LokSabha Election 2019: खेलों और खिलाडिय़ों के साथ खेलती सियासत
प्रदेश में खिलाडिय़ों और उनको दी जानी वाली सुविधाओं के नाम पर सरकार खानापूर्ति करती है। बावजूद खिलाडिय़ों का हौसला नहीं टूटा। हर बार विश्व स्तर पर जीत का परचम लहराया।
पानीपत, जेएनएन। हरियाणा को खेल राज्य कहा जाए तो गलत न होगा। ओलंपिक, वल्र्ड चैंपियनशिप, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ, राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय कोई भी प्रतियोगिता हो, हमारे खिलाडिय़ों ने अपने बूते पदक जीत परचम लहराया है। किसी भी खिलाड़ी के चैंपियन बन जाने के बाद सरकार अपनी खेल नीति को श्रेय देते हुए ढिंढोरा पीटने से नहीं चूकती। सच्चाई इसके उलट है। किसी भी खिलाड़ी के शुरुआती दौर में उसे आधारभूत ढांचा नहीं मिलने के कारण परिवार को ही संघर्ष की लपटों में झुलसना पड़ता है।
कोई बेटी को चैंपियन बनाने के लिए जमीन तक बेच देता है तो कोई लस्सी बेचकर का मजदूरी कर उसे हर सुविधा उपलब्ध कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। पूर्व में यहां सियासतदान हरियाणा ओलंपिक संघ और हरियाणा एथलेटिक संघ में अपने वर्चस्व के लिए कोर्ट तक पहुंच चुके हैं। ऐसा भी हुआ है कि राष्ट्रीय स्तर की एथलेटिक प्रतियोगिता के लिए प्रदेश की दो-दो टीमें भेजी गईं। इसके अलावा जीटी बेल्ट के लोकसभा क्षेत्रों सहित प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में चल रही गैर मान्यता प्राप्त खेल अकादमियां भी खिलाडिय़ों से खिलवाड़ कर रही हैं। प्रस्तुत है विशेष रिपोर्ट -
वर्षों से सामान को तरस रहे खिलाड़ी, लावारिस स्टेडियम
प्रदेश भर में खिलाडिय़ों को खेल के सामान के लिए चार वर्षों से तरसना पड़ रहा है। करनाल प्रदेश का सेंटर स्टोर है। वर्ष 2015 में यहां मुख्यालय की ओर से प्रदेश के स्टेडियमों के लिए यहा सामान आता था। यहां से फिर अन्य जिलों को जाता था। सरकार को चुनावी वर्ष के प्रवेश होते ही जनवरी 2019 में खिलाडिय़ों की याद आई और विभाग ने लगभग 40 करोड़ रुपये का सामान एजेंसियों द्वारा स्टेडियमों में पहुंचाने के आदेश पास किए।
अभी तक नहीं मिली खेल महाकुंभ की इनाम राशि
चार साल से भेजी जा रही जिला खेल अधिकारियों की ओर से सामान की डिमांड को विभाग ने भूलकर कर खेल के सामान की डिमांड मांगी। इसके अलावा खेल महाकुंभ-2017 के विजेता प्रदेश भर के खिलाडिय़ों को अभी तक अपनी इनामी राशि नहीं मिल पाई है। मुख्यालय ने चुनावी वर्ष की शुरुआत में ही पत्र जारी कर इसे निपटाने के आदेश दिए, लेकिन खामियां इतनी हैं कि प्रदेश में अधिकतर खिलाड़ी अभी तक इनामी राशि का इंतजार कर रहे हैं।
सीएम के दावों का ये हाल
वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रदेश में 400 खेल नर्सरियों की घोषणा की जोकि निजी व सरकारी संस्थाओं में को अलाट की जानी थी। एक साल बाद दिसंबर 2017 में करनाल में 18 नर्सरियां स्थापित की गई। नर्सरियां तो स्थापित हो गईं, लेकिन बच्चों को खेल के अभ्यास के सामान उपलब्ध नहीं किया गया। पानीपत में जिलास्तर से लेकर ब्लॉक स्तर के राजीव गांधी खेल स्टेडियम खस्ताहाल हैं। शिवाजी स्टेडियम के ट्रैक में धूल उड़ती है। खिलाडिय़ों के लिए पीने की पानी तक व्यवस्था नहीं है। पिछले साल खिलाडिय़ों को तराशने के लिए 15 खेल नर्सरी खोली गई थीं। इनमें सामान नहीं दिया गया कोचिंग भी ठीक से नहीं दी गई। जिले में जिम्नास्टिक, तैराकी, जूडो, क्रिकेट, फुटबॉल, साइक्लिंग और हॉकी के कोच हैं, लेकिन ग्राउंड नहीं है। इसी वजह से कोच खिलाड़ी अभ्यास ठीक से नहीं करा पा रहे हैं। उन्हें इधर-उधर उधार के ग्राउंड में अभ्यास कराना पड़ता है।
खेल मंत्री का गृह क्षेत्र चमका
