ओवैसी को अब विपक्ष नहीं कहेगा BJP की बी-टीम, जंग का एलान कर मैदान से क्‍यों गायब AIMIM; क्‍या कांग्रेस से दोस्‍ती का है कारण?

विपक्षी दल अक्‍सर एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर आरोप लगाते रहते हैं कि वह पर्दे के पीछे से भाजपा की जीत के लिए काम करते हैं। इस बार के हालात बता रहे हैं कि विपक्ष के ऐसे आरोप से वह मुक्त होने वाले हैं। तेलंगाना बिहार उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र एवं झारखंड से ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं जहां के मैदान को दोस्ती के नाम पर छोड़ दिया है।

By Jagran NewsEdited By: Deepti Mishra Publish:Fri, 19 Apr 2024 11:47 AM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2024 11:47 AM (IST)
ओवैसी को अब विपक्ष नहीं कहेगा BJP की बी-टीम, जंग का एलान कर मैदान से क्‍यों गायब AIMIM; क्‍या कांग्रेस से दोस्‍ती का है कारण?
Lok Sabha Election 2024: ओवैसी को अब विपक्ष नहीं कहेगा भाजपा की बी-टीम ।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर विपक्षी दलों का आरोप होता है कि वह पर्दे के पीछे से भाजपा की जीत के लिए काम करते हैं, पर इस बार के हालात बता रहे हैं कि विपक्ष के ऐसे आरोप से वह मुक्त होने वाले हैं। कारण उनकी संसदीय सीट हैदराबाद में भाजपा प्रत्याशी माधवी लता के विरुद्ध कांग्रेस उन्हें सहयोग करती दिख रही है।

इस अहसान के लिए ओवैसी भी कांग्रेस के प्रति कृतज्ञ दिख रहे हैं। तेलंगाना, बिहार, उत्तर  प्रदेश, महाराष्ट्र एवं झारखंड से ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं, जहां के मैदान को दोस्ती के नाम पर छोड़ दिया है।

बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार पांच सीटें जीतकर सनसनी मचा देने वाले ओवैसी ने लोकसभा चुनाव में बिहार में 16 सीटों पर लड़ने का एलान किया था, पर समय के साथ हौसला पस्त होता गया या रणनीति के तहत पीछे हटना मंजूर कर लिया। सांकेतिक मौजूदगी किशनगंज तक सिमट गई है, जहां पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अख्तरुल ईमान चुनाव लड़ रहे हैं।

जंग की घोषणा की, लेकिन मैदान से गायब!

इसी तरह दो वर्ष पहले उत्तर प्रदेश  के विधानसभा चुनाव में 95 सीटों पर प्रत्याशी उतारने वाले ओवैसी ने लोकसभा के लिए अब तक एक भी सीट पर प्रत्याशी नहीं उतारा है। पहले 20 सीटों पर लड़ने का दावा किया था। अपना दल (कमेरावादी) की नेता पल्लवी पटेल ने उनकी पार्टी से गठबंधन जरूर किया है, पर ओवैसी में उत्साह नहीं दिख रहा है। ओवैसी ने झारखंड में भी छह सीटों पर लड़ने का एलान किया था, लेकिन जब वक्त आया तो परिदृश्य से गायब हो गए हैं।

सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ? पांच महीने पहले तेलंगाना विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर तीखा हमला करने व तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी को आरएसएस का एजेंट बताने वाले ओवैसी यू-टर्न लेते क्यों दिख रहे हैं? दरअसल, ओवैसी हैदराबाद से लगातार चार बार जीत के बाद पांचवीं बार मैदान में हैं, किंतु इस बार उन्हें भाजपा ने कड़ी चुनौती दे रखी है।

कांग्रेस और एआईएमआईएम बने साथी!

चार वर्ष पहले हैदराबाद नगर निगम चुनाव में अपेक्षित सफलता मिलने से उत्साहित भाजपा ने माधवी लता के रूप में लड़ाकू प्रत्याशी उतारा है। अभी तक ओवैसी का भारत राष्ट्र समिति से तालमेल रहता था, पर प्रदेश का परिदृश्य बदला तो उनको कांग्रेस की जरूरत है।

इसी तरह कांग्रेस को भी ओवैसी की जरूरत है, क्योंकि 119 सदस्यीय तेलंगाना विधानसभा में कांग्रेस के पास बहुमत से मात्र चार ही ज्यादा विधायक हैं।  जाहिर है, नाजुक मोड़ पर खड़ी सरकार की किलेबंदी के लिए रेवंत रेड्डी को ओवैसी का साथ चाहिए और हैदराबाद में पांचवीं जीत के लिए ओवैसी को भी कांग्रेस की कृपा।

दोस्ती नई है, दरार नहीं आने देना है

तेलंगाना में चौथे चरण में मतदान होना है, जिसके लिए नामांकन 18 अप्रैल से शुरू हो चुका है। हैदराबाद में भी प्रक्रिया जारी है, पर कांग्रेस को अब तक प्रत्याशी नहीं मिला है, जबकि अजहरुद्दीन के रूप में अनुभवी नेता इसी शहर का है। सानिया मिर्जा का भी नाम चर्चा में है। बीआरएस के शीर्ष नेता केशव राव एवं उनकी पुत्री हैदराबाद की मेयर विजयलक्ष्मी को भी रेवंत ने हाल में कांग्रेस की सदस्यता दिलाई है।

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कुछ दिन पहले मो. फिरोज खान का नाम चलाकर अचानक विराम लगा दिया गया, क्योंकि कांग्रेस अगर अजहर, सानिया या फिरोज में से किसी एक को प्रत्याशी बना देगी तो ओवैसी का वोट बैंक बिखर सकता है।

इसका फायदा भाजपा उठा सकती है। दोनों की दोस्ती नई है-दरार नहीं आने देना है। वक्त बताएगा कि कांग्रेस ने ओवैसी के खिलाफ किसे टिकट थमाया। उससे किसका फायदा होगा और किसका नुकसान।

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