UP Lok Sabha Election Result 2019: पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की निगरानी में डूबी कांग्रेस

UP Lok Sabha Election Result 2019 लोकसभा चुनाव 2019 में तुरूप के इक्के की तरह कांग्रेस को बचाने के लिए लायी गयीं प्रियंका गांधी वाड्रा की निगरानी में पार्टी की नैया डूब गई।

By Dharmendra PandeyEdited By: Publish:Sat, 25 May 2019 03:52 PM (IST) Updated:Sat, 25 May 2019 04:03 PM (IST)
UP Lok Sabha Election Result 2019: पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की निगरानी में डूबी कांग्रेस
UP Lok Sabha Election Result 2019: पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की निगरानी में डूबी कांग्रेस

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। 17वीं लोकसभा के चुनाव से पहले राजनीति में सक्रिय हुईं प्रियंका गांधी वाड्रा को भले ही कांग्रेस से जोर-शोर से प्रोजेक्ट किया, लेकिन प्रियंका ने तो पार्टी को और पीछे ला दिया। 2014 में दो सीट जीतने वाली कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक सीट पर सिमट गई। प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस में राष्ट्रीय महासचिव के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी का पद दिया गया है।

लोकसभा चुनाव 2019 में तुरूप के इक्के की तरह कांग्रेस को बचाने के लिए लायी गयीं प्रियंका गांधी वाड्रा की निगरानी में पार्टी की नैया डूब गई। इस बार कांग्रेस का न केवल वोट बैंक घटा वरन पुश्तैनी गढ़ अमेठी को भी बचाया नहीं जा सका। प्रियंका गांधी के महासचिव तथा प्रभारी रहते राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को पहली बार पराजय का सामना करना पड़ा।

रायबरेली में सोनिया गांधी जीती जरूर परंतु 2014 की तुलना में जीत का अंतर घट गया। तब सोनिया 3,52,713 वोट के अंतर से विजयी हुई थी लेकिन इस बार ये अंतर मात्र 1,67,178 तक ही सिमट गया। गरीबों को प्रति वर्ष 72 हजार रुपये देने का वादा भी जनता के गले नहीं उतरा। चौकीदार चोर है जैसे नारे लगवाने का कोई फल भी न मिला। अन्य दलों से आए नेताओं को टिकट देने का फार्मूला भी कारगर सिद्ध न हो सका। गत लोकसभा चुनाव में 7.5 प्रतिशत वोट मिला था जबकि इस बार आंकडा 6.21 फीसद पर ही अटक गया। यानि एक सीट घटी और मत प्रतिशत भी नहीं बढ़ सका। रायबरेली व अमेठी में सपा- बसपा का समर्थन मिलने के बाद भी सोनिया व राहुल की वोटें कम हुई। पार्टी के अन्य प्रमुख नेता भी अपना पुराना प्रदर्शन न दोहरा सकें और गठबंधन से पिछड़ गए।

सिरदर्द बना गठबंधन

कांग्रेस के लिए सपा बसपा एवं रालोद गठबंधन बड़ा सिरदर्द सिद्ध हुआ। खासकर मुस्लिम व दलित वोटरों ने गठबंधन के पक्ष में जमकर मतदान किया। इसके चलते कांग्रेस में दिग्गज मुस्लिम नेता भी पिट गए। 2014 में सहारनपुर सीट पर 4,08,651 वोट पाने वाले पूर्व विधायक एवं तेजतर्रार नेता इमरान मसूद को इस बार 2,06908 वोट पर ही सब्र करना पड़ा जबकि बसपा के फजर्लुरहमान को 5,13,268 वोट और जीत भी मिली। वहीं बिजनौर में पूर्व मंत्री व स्टार प्रचारक नसीमुद्दीन सिद्दीकी मात्र 25,598 वोट ही पा सके। मुरादाबाद में शायर इमरान प्रतापगढ़ी का भी बुरा हाल हुआ तीसरे राउंड तक मात्र 59144 वोट ही पास सके जबकि गठबंधन के उम्मीदवार एचटी हसन 6,47,360 वोट पाकर जीत गए।

पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की स्थिति बेहद दयनीय रही। उन्हें मात्र 55258 वोट मिले जबकि गठबंधन प्रत्याशी मनोज अग्रवाल मुस्लिम वोटों का अधिक हिस्सा लेने में कामयाब रहे।

दिग्गज भी हाशिए पर

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से अधिकतर अपना पुराना प्रदर्शन भी न दोहरा सके। प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर इस बार सीट बदलकर फतेहपुर सीकरी से चुनाव लड़े परंतु 157056 वोट ही पा सके जो गत चुनाव में मिले वोटों से कम है। कानपुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने जरूर गत चुनाव से अधिक वोट पाए परंतु कुशीनगर से आरपीएन सिंह, लखीमपुर खीरी में जफर अली नकवी, उन्नाव में अन्नू टंडन और फैजाबाद में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री को पिछले चुनाव से कम वोट ही मिल पाए। कांग्रेस के दलित चेहरे के तौर पर तैयार हो रहे पीएल पुनिया बाराबंकी से अपने पुत्र तनुज पुनिया को अपने बराबर वोट भी नहीं दिला सके। सुलतानपुर में पूर्व सांसद संजय सिंह का भी बुरा हाल हुआ और 50 हजार वोटों की गिनती भी नहीं छू सके।

बाहरी भी न बनें तारणहार

इसके साथ ही अन्य दलों से आए नेताओं को टिकट देकर चुनाव लड़ाने का फार्मूला भी सफल नहीं हो सका। रालोद से आए पूर्व विधायक त्रिलोकी राम दिवाकर हाथरस सीट पर, फूलपुर में अपना दल से आए पंकज निरंजन, आंवला सीट पर पूर्व सांसद सर्वराज सिंह और बस्ती में सपा के बागी पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह भी बुरी तरह पिछड़ गए।

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