Happy Birthday Kalyan Ji: जानें- कैसे एक नाम 'कल्याणजी आनंदजी' में शामिल हो गए दो भाई

Happy Birthday Kalyan Ji सुभाष देसाई ने कहा कि आप दोनों साथ में काम करते हैं तो अपना नाम बदलकर कल्याणजी आनंदजी कर लीजिए।

By Rajat SinghEdited By: Publish:Tue, 30 Jun 2020 04:28 PM (IST) Updated:Tue, 30 Jun 2020 04:28 PM (IST)
Happy Birthday Kalyan Ji: जानें- कैसे एक नाम 'कल्याणजी आनंदजी' में शामिल हो गए दो भाई
Happy Birthday Kalyan Ji: जानें- कैसे एक नाम 'कल्याणजी आनंदजी' में शामिल हो गए दो भाई

मुंबई (स्मिता श्रीवास्तव)।  नीले नीले अंबर पर, पल पल दिल के पास, बेखुदी में सनम, क्या खूब लगती हो समेत कई कालजयी गानों को संगीतबद्ध करने वाले कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी में भले ही कल्याण जी साथ छोड़ गए, लेकिन छोटे भाई आनंदजी की खूबसूरतों यादों में बसे हैं। बड़े भाई के 92वें जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए आनंद जी ने कहा, 'कल्याणजी को पानी पूड़ी बहुत पसंद थी। उनके जन्मदिन पर सबको पता होता था कि घर पर पानी पूड़ी जरुर मिलेगी। उन्हें बधाई देने के लिए घर पर तमाम दोस्त और कलाकार आते थे। वह दिन पानी पूडी डे के तौर पर मनने लगा था।'

उन्होंने आगे बताया, 'अपने खान-पान के प्रति सजगता बरतने वाले कई कलाकारों की जब कभी पानी पूड़ी खाने की इच्छा करती तो कल्याण जी को ही फोन करते थे। वह चुटकुले भी बहुत सुनाते थे।  कल्याण जी को पेन के संग्रह का बहुत शौक था। खास तौर पर फाउंटेन पेन। उन्हें तोहफे में पेन मिलता था तो खुश हो जाते थे। मैंने उन्हें कभी गुस्सा करते नहीं देखा। वाद्ययंत्रों में उन्हें हारमोनियम बजाने का बहुत शौक था। वह गप्पबाजी में समय बर्बाद नहीं करते थे। सुबह जल्दी उठ जाते थे। कई बार सुबह सात बजे ही ऑफिस पहुंच जाया करते थे। जबकि ऑफिस में कोई 11 बजे से पहले आता नहीं था। उन्होंने कई नए गायकों को मौका दिया था। उनका कहना था कि मुहम्मद रफी, किशोर कुमार, मन्ना डे, मुकेश जैसे गायक हमें मिल गए थे। आने वाले समय यह गायक अपनी आवाज से अमर होंगे, लेकिन दुनिया में नहीं होंगे। हम संगीतकारों को नए गायकों को तैयार करके रखना होगा। इसलिए बहुत सारे बच्चों को प्रशिक्षण भी देते थे। वह गायकी के साथ गाने के एक्सप्रेशन जैसी छोटी-छोटी चीजें भी सिखाते थे।'

कल्याण जी की नागिन की धुन काफी लोकप्रिय हुई थी। उस संबंध में आनंद जी बताते हैं, 'कल्याण जी भाई एक नई बीन लेकर आए थे जिसका नाम था कल्वायलिन। यह पहला सिंथेसाइजर (इलेक्ट्रानिक वाद्ययंत्र) था, जिसमें कई तरह का संगीत बजता था। उसमें से नागिन की बीन बजी थी। आज तक वह नागिन की बीन चल रही है।'

अपनी जोड़ी बनाने के संबंध में आनंदजी बताते हैं, 'शुरुआत में कल्याणजी वीरजी के साथ मिलकर हम शो करते थे। एक बार ऑर्केस्ट्रा में निर्माता सुभाष देसाई आए। उन्होंने कहा कि मेरी फिल्म में आपको संगीत देना है। हमने कहा कि हमने तो यह काम पहले नहीं किया। उन्होंने कहा कि आप लोग कर सकते हैं। मैं ऑर्केस्ट्रा में गाने और घोषणा करने का काम करता था। हम नागिन के बीनवादक कल्याणजी वीरजी शाह एंड पार्टी नाम इस्तेमाल करते थे। शुरुआत में कल्याणजी वीरजी शाह नाम से फिल्म में काम करना शुरू किया। पहली फिल्म थी सम्राट चंद्रगुप्त जो 1958 में रिलीज हुई थी। उसका गाना चाहे पास हो चाहे दूर हो...प्रसिद्ध हुआ था। बेदर्द जमाना क्या जाने फिल्म का गाना कैद में है बुलबुल... मुकेश जी का गाना नैना है जादू भरे... इन गानों में कल्याणजी वीरजी यही नाम चला। फिर सुभाष देसाई अपने भाई मनमोहन देसाई को लॉन्च करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि वह हमारे साथ तीन फिल्में बनाना चाहते हैं। जिसमें से एक दिलीप कुमार, दूसरी राज कपूर और तीसरी शम्मी कपूर के साथ होगी। राज साहब के साथ हमारी पहली फिल्म छलिया था। उनकी फिल्मों के लिए शंकर जयकिशन संगीत दिया करते थे। सुभाष देसाई ने कहा कि आप दोनों साथ में काम करते हैं, तो अपना नाम बदलकर कल्याणजी आनंदजी कर लीजिए। छलिया फिल्म में हमारे सारे गाने थे। सारे गाने चले और हमारी गाड़ी चलने लगी। उसके बाद बड़े निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिलने लगा। हमने मनमोहन देसाई के साथ पहली फिल्म की तो ट्रेंड बन गया कि हम नए लोगों के साथ अच्छा काम करने वाले संगीतकार हैं।'

उन्होंने आगे बताया, 'हम दोनों के लिए फिल्म उपकार का गाना मेरे देश की धरती सोना उगले... गाने की रिकॉर्डिंग अलग अनुभव रही।। मनोज कुमार ने कहा कि खेत में सुबह से शाम क्या होता है वही हमें गाने में दर्शाना है। हम खेती से वाकिफ रहे हैं। उन दिनों लाइव रिकॉर्डिंग होती थी। हमने सुबह नौ बजे रिकार्डिंग आरंभ की। पंछी की आवाज, पानी की आवाज, जैसी चीजें भी उसी समय निकलनी होती थी। रात के चार बजे तक यह गाना चला। उसे रिकार्ड करना यादगार रहा। बाद में यह गाना काफी पसंद किया गया। आज भी लोगों की जुबान पर है।'(Photo Credit- Wikipedia)

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