यूपी विधानसभा चुनाव: सियासी दलों की जोर आजमाइश में जातीय समीकरणों का गणित
यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में सियासी दलों के जातीय समीकरण पर एक नजर।
नई दिल्ली (रवीन्द्र प्रताप सिंह)। देश के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी दल चुनावी महासमर में अपनी जीत की रणनीति तय करने में जुट गए हैं। सूबे की सियासत में जीत की सबसे बड़ी भूमिका जाति और धर्म से जुड़े समीकरण तय करते हैं। जातीय राजनीति के सच को उत्तर प्रदेश के चुनाव में अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इतिहास कहता है कि यूपी में अब तक हुए चुनावों में पिछड़े वर्ग का वोट जिसके पाले में गया है सत्ता का स्वाद उसी दल ने चखा है।
यूपी के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें तो इस राज्य में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग है। प्रदेश में सवर्ण जातियां 18 फीसद हैं, जिसमें ब्राह्मण 10 फीसद हैं। पिछड़े वर्ग की संख्या 39 फीसद है, जिसमें यादव 12 फीसद, कुर्मी, सैथवार आठ फीसद, जाट पांच फीसद, मल्लाह चार फीसद, विश्वकर्मा दो फीसद और अन्य पिछड़ी जातियों की तादाद 7 फीसद है। इसके अलावा प्रदेश में अनुसूचित जाति 25 फीसद है और मुस्लिम आबादी 18 फीसद है।
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वोट बैंक के लिहाज़ से देखें तो मुस्लिम वोट बैंक सपा का कोर वोटर माना जाता रहा है, मुस्लिम समुदाय की खासियत यह है कि इनका वोट ज्यादा बंटता नहीं है। इन्होंने बीते 15 सालों से सपा का हाथ थाम रखा है। 2012 में 16 वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भी सपा को 60 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम वोट मिले थे। वहीं, सपा के पास महज अपना परंपरागत 9 फीसद यादव वोट है जो किसी और पार्टी को नहीं जाता है, लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए ये काफी नहीं हैं।
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यूपी में दलितों की आबादी 20 फीसद है, जिनका वोट एकतरफा मायावती को जाता है। दलित वोट के साथ-साथ अगर अधिकांश मुस्लिम वोट भी मायावती को मिला तो बीएसपी को यूपी चुनाव में नंबर एक पार्टी बनने से कोई नहीं रोक सकता है। यहां पर ये याद रखना जरूरी है कि सपा की अंतर्कलह से मुस्लिम वोटों में जबरदस्त बिखराव हो सकता है। भाजपा को यूपी में आने से रोकने के लिए मुस्लिम समुदाय उस पार्टी को वोट देगी जो उनको कड़ा मुकाबला दे सके। ये मत अगर बंटते हैं तो सीधे सीधे बसपा, निर्दलीय या छोटे दलों को फायदा होगा।
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दूसरी तरफ भाजपा इस चुनाव में सीएम प्रत्याशी व चुनावी एजेंडा जैसे अहम मुद्दों पर एकमत नहीं है। माना यही जा रहा है कि यूपी चुनाव में हिंदुत्व व ध्रुवीकरण इसका मुख्य हथियार होगा। भजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दम पर 80 में से 71 सीटें जीती थी। हालांकि 1991 में जहां यूपी में बीजेपी को 221 विधानसभा सीटें मिली थीं, वह 2012 में घटकर महज़ 47 ही रह गईं। राज्य में 17 फीसद सवर्ण जातियां हैं जो परंपरागत रूप से भजपा से जुड़ी रही हैं, इनमें 10 फीसद ब्राह्मण हैं, शेष 7 फीसद में ठाकुर, बनिया और कायस्थ हैं। पिछड़े वर्ग के वोट की बात करें तो केशव प्रसाद मौर्या को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने 31 प्रतिशत ओबीसी जनसंख्या पर निशाना साधा है।