LokSabha Election2019: हठ, हड़ताल, अफसरशाही से 'हरियाणा शक्ति' बेदम

हरियाणा में हरियाणा शक्ति कही जाने वाली रोडवेज बसे बेदम होती जा रही हैं। देखरेख में लापरवाही के कारण समय से पहले वॉल्वो और लो-फ्लोर बसें खराब हो रहीं।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Fri, 19 Apr 2019 02:42 PM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2019 02:42 PM (IST)
LokSabha Election2019: हठ, हड़ताल, अफसरशाही से 'हरियाणा शक्ति' बेदम
LokSabha Election2019: हठ, हड़ताल, अफसरशाही से 'हरियाणा शक्ति' बेदम

पानीपत, जेएनएन। देश की सर्वश्रेष्ठ यातायात व्यवस्था का खिताब जीत चुकी हरियाणा रोडवेज आज वेंटिलेटर पर है। सरकार और अफसरों की हठ व कर्मचारियों की बार-बार हड़ताल के बीच जनता पिस रही है। बसें खटारा हो चली हैं। गंतव्य तक पहुंचाने की कोई गारंटी नहीं बची है। पता नहीं बीच सफर कहां जवाब दे जाए?

कभी ड्राइवर-कंडक्टर की कमी में बसें कार्यशाला में आराम फरमाती हैं तो कभी टाइम टेबल सही नहीं होने की वजह से यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचने के लिए पहाड़ पर चढऩे जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जीटी बेल्ट के लोकसभा क्षेत्रों अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल और इनके अंतर्गत आने वाले यमुनानगर, कैथल और पानीपत में खराब नीति के कारण रोडवेज का पहिया पंक्चर हो चुका है। कई गांव ऐसे हैं जहां दिन ढलते ही  बस की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रस्तुत है जागरण टीम की विशेष रिपोर्ट-

शो-पीस बनकर रह गईं बसें
अंबाला डिपो 217 बसें हैं। जिसमें से चंडीगढ़ और दिल्ली के तर्ज पर चली आठ लो-फ्लोर बसें जहां शो-पीस बन रह गई हैं। कर्मचारियों की कमी के कारण 57 बसें डिपो में खड़ी रहती हैं। रोजाना 160 बसें ही लोकल और लंबे रूट पर दौड़ रही हैं। जिले की 12 लाख की आबादी परिवहन सेवाओं को तरस रही है। ग्रामीण क्षेत्र में दर्जनों ग्रामीण रूट ऐसे हैं जिस पर नई परिवहन पॉलिसी से पहले सहकारी समिति की बसें चल रही थीं, लेकिन अब अंबाला से कुरुक्षेत्र, अंबाला से यमुनानगर और बराड़ा, नारायणगढ़ रूट पर आ गई हैं। पांच सालों के दौरान अंबाला में 22 नई बसें आई हैं लेकिन ये नाकाफी हैं, क्योंकि अंबाला डिपो में 250 बसों की जरूरत है।

सवारियों को घंटों इंतजार करना पड़ता
पांच साल के दौरान यमुनानगर डिपो में बसों की वर्तमान में सबसे कम है। सवारियों को बस स्टैंड पर घंटों इंतजार करना पड़ता है। बसों की घटती संख्या का असर ग्रामीण क्षेत्र पर भी पड़ा। गांवों में बसों का रात्रि ठहराव बंद कर दिया गया। छात्र-छात्राएं कई बार सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। यमुनानगर डिपो में अब केवल 158 बसें ही रह गई हैं। एक समय था जब जब डिपो में 200 बसें थी। मौजूदा सरकार में केवल पांच-छह नई बसें ही डिपो में आई। गत वर्ष तक बसों की संख्या ज्यादा थी लेकिन स्टाफ कम था। बाद में सरकार ने रोडवेज चालकों व परिचालकों की भर्ती की। यमुनानगर डिपो को भी स्टाफ मिला। अब डिपो में 225 बसों को चलाने के लिए पर्याप्त चालक व परिचालक हैं। परंतु अब डिपो में बसें ही नहीं है।

