय हॉरर फिल्मों को लेकर कहा जाता है कि वे फॉर्मूला पर चलती हैं। इस बाबत विक्रम भट्ट कहते हैं, ‘हॉलीवुड फिल्में भी फॉर्मूला पर चलती हैं। हर फिल्म फॉर्मूला होती है, कहानी फॉर्मूला होती है। नॉन फॉर्मूला जैसी कोई फिल्म नहीं होती है। या तो लड़के को लड़की मिलेगी या नहीं मिलेगी या दोनों मर जाएंगे। लव स्टोरी की तीन एंडिंग हो सकती हैं। कुछ लिमिटेड एंडिंग हो सकती हैं। प्रतिशोध, एक्शन और हॉरर फिल्मों में फॉर्मूला होता है। या तो मॉनस्टर या स्पिरिट को आप मारते हैं या वह आपको मार देता है या उसे पार्ट 2 के लिए छोड़ दिया जाता है। मुझे नहीं पता है कि लोग इसे फॉर्मूला क्यों कहते हैं। कहानी का एक स्ट्रक्चर होता है। कहानी का अंत बुरा हो सकता है या अच्छा हो सकता है। दो फॉर्मूला हो सकते हैं, तीसरा नहीं हो सकता है। फॉर्मूला में रहते हुए आप क्या नया कर सकते हैं वह अंतर होता है।’ 

हिट फिल्मों के रीमेक: अक्षय की फिल्म ‘लक्ष्मी’ साउथ की फिल्म ‘कंचना- मुनि 2’ की रीमेक थी। भूमि पेडणेकर अभिनीत ‘दुर्गामती’ भी तेलुगु फिल्म ‘भागमती’ की रीमेक है। इसके अलावा मराठी फिल्म ‘लपाछपी’ की रीमेक ‘छोरी’ और मलयालम फिल्म ‘एजरा’ की रीमेक बन रही है। इन फिल्मों को उनके मूल फिल्मों के निर्देशक ही बना रहे हैं। ‘दुर्गामती’ बनाने को लेकर निर्देशक अशोक कहते हैं, ‘ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाने के लिए रीमेक बेहतर विकल्प होता है। मेरी फिल्म की बात करें तो कांसेप्ट भी वैसा ही है। हर जगह लोग भूत में विश्वास करते हैं। यह यूनिवर्सल कांसेप्ट है तो हिंदी में क्यों न बनाया जाए। मेरी फिल्म की हिंदी डबिंग भी पसंद की गई। हिंदी में बनाने के दौरान इसमें कुछ बदलाव किए हैं। लिहाजा मूल फिल्म की तुलना में बड़ी दिख रही है।' 

हॉरर फिल्मों में बड़े कलाकारों की बढ़ती दिलचस्पी को लेकर ‘दुर्गामती’ के अभिनेता अरशद वारसी कहते हैं, ‘मैंने कभी हॉरर फिल्म नहीं की। यह कहानी इतनी अच्छी लगी कि मैंने स्वीकार कर लिया। अगर कोई और कहानी अच्छी लगी तो उसे करूंगा। बात सेंसबिलिटी की होती है कि कौन बना रहा है, क्या सोच है उस फिल्म में। अगर कहानी अच्छी है तो किसी कलाकार को जॉनर से समस्या नहीं आनी चाहिए।’  

डर के साथ कॉमेडी: हॉरर कॉमेडी फिल्मों में ‘चमत्कार’, ‘भूल भुलैया’, ‘गोलमाल अगेन’, ‘स्त्री’ जैसी फिल्में आईं। इससे पहले भी कई हॉरर कॉमेडी आईं, लेकिन चली नहीं। अब ‘रुही अफजाना’, ‘भूत पुलिस’ जैसी कई हॉरर कॉमेडी फिल्में बन रही हैं। हॉरर के साथ कॉमेडी जोड़ने को लेकर फिल्ममेकर्स का कहना है कि हमारे यहां एक फिल्म हिट होती है तो सब उधर ही चल पड़ते हैं। ‘स्त्री’ का कंटेंट बहुत अच्छा था, इसलिए पसंद की गई। बड़े फिल्ममेकर्स की इस जॉनर में बढ़ती दिलचस्पी पर निर्देशक देबालॉय डे कहते हैं, ‘हॉलीवुड ने हमेशा हॉरर जॉनर का सम्मान किया है। उन्होंने देखा कि जापान में कम बजट में अच्छी फिल्में बन रही हैं। उन्होंने उसके अधिकार लेकर ‘द रिंग’ समेत कई स्तरीय फिल्में बनाईं। भारत में हेमंत कुमार ने ‘वो कौन थी’ जैसी क्लासिकल फिल्म बनाई। उससे पहले ‘महल’ आई। तब स्टार हॉरर फिल्मों में काम करते थे।  

उसके बाद ‘दो गज जमीन के नीचे’ रामसे ब्रदर्स ने बनाई। बाद में भारत में स्टार्स की सोच में तब्दीली दिखी। वे सोचते हैं कि हॉरर में डर ही स्टार है, इसलिए उन्होंने इससे दूरी बना ली। जहां तक हॉरर में कॉमेडी मिक्स करने का सवाल है तो कॉमेडी सेफ जॉनर है। हॉरर का अपना दर्शक वर्ग है। ‘स्त्री’ में हॉरर के साथ कॉमेडी भी डाल दी। मैं ‘ब्रिगेंजा बंगलो’ नामक हॉरर फिल्म पर काम कर रहा हूं। उसे अगले साल शुरू करने की योजना है। कोविड-19 की समस्या हल हो गई तो ऑडियंस को थिएटर लाने के लिए यह सेफ जॉनर है। थिएटर का साउंड ट्रैक बहुत बड़ा रोल प्ले करता है। इसमें आपका हीरो वीएफएक्स भी है। अगर उस पर पैसे खर्च करके फिल्म बनाएं तो दर्शक देखने के लिए तैयार हैं।

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