Loksabha Election 2019: दस साल में काम बेमिसाल लेकिन अब साख का सवाल

Loksabha Election 2019 में बठिंडा सीट बेहद खास है। यहां से हरसिमरत कौर बादल चुनाव लड़ती रही हैं। उन्‍होंने पिछले 10 साल में काम तो बेमिसाल किए लेकिन इस बार साख का सवाल है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Wed, 27 Mar 2019 10:09 AM (IST) Updated:Wed, 27 Mar 2019 10:11 AM (IST)
Loksabha Election 2019: दस साल में काम बेमिसाल लेकिन अब साख का सवाल
Loksabha Election 2019: दस साल में काम बेमिसाल लेकिन अब साख का सवाल

बठिंडा, [सुभाष चंद्र]। हरियाणा-राजस्थान की सीमा से सटा बठिंडा पंजाब का एकमात्र ऐसा लोकसभा हलका है जिसमें मालवा की पूरी राजनीति घूमती है। शिरोमणि अकाली दल का गढ़ होने के कारण पूरे प्रदेश की नजरें इस पर रहती हैं। कांग्रेस जहां शिअद के घर में सेंध लगाने की फिराक में रहती है, वहीं बादल परिवार के लिए अपने घर को बचाना हमेशा से चुनौती बना रहता है। आजादी के बाद से अब तक हुए चुनाव में इस हलके पर 10 बार शिअद का ही कब्जा रहा है। पिछले दो चुनावों में बादल परिवार की बहू हरसिमरत कौर बादल इस हलके से जीतीं और केंद्र में फूड प्रोसेसिंग मिनिस्टर बनीं। इतने बड़े घराने व केंद्र में मंत्री बनने के बाद लोगों से उनकी उम्मीदें भी अधिक हैं। उन्‍होंने 10 साल में यहां काम तो बहुत किए, लेकिन इस बार साख का सवाल है।

केंद्र में मंत्री होने का फायदा, लेकिन कई छोटे प्रोजेक्‍ट देख रहे राह, राज्य सरकार से चलता रहा टकराव

हरसिमरत इस मामले में जहां खुद को उम्मीदों पर खरा मानती हैं, वहीं विकास के लिए पूरे नंबर भी देती हैं। दूसरी तरफ बादल परिवार से अलग होकर कांग्रेस में शामिल हुए मनप्रीत बादल का मानना है कि हरसिमरत हलके के लिए बहुत कुछ कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। खैर, जो भी हो अब तो जनता ही बताएगी कि क्या बठिंडा में वाकई विकास की बयार बह पाई या नहीं।

वर्ष 2014 के चुनाव में मामूली अंतर से जीत और 2017 विस चुनाव में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद हरसिमरत निराशा के दौर से गुजरीं, लेकिन इसके बावजूद केंद्रीय योजनाओं के तहत वह कई बड़े प्रोजेक्ट संसदीय हलके में लेकर आईं। खासकर 925 करोड़ रुपये की लागत का ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) जैसा बड़ा प्रोजेक्ट। 

एम्स में ओपीडी का काम बीती फरवरी में शुरू होना था, लेकिन राज्य की कांग्रेस सरकार द्वारा समय पर विभिन्न एनओसी न उपलब्ध करवाए जाने के चलते उन्हें इस पर लंबी लड़ाई भी लड़नी पड़ी है। इसको लेकर कई बार हरसिमरत व कैप्टन अमरिंदर सिंह से सियासी बहस भी चली। दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप भी लगे, लेकिन अंतत: इसका काम शुरू हो गया।

बठिंडा में एयरपोर्ट की स्थापना और फिर यहां से नई दिल्ली और जम्मू के लिए उड़ानें शुरू करवाना भी हरसिमरत की विकास लिस्ट में है। केंद्रीय विश्वविद्यालय बेशक दस साल पहले शुरू हो गया था, लेकिन इसके कैंपस के लिए गांव घुद्धा में ग्रांट की मंजूरी करवा उसका निर्माण कार्य शुरू करवाने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है। 2017 में बठिंडा पासपोर्ट सेवा केंद्र, एडवांस्ड कैंसर डायग्नोस्टिक सेंटर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फूड प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी, शताब्दी ट्रेन चलवाने, बठिंडा से चंडीगढ़ और बठिंडा से अमृतसर सड़क मार्गों को फॉरलेन में तब्दील करवाने जैसे बड़े प्रोजेक्ट भी उपलब्धियों में शुमार हैं।

