" जहां भी जाओ ये लगता है तेरी महफ़िल है..."

विधि की विडम्बना देखिए जिस तारीख़ को जगजीत सिंह इस दुनिया में आये उसी तारीख़ को उर्दू शायरी का एक फनकार इस दुनिया से रुख़सत हो गया। मुक्तिदा हसन निदा फाज़ली।

By Manoj KhadilkarEdited By: Publish:Wed, 08 Feb 2017 12:48 PM (IST) Updated:Wed, 08 Feb 2017 01:07 PM (IST)
" जहां भी जाओ ये लगता है तेरी महफ़िल है..."
" जहां भी जाओ ये लगता है तेरी महफ़िल है..."

मुंबई। आठ फरवरी की तारीख़ गज़लों और उर्दू शायरी के दीवानों के लिए कभी ख़ुशी कभी ग़म जैसी है। जगजीत सिंह और निदा फाज़ली के कारण। गज़लों के बादशाह का आज बर्थडे होता है तो लफ़्ज़ों को बड़ी ही खूबसूरती से इमोशंस में पिरो देने वाले निदा की डेथ एनवर्सरी।

अभी पिछले साल की बात है जब जगजीत सिंह की आवाज़ के कुछ टुकड़े एक धूल से सने डिब्बे में बंद थे। जरुरत थी इसलिए धूल सरकाई गई और फिल्म तुम बिन 2 में ग़ज़लों का ये बादशाह फिर ज़िंदा हो गया। जगजीत सिंह आज होते तो 76 साल के होते। नहीं हैं फिर भी धूल में खिला वो फूल हैं जो हमेशा महकता रहेगा। और वैसे भी वो खुद कहा करते थे - " अपनी मर्ज़ी से कहां अपने सफ़र के हम हैं " पर विधि की विडम्बना देखिए जिस तारीख़ को जगजीत सिंह इस दुनिया में आये उसी तारीख़ को उर्दू शायरी का एक फनकार इस दुनिया से रुख़सत हो गया। मुक्तिदा हसन निदा फाज़ली।

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एक ऐसा नाम जो आम जिंदगी की डोर को अपने लफ्ज़ों की कलम से कुछ यूं सहलाता था कि बड़े बड़ों को ज़िन्दगी के मायने समझ में आ जाते थे। ठीक एक साल पहले आज ही के दिन उनका मुंबई में निधन हो गया था। बंटवारे के बाद अपना परिवार छोड़ कर भारत में ही रह गए निदा ने फिल्मों में कलम का जोर दिखाने से पहले सूरदास की एक कविता पढ़ कर शायर होने का फैसला किया था। निदा फाज़ली को उर्दू अदब के उन बिरले शायरों में माना जाता है जिन्होंने शायरी की परम्पराओं को ताक पर रखा। और ख़ास कर तब जब रिश्तों की बात हो।

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दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है।

मुशायरों से लेकर कविता के मंच पर कई चक्कर लगाने वाले निदा को करीब दस साल के बाद 1980 में फिल्म 'आप तो ऐसे ना थे' में एक गीत लिखने मिला। "तू इस तरह से मेरी ज़िन्दगी में शामिल है।" बस यहीं से निदा हर उसकी ज़िन्दगी में शामिल हो गए जिसे अपने हर इमोशंस के लिए एक आसरा चाहिए था।

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं

हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं।

निदा ने खय्याम के लिए फिल्म ‘आहिस्ता आहिस्ता’ में ".. कभी किसी को मुक्कमल जहां नहीं मिलता .." लिखा तो कमाल अमरोही के लिए रज़िया सुलतान में। लेकिन असली जुगलबंदी तब देखने मिली जब निदा और जगजीत सिंह ने साथ काम करना शुरू किया। आमिर खान की ‘सरफरोश’ का ‘होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है’ इसका सबसे बड़ा सबूत है।

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निदा हर बात से अपनी एक बात बनाने का फन जानते थे। तभी इबादत से ज़्यादा उनका जोर किसी रोते हुए बच्चे को हंसाने होता था। निदा और जगजीत ने फिल्म तरकीब में साथ काम किया लेकिन 1994 ने आया उनका अल्बम ' इनसाइट ' बेहद हिट था। उन्होंने ' सफर में धूप तो होगी,जिन्दगी की तरफ और मोर नाच जैसे संग्रह भी लिखे।

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