बर्थडे: राज्यसभा पहुंचने, पद्मश्री पाने और नेशनल फ़िल्म अवार्ड जीतने वाली पहली एक्ट्रेस थीं नर्गिस, जानें ये 5 दिलचस्प बातें

नर्गिस कहती हैं कि उन्होंने अपने और राज कपूर के बारे में सुनील दत्त को सब-कुछ बता दिया था। सुनील दत्त पर नर्गिस को काफी भरोसा था और दुनिया जानती है यह जोड़ी ताउम्र साथ रही।

By Hirendra JEdited By: Publish:Thu, 01 Jun 2017 10:31 AM (IST) Updated:Thu, 01 Jun 2017 10:54 AM (IST)
बर्थडे: राज्यसभा पहुंचने, पद्मश्री पाने और नेशनल फ़िल्म अवार्ड जीतने वाली पहली एक्ट्रेस थीं नर्गिस, जानें ये 5 दिलचस्प बातें
बर्थडे: राज्यसभा पहुंचने, पद्मश्री पाने और नेशनल फ़िल्म अवार्ड जीतने वाली पहली एक्ट्रेस थीं नर्गिस, जानें ये 5 दिलचस्प बातें

मुंबई। हिंदी सिनेमा को शुरूआती दौर में जिन अभिनेत्रियों ने उंचाई दी है उनमें एक नाम उस दौर की खूबसूरत एक्ट्रेस नर्गिस का भी है। नर्गिस राज्यसभा के लिए नॉमिनेट होने और पद्मश्री पुरस्कार पाने वाली पहली हीरोइन थीं। उनके अभिनय का जादू कुछ ऐसा था कि साल 1968 में बेस्ट एक्ट्रेस का पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड उन्हें ही दिया गया। 1 जून को नर्गिस दत्त का जन्मदिन होता है। आइये इसी बहाने जानते हैं इस कमाल की अभिनेत्री के बारे में कुछ दिलचस्प बातें..

बेबी नर्गिस के नाम से हुईं मशहूर

नर्गिस के बचपन का नाम फातिमा राशिद था। उनका जन्म 1 जून 1929 को पश्चिम बंगाल के कलकत्ता शहर में हुआ था। नर्गिस के पिता उत्तमचंद मोहनदास एक जाने-माने डॉक्टर थे। उनकी मां जद्दनबाई मशहूर नर्तक और गायिका थी। मां के सहयोग से ही नर्गिस फ़िल्मों से जुड़ीं और उनके करियर की शुरुआत हुई फ़िल्म 'तलाश-ए-हक' से। जिसमें उन्होंने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया। उस समय उनकी उम्र महज 6 साल की थी। इस फ़िल्म के बाद वो बेबी नर्गिस के नाम से मशहूर हो गयीं। इसके बाद उन्होंने कई फ़िल्में की।

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राजकपूर से बढ़ी नजदीकियां

1940 से लेकर 1950 के बीच नर्गिस ने कई बड़ी फ़िल्मों में काम किया। जैसे कि-बरसात, आवारा, दीदार और श्री 420। तब राज कपूर का दौर था। नर्गिस ने राज कपूर के साथ 16 फ़िल्में की और ज़्यादातर फ़िल्में सफल साबित हुईं। इस बीच दोनों में नजदीकियां भी बढ़ने लगीं और दोनों को एक दुसरे से प्यार हो गया और दोनों ने शादी करने का मन भी बना लिया। लेखिका मधु जैन की किताब 'द कपूर्स' के मुताबिक – "जब बरसात बन रही थी, नर्गिस पूरी तरह से राज कपूर के लिए समर्पित हो चुकी थीं। यहां तक कि जब स्टूडियो में पैसे की कमी हुई तो नर्गिस ने अपनी सोने की चूड़ियां तक बेचीं। उन्होंने दूसरे निर्माताओं की फ़िल्मों में काम करके आर.के फिल्म्स की खाली तिजोरी को भरने का काम किया।"

राजकपूर से ब्रेक-अप

समय अपनी रफ़्तार से बढ़ रहा था। राजकपूर जब 1954 में मॉस्को गए तो अपने साथ नरगिस को भी ले गए। कहते हैं यहीं दोनों के बीच कुछ ग़लतफ़हमी हुई और दोनों के बीच इगो की तकरार इतनी बढ़ी कि वह यात्रा अधूरी छोड़कर नर्गिस इंडिया लौट आईं। 1956 में आई फ़िल्म 'चोरी चोरी' नर्गिस और राजकपूर की जोड़ी वाली अंतिम फ़िल्म थी। हालांकि वादे के मुताबिक राजकपूर की फ़िल्म 'जागते रहो' में भी नर्गिस ने अतिथि कलाकार की भूमिका निभाई थी। यहां से दोनों के रास्ते बदल गए। दोनों के बीच कितना गहरा रिश्ता था इस बारे में ऋषि कपूर ने अपनी किताब 'खुल्लम खुल्ला ऋषि कपूर uncensored' में भी विस्तार से लिखा है।

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सुनील दत्त से प्यार और शादी

राज कपूर से अलग होने के ठीक एक साल बाद नर्गिस ने 1957 में महबूब ख़ान की 'मदर इंडिया' की शूटिंग शुरू की। मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान सेट पर आग लग गई। सुनील दत्त ने अपनी जान पर खेलकर नर्गिस को बचाया और दोनों में प्यार हो गया। मार्च, 1958 में दोनों की शादी हो गई। दोनों के तीन बच्चे हुए, संजय, प्रिया और नम्रता। अपनी किताब 'द ट्रू लव स्टोरी ऑफ़ नर्गिस एंड सुनील दत्त' में नर्गिस कहती हैं कि राजकपूर से अलग होने के बाद वो आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थीं। लेकिन, उन्हें सुनील दत्त मिल गए। जिन्होंने उन्हें संभाल लिया। नर्गिस कहती हैं कि उन्होंने अपने और राज कपूर के बारे में सुनील दत्त को सब-कुछ बता दिया था। सुनील दत्त पर नर्गिस को काफी भरोसा था और दुनिया जानती है यह जोड़ी ताउम्र साथ रही।

सोशल सर्विस

नरगिस एक अभिनेत्री से ज्यादा एक समाज सेविका थीं। उन्होंने असहाय बच्चों के लिए काफी काम किया। उन्होंने सुनील दत्त के साथ मिलकर 'अजंता कला सांस्कृतिक दल' बनाया जिसमें तब के नामी कलाकार-गायक सरहदों पर जा कर तैनात सैनिकों का हौसला बढ़ाते थे और उनका मनोरंजन करते थे।

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गौरतलब है कि कैंसर जैसी गम्भीर बीमारी से जूझते हुए नर्गिस कोमा में चली गयीं। 2 मई 1981 को मुंबई में उनका निधन हुआ। बता दें कि जिस दिन नर्गिस की मौत हुई उसके तीन दिन पहले ही संजय दत्त की पहली फ़िल्म 'रॉकी' रिलीज़ हुई थी।

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