 

इन कार्यों को विरोधी भी उनकी उपलब्धियां मानने से इन्कार नहीं करते, लेकिन अकाली-भाजपा गठबंधन के 10 वर्ष के कार्यकाल के दौरान विभिन्न प्रोजेक्टों के केवल नींव पत्थरों तक ही सीमित रह जाने के कारण लोग उन्हें घेरने से भी नहीं हिचकिचाते।

मल्टीपर्पज एसी बस स्टैंड, शहर में मल्टीस्टोरी पार्किंग, बायो एथोनल प्लांट, सरहिंद नहर को पक्का करने सहित कई प्रोजेक्ट आज भी केवल नींव पत्थर ही खड़े हैं। अति महत्वपूर्ण इन प्रोजेक्टों के नींव पत्थर भी हरसिमरत ने ही रखे थे। केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद अंतराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम व फाइव स्टार होटल का निर्माण न करवा पाने के लिए भी लोग उन्हें कोसते हैं।

कैंसर की भयानक बीमारी, खराब भूजल, किसान खुदकुशियां और लुधियाना व चंडीगढ़ से सीधा रेल संपर्क बनाने जैसे वर्षों पुराने मुद्दे आज भी ज्यों की त्यों मुंह बाए खड़े हैं। इस दिशा में न तो वह अपनी राज्य सरकार से कुछ करवा पाईं और न ही सांसद व केंद्रीय मंत्री होने के नाते कुछ कर सकीं। शहर की घनी आबादी के बीच मानसा रोड पर स्थित स्थापित किए गए कचरा प्लांट को लेकर भी वह लोगों के गुस्से का शिकार होती रहती हैं।

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बठिंडा पर दुनियाभर के पंजाबियों की दिलचस्पी
बठिंडा हलका चूंकि लंबे समय तक आरक्षित रहा है, इसलिए बादल परिवार को फरीदकोट लोकसभा हलके से चुनाव लड़ना पड़ता रहा है। लेकिन, बठिंडा से वे अपने विश्वसनीय आरक्षित प्रत्याशी को ही चुनाव लड़ाते रहे हैं। 2009 में परिसीमन के बाद बठिंडा को जनरल व फरीदकोट को रिजर्व हलका बनाया गया तो शिअद ने हरसिमरत कौर बादल को पहली बार मैदान में उतारा। उनके मुकाबले कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के पुत्र रणइंदर सिंह को खड़ा कर दिया गया।

तत्कालीन और पूर्व मुख्यमंत्री के पारिवारिक सदस्यों के मैदान में होने के चलते यह दिग्गजों का हलका बन गया। इन चुनावों में हरसिमरत ने रणइंदर को 120948 मतों के बड़े अंतर से मात दी। 2014 में हरसिमरत के सामने कांग्रेस ने उनके देवर मनप्रीत बादल को टिकट दी तो एक फिर से बठिंडा दुनियाभर में बसे पंजाबियों की दिलचस्पी का केंद्र बन गया।

कांग्रेस व शिअद देख रहे एक-दूसरे की तरफ, खैहरा ने ठोकी ताल
इस बार बठिंडा से हरसिमरत को ही रणभूमि में उतरने की संभावना है, लेकिन फिरोजपुर हलके से भी उनका नाम उछलने की चर्चाओं के चलते बठिंडा फिर से लोगों की उत्सुकता का केंद्र बन गया है। माना जा रहा है हरसिमरत को प्रत्याशी घोषित किए जाने पर कांग्रेस फिर से उनके मुकाबले मनप्रीत बादल को उतार सकती है, इसलिए शिअद ने हरसिमरत की घोषणा न कर इस पर सस्पेंस रखा है।

