क्यों फिल्मी सितारों पर सियासी दांव खेलती है राजनीतिक पार्टियां ?

राजनीति में फिल्मी सितारों को जीत की गारंटी माना जाता है। इसलिए राजीतिक पार्टियां फिल्मी सितोरों पर दांव खेलने का कोई मौका नहीं छोड़तीं।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Sun, 24 Mar 2019 11:33 AM (IST) Updated:Sun, 24 Mar 2019 02:18 PM (IST)
क्यों फिल्मी सितारों पर सियासी दांव खेलती है राजनीतिक पार्टियां ?
क्यों फिल्मी सितारों पर सियासी दांव खेलती है राजनीतिक पार्टियां ?

नई दिल्‍ली [संजय कुमार सिंह]। चमकना सितारों की फितरत है। फलक चाहे जो हो, चमक बिखेरना उनका काम है। सिनेमा हो या राजनीति, सपने दोनों में दिखाए जाते हैं। जनता सब जानती है। लेकिन सपने देखना जनता की फितरत है। यही वजह है कि अभिनेता जब नेता बनता है तो जीत की गारंटी मानो पक्की हो जाती है। पार्टियां इसीलिए अभिनेताओं को आजमाती हैं। बड़े-बड़े अभिनेता नेता भी बने। दक्षिण भारत में तो अभिनेता ही नेता होते आए हैं। इधर, बॉलीवुड में भी बड़े-बड़े सुपरस्टार राजनीति में उतारे जाते रहे हैं। बॉलीवुड और राजनीति का रिश्ता पुराना है।

शबाना आजमी
थिएटर, फिल्म और टीवी हर मंच पर अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाली अदाकारा शबाना आजमी ने सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। इस कारण उन्हें राष्ट्रपति की ओर से 1997 से 2003 तक राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया।

जया प्रदा
हिंदी फिल्मों के अलावा तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली और मराठी फिल्मों में अभिनेत्री और समाजवादी पार्टी की नेता जया प्रदा 2004 से 2014 तक उत्तर प्रदेश के रामपुर से सांसद रहीं।

रेखा
ब्यूटी क्वीन रेखा को 2012 में कांग्रेस ने राज्यसभा में भेजा। लेकिन अपने पूरे कार्यकाल में सदन की कार्रवाई में हिस्सा न लेने के कारण उनकी जमकर आलोचना हुई। उन्होंने न तो कभी सदन में कोई सवाल पूछा न ही किसी बहस में शामिल हुईं।

हेमा मालिनी
कहते हैं कि फिल्मी दुनिया से हेमा मालिनी को राजनीति में लाने वाले विनोद खन्ना थे। भाजपा के टिकट पर मथुरा सीट जीतने वाली हेमा मालिनी का अब तक का राजनीतिक करियर बेहद सफल रहा है। वह अभी संपन्न होने जा रहे लोकसभा चुनाव में मथुरा से ही भाजपा की प्रत्याशी हैं।

स्मृति ईरानी
मॉडल, टीवी अभिनेत्री और तेलुगू और बंगाली फिल्मों में काम कर चुकीं स्मृति ईरानी ने 2003 में भाजपा की सदस्यता ली।

जया बच्चन
अभिनेत्री जया बच्चन समाजवादी पार्टी की ओर से 2004 में पहली बार राज्यसभा सदस्य चुनी गईं। चार बार से चुनी जा रहीं जया बच्चन का राजनीतिक करियर पति अमिताभ बच्चन से काफी लंबा रहा है। अमिताभ के राजनीति में प्रवेश को वह भाव

शत्रुघ्न सिन्हा
सुपरस्टार शत्रुघ्न सिन्हा काफी लंबे समय से भाजपा के सांसद हैं। वह केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। लेकिन आजकल उनकी भाजपा से नाराजगी कुछ ज्यादा ही बढ़ी हुई है। भाजपा ने इस बार उनका बिहार की पटना साहिब सीट से टिकट काट दिया है। वह अब किसी दूसरे दल से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं।

राज बब्बर
हिंदी और पंजाबी फिल्मों के सफल अभिनेता राज बब्बर ने पहले समाजवादी पार्टी और फिर कांग्रेस का दामन थामा। वह तीन बार लोकसभा के लिए चुने गए और दो बार राज्यसभा सदस्य रहे। वह वर्तमान में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष हैं। वह अभी उप्र के ही फतेहपुर सीकरी से कांग्रेस से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

धर्मेंद्र
बॉलीवुड में बतौर अभिनेता बड़ा मुकाम हासिल कर चुके धर्मेंद्र भी राजनीतिक पारी खेल चुके हैं। 2004 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर उन्होंने राजस्थान के बीकानेर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीता था। लेकिन संसद के किसी भी सत्र में शामिल न होने और अपने निर्वाचन क्षेत्र से पूरी तरह गायब रहने के कारण उनको कई आरोपों का सामना करना पड़ा। आरोप लगे कि वह अपना सारा समय फिल्म की शूटिंग में ही लगाते हैं। उन्हें अपने क्षेत्र के विकास और समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। उनकी पत्नी हेमा मालिनी वर्तमान में उप्र के मथुरा से भाजपा की सांसद हैं।