बसों की कमी से स्‍टाफ भी खाली बैठा रहता
बसों की कमी के कारण स्टाफ खाली बैठा रहता है। यात्रियों को बसों की कमी दोपहर तीन बजे के बाद महसूस होती है। क्योंकि प्रदेश सरकार ने रोडवेज कर्मचारियों का ओवरटाइम बंद कर दिया है। जो चालक-परिचालक सुबह छह-सात बजे ड्यूटी पर आ जाता है उसके आठ घंटे दो से तीन बजे तक पूरे हो जाते हैं। इसलिए वह एक घंटा ज्यादा भी बसें नहीं चलाता। दोपहर के बाद काफी कम बसें ही चलती हैं। स्कूल, कॉलेजों में पढऩे वाले विद्यार्थियों को शाम पांच बजे बस मिलती है। परेशान छात्र तीन बार बस स्टैंड यमुनानगर के सामने जाम लगा चुके हैं। ऑल हरियाणा रोडवेज वर्कर यूनियन के राज्य प्रधान हरिनारायण शर्मा का कहना है कि केवल यमुनानगर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश बसों की संख्या बहुत कम है। तीन बजे के बाद बसें नहीं मिलती। इतना बुरा हाल तो 18 दिन तक चलने वाली रोडवेज की हड़ताल से भी नहीं हुआ था जितना अब बसों की कमी के कारण है। कांग्रेस व भाजपा सरकार दोनों ने ही नई बसें नहीं खरीदी।

आबादी बढ़ी, बसें कम हुईं
कुरुक्षेत्र डिपो के रोडवेज के बेड़े में बसों की संख्या घटती जा रही है, जबकि आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। पहले कुरुक्षेत्र डिपो में 180 से ज्यादा बसें थी अब उसी बेड़े में 155 बसें हैं। इन बसों में भी कई ऐसी हैं जो किसी ना किसी खराबी के चलते कर्मशाला में खड़ी रहती हैं। थानेसर में 110 के लगभग बसेें है। दूसरा सब डिपो पिहोवा है जहां पर 49 बसें है। आबादी के लिहाज से विशेषज्ञ कुरुक्षेत्र के पास 200 बस होने की बात कह रहे हैं। कैथल जिला 1989 में बना था, तब 200 बसें थी। अब सिर्फ 126 बसें ही विभिन्न रूटों पर दौड़ रही हैं, जबकि रोजाना सफर करने वाले यात्रियों की संख्या 25 हजार से भी ज्यादा है।

सीएम सिटी में ही हालात गड़बड़
करनाल सीएम सिटी में भी हरियाणा रोडवेज के बेड़े की हालात ठीक नहीं है। करनाल में कुल 166 बसें ही बेड़े में हैं, जिसमें से भी सात से आठ वर्कशॉप के अंदर खड़ी रहती हैं। इनमें से भी कुछ बसें कंडम हो चुकी हैं। बेड़े में 240 बसें स्वीकृत हैं, लेकिन संख्या लगातार कम होती जा रही है। पिछले साल 16 बसें रिटायर की गई थी। सरकार को नई बसों के लिए डिमांड भेजी गई है। जीटी रोड पर स्थित पानीपत में भी सफर सुविधाजनक होने के बजाय मुश्किल भरा हो गया। पानीपत में 14.50 लाख (शहर 6:50 लाख) की आबादी को परिवहन के पर्याप्त संसाधन नहीं मिल पा रहे। परिवहन बेड़े में 150 बसों की कमी है। सफर के दौरान यात्री घंटों इंतजार कर निजी परिवहन साधनों का सहारा लेते हैं।

पांच साल में हुई 10 बार हड़ताल
पांच सालों में रोडवेज हड़ताल व सरकार का चोली दामन का साथ रहा। इस दौरान 10 से ज्यादा बार हड़ताल हुई। पिछले वर्ष 16 अक्टूबर को प्रदेश के इतिहास की सबसे लंबी हड़ताल हुई। यह हड़ताल 18 दिन चली थी। जब ड्राइवर नहीं मिले तो पुलिसकर्मियों को बसों का स्टेयरिंग थमा दिया गया। कुछ दिन के लिए अस्थायी ड्राइवरों व परिचालकों की भर्ती की गई। कोर्ट के आदेशों पर हड़ताल खत्म हुई थी। हड़ताल खत्म होने पर आउटसोर्सिंग नीति-वन के तहत रखे गए कर्मचारियों की सेवाएं भी समाप्त कर दी गई।

ग्रामीण रूटों पर बंद कर दी बसें
रोडवेज कर्मचारियों का ओवरटाइम बंद करने के साथ-साथ प्रदेश सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में बसों का रात्रि ठहराव भी बंद कर दिया है। पहले कर्मचारी शाम को बस साथ ले जाता था और अल सुबह ग्रामीण क्षेत्र से बस चलती थी। इससे सभी को फायदा हो रहा था। अब सुबह बस नहीं चलती। विद्यार्थी अपने स्कूल, कॉलेज तो कर्मचारी अपने काम पर नहीं पहुंच पाते। मजबूरी में लोगों को अपने साधन का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।

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ये हैं हालात 217 बसें अंबाला और 158 बसें यमुनानगर डिपो में हैं। 155 बसें कुरुक्षेत्र और सिर्फ 126 बसें कैथल जिले में हैं। 166 बसें करनाल और 115 बसें पानीपत डिपो में हैं।

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