बेशक दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने यहां से अपने प्रत्याशियों के पत्ते नहीं खोले, लेकिन मनप्रीत बादल व हरसिमरत ने एक बार फिर प्रचार शुरू कर दिया। आम आदमी पार्टी व अकाली दल टकसाली भी अभी चुप हैं। सिर्फ पंजाब में महागठबंधन को संजीवनी देने वाले सुखपाल खैहरा ने ही खुद को यहां से प्रत्याशी घोषित किया है।
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आचार संहिता से दो-तीन दिन पहले बांटे ग्रांट के लेटर
2009 की जीत में 1.20 लाख वोट का अंतर और 2014 में अपनी उम्मीदों के विपरीत 19,395 मतों के मामूली अंतर से हरसिमरत करीब साल भर तक नहीं उबर पाई थी। वह जीत का सर्टिफिकेट तक लेने नहीं पहुंची थीं। उनका यह सर्टिफिकेट अकाली नेता तेजिंदर सिंह मिड्डूखेड़ा लेकर गए थे। वह सालभर हलके से भी दूर ही रहीं। यही स्थिति राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद भी पैदा हुई थी।

2017-18 में उन्होंने महज पांच लाख ग्रांट ही बांटी, जबकि वर्ष 2014-15 में भी उन्होंने 2.16 करोड़ की ग्रांट वितरित की थी। इन निराशाओं के चलते इस बार उनकी उपस्थिति 2009 के मुकाबले कम रही। इसका प्रभाव 25 करोड़ रुपये की सांसद निधि बांटने पर भी पड़ा है। उन्होंने अभी तक 20 करोड़ रुपये की ग्रांट ही बांटी है। पांच करोड़ रुपये की ग्रांट के रिक्मेंडेशन लेटर चुनाव आचार संहिता लागू होने से दो-तीन दिन पहले ही बांटे। यह राशि संबंधित संस्थाओं को अब नई केंद्र सरकार बनने के बाद ही मिल पाएगी।

जितनी ज्यादा वोट उतनी ज्यादा ग्रांट
बठिंडा लोकसभा हलके में बठिंडा जिले के पांच हलकों के अलावा मुक्तसर का लंबी व मानसा जिले के तीनों विधानसभा हलके आते हैं। 2014 में हरसिमरत की जीत की वजह मुख्य रूप से लंबी और मानसा का सरदूलगढ़ हलका बने थे। उस कारण सांसद बनने के बाद उन्होंने अधिकतर दौरे मानसा जिले के ही किए। सांसद निधि का 50 प्रतिशत हिस्सा अकेले मानसा जिले के तीन विस हलकों में वितरित किया।

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विवाद: स्मृति ईरानी के साथ किकली को लेकर आलोचना का शिकार
यूं तो व्यक्ति रूप में हरसिमरत किसी कंट्रोवर्सी से बची रहीं, लेकिन श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं को लेकर वह पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और शिअद अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की तरह ही सिख समुदाय के आक्रोश का शिकार हुई हैं। 9 सितंबर 2015 को सेंट्रल यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग निर्माण के लिए नींव पत्थर कार्यक्रम के बाद गांव बादल में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ डाली गई किकली को लेकर काफी विवाद हुआ था। उन दिनों सफेद मक्खी से नरमा की फसल बर्बाद हो गई थी और मालवाभर के किसान बठिंडा डीसी कार्यालय के सामने उचित मुआवजे के लिए धरने पर बैठे थे।
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हरसिमरत कौर का रिपोर्ट कार्ड

उपलब्धि :
केंद्रीय मंत्री होने के नाते कई बड़े प्रोजेक्ट संसदीय हलके व पंजाब के लिए लेकर आईं।
नाकामी : राज्य सरकार से लगातार टकराव चलता रहा, जिससे विकास व कई मुद्दे सुलझ नहीं पाए।

संसद में उठाए मुद्दे
-1984 के सिख कत्लेआम को लेकर एसआइटी गठन, करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण करवाने, पंजाब में किसानों की बढ़ रही खुदकुशियों, कांग्रेसी सांसदों के बाद लंगर से जीएसटी हटाने, अमेठी में राहुल गांधी की ओर से फूड प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित न होने देने का मुद्दा व पंज तख्त एक्सप्रेस चलाने का मुद्दा जोर-शोर से उठाया।
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विकास कार्यों के लिए अभी तक खर्च की सांसद निधि:

स्वास्थ्य:        1.08 करोड़ रुपये
शिक्षा:            1.10 करोड़ रुपये
शमशानघाट:   1.00  करोड़ रुपये
खेल:              1,50 करोड़ रुपये
धर्मशाला:       3.00  करोड़ रुपये
छप्पड़:           2.75 करोड़
गलियां-नालियां: 5.20 करोड़
लाइब्रेरी:           2.00 लाख

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