मथुन चक्रवर्ती
अपने स्टेज नाम मिथुन के रूप में लोकप्रिय गौरांग चक्रवर्ती बॉलीवुड और टॉलीवुड के मशहूर एक्टर, प्रोड्यूसर रहे हैं। इसके अलावा असल जीवन में वह गायक, समाजसेवक और उद्यमी की भूमिकाएं भी निभा चुके हैं। वह 2014 में पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की ओर से राज्यसभा के सदस्य भी रहे लेकिन 2016 में इस्तीफा दे दिया।

परेश रावल
अहमदाबाद ईस्ट से भाजपा के सांसद परेश रावल हाल के सालों में काफी मुखर नेता के रूप में सामने आए हैं। हेरा-फेरी जैसी कॉमेडी फिल्मों में यादगार किरदार निभा चुके रावल असल में थिएटर के भी मंझे हुए अदाकार माने जाते हैं।

गोविंदा
बॉलीवुड हीरो गोविंदा ने 80 के दशक में अपना फिल्मी सफर शुरू कर विभिन्न भूमिकाएं निभाते हुए अपनी पहचान बनाई। कांग्रेस के टिकट पर 2004 के आम चुनावों में उन्होंने मुंबई नॉर्थ सीट जीती, लेकिन उसके बाद उन्हें टिकट नहीं मिला और उन्होंने राजनीति छोड़ दी।

सुनील दत्त
मदर इंडिया जैसी ग्रामीण परिवेश पर आधारित सुपर हिट फिल्म के हीरो और फिल्म इंडस्ट्री के सम्मानित सदस्य रहे सुनील दत्त ने अपना राजनीतिक करियर 1984 में शुरू किया। फिल्म जगत में सफल पारी खेलने के बाद वह कांग्रेस पार्टी में शमिल हो गए। वह पांच बार सांसद रहे। वह केंद्रीय खेल मंत्री भी रहे।

विनोद खन्ना
अपने बेहतरीन अभिनय के चलते विनोद खन्ना 60 के दशक में काफी लोकप्रिय रहे। उन्होंने पंजाब के गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस सीट से चार बार जीतने वाले खन्ना को 2009 में हार का सामना करना पड़ा। वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में दो-दो मंत्रालयों में राज्यमंत्री भी रहेे।

राजेश खन्ना
बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार कहे जाने वाले राजेश खन्ना ने अपने करियर में 160 से भी अधिक फिल्मों में काम किया। जिनमें ज्यादातर हिट रहीं। कांग्रेस ने 1991 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन वह लाल कृष्ण आडवाणी से हार गए, फिर उसी सीट पर 1992 में हुए उपचुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा को हराकर वह लोकसभा सदस्य बने।

जब आया छोरा गंगा किनारे वाला
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव ने मोर्चा संभाला था। बचपन के दोस्त और तब सुपर स्टारडम पा चुके अमिताभ बच्चन से उन्होंने मदद ली। उन्हें इलाहाबाद सीट से उतरा गया। वह भी विपक्ष के मजबूत नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ। अमिताभ के मैदान में उतरते ही चुनावी फिजा बदल गई। तब बहुगुणा इस क्षेत्र के दिग्गज नेता थे। मुख्यमंत्री रह चुके थे। उन्हें विकास पुरुष माना जाता था। लेकिन अमिताभ का स्टारडम उनपर भारी पड़ा। बहुगुणा को स्थानीयता का कार्ड खेलना पड़ा।

उन्होंने कहा, मैं इलाहाबाद का हूं, किसी बाहरी को नहीं, मुझे वोट दीजिए। जवाब में अमिताभ ने दारागंज की एक चुनावी सभा में अपना सुपरहिट गाना- छोरा गंगा किनारे वाला सुनाया। कहा, मैं भी पक्का इलाहाबादी हूं। अमिताभ ने नारा दिया था, विकास के वास्ते, चुनाव के रास्ते। दीवारें इसी नारे से पट गईं थीं।

जया बच्चन भी पति अमिताभ के लिए वोट मांगने आईं। उन्होंने खुद को इलाहाबाद की बहू बताते हुए मुंह दिखाई में लोगों से वोट मांगा था। अंतत: अमिताभ ने भारी अंतर से बहुगुणा को पटखनी दी। लेकिन इसके आगे की राह आसान न रही। उस समय राजनीति भारी पड़ गई जब बोफोर्स घोटाले में छोटे भाई अजिताभ के साथ उनका नाम भी उछला।

अमिताभ ने इलाहाबाद से संसद सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने राजनीति को अलविदा ही कह दिया। तब एक फिल्मी पत्रिका से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था- मुझे राजनीति नहीं आती। मुझे कभी राजनीति मे नहीं जाना चाहिए था। अब मैंने सबक सीख लिया है। अब आगे और राजनीति नहीं। अमिताभ तब से राजनीति से दूर हैं।

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