अंबाला लोकसभा क्षेत्र प्रदेश के खेलमंत्री अनिल विज का गृह क्षेत्र है। यहां अन्य जिलों की अपेक्षा स्थिति कुछ हद तक ठीक है। छावनी के वार हीरोज मेमोरियल स्टेडियम को अपग्रेड किया जा रहा है जिस पर करीब 4857.10 लाख रुपये की लागत आएगी। स्टेडियम में फीफा द्वारा मंजूर अंतरराष्ट्रीय स्तर का फुटबॉल का आर्टिफिशियल मैदान बनाया जाएगा। इसी स्टेडियम में आइएएएफ द्वारा मंजूर अंतरराष्ट्रीय स्तर का एथलेटिक ट्रैक बनाया जाएगा। स्टेडियम में ही ऑल वेदर स्वीमिंग पूल का निर्माण किया जा रहा है, जो साल भर वर्किंग में रहेगा। खेल विभाग के पास वर्तमान में 33 कोच हैं। सेक्टर दस में राजीव गांधी खेल स्टेडियम है। छावनी के आनंद मेमोरियल कांप्लेक्स में भी करीब 26 साल के बाद अब बैडमिंटन हॉल मिला है, जिसके अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
खेलों के कोच ही नहीं
यमुनानगर में 150 एकड़ भूमि पर नौ स्टेडियम बने हैं। सुविधाओं की भारी कमी है। स्टेडियम लावारिस हालत में है। कही झाडिय़ां उगी हैं तो कहीं दीवार टूटी है। ट्रैक तक ठीक नहीं है। यहां पर अधिकतर खेलों के कोच नहीं है। इस समय यहां 17 कोच हैं। क्रिकेट, हैंडबॉल, खो खो, कबड्डी के कोच नहीं हैं। 1300 खिलाड़ी हैं, जो जिले का नाम राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकाने की तैयारी कर रहे हैं। चर्चित खिलाडिय़ों में लॉन टेनिस में वृंदा शर्मा, वरुण शर्मा, सर्वजीत सिंह शामिल हैं। एथलीट में द्विवंका, रोहित शर्मा जिले का नाम रोशन कर चुके हैं।
धरातल पर नहीं उतर रहे सरकार के दावे
कुरुक्षेत्र में खिलाडिय़ों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाएं उपलब्ध करवाने के दावे धरातल पर नहीं उतर पा रहे हैं। हालांकि यहां द्रोणाचार्य स्टेडियम के साथ लगती छह एकड़ जमीन में लगाया जाने वाला हॉकी एस्ट्रोटर्फ, कुवि में बनाया जाने वाला साइक्लिंग वेलोड्रम और गांव पलवल की लगभग 19 एकड़ जमीन में बनाया जाने वाला क्रिकेट स्टेडियम बनाया जा रहा है। खलाडिय़ों की दूसरी सबसे बड़ी मांग कुरुक्षेत्र में साइक्लिंग वेलोड्रम बनाए जाने की है। इसके लिए कई पंचायतों की ओर से प्रस्ताव पास किए गए थे, लेकिन वह सिरे नहीं चढ़ पाए। अब इस अड़चन को दूर करते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की जमीन में वेलोड्रम बनाने का फैसला लिया गया है। जिलेभर के स्टेडियमों में विभिन्न खेलों के 28 के लगभग कोच तैनात हैं। द्रोणाचार्य स्टेडियम जिले का मुख्य स्टेडियम है। इस स्टेडियम के पास ही खिलाड़ी वुशू के लिए हॉल की डिमांड कर रहे हैं। वुशू में कुरुक्षेत्र के कई खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है।
प्राइवेट कोचिंग का सहारा
कैथल जिले में खिलाडिय़ों की संख्या तो हजारों में है, लेकिन कोच पूरे नहीं है। जिले में विभिन्न खेलों के लिए कुल 19 ही कोच तैनात किए गए हैं। खेलों के हिसाब से करीब 15 कोच ओर जिले को चाहिए हैं। जिन खेलों के कोच ही नहीं है उन खिलाडिय़ों को प्राइवेट कोचिंग लेनी पड़ रही है, जिस कारण वे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। जिले में छह राजीव गांधी खेल स्टेडियम बनाए गए हैं। किसी भी स्टेडियम में कोच नहीं है हालांकि देखभाल के लिए एक-एक इंचार्ज जरूर रखा गया है। यहां तक कि खिलाडिय़ों को पीने के पानी की भी सुविधा नहीं मिल पा रही है। इसके अलावा जिले में 18 मिनी स्टेडियम बने हुए हैं और आठ राजीव गांधी खेल स्टेडियमों का निर्माण कार्य शुरू होना है। कबड्डी व कुश्ती को छोड़कर किसी भी खेल का सामान खिलाडिय़ों तक नहीं पहुंचा है। पांच साल से खिलाड़ी सामान की मांग कर रहे हैं। बिना खेल के सामान के खिलाडिय़ों को अभ्यास करने में परेशानी उठानी पड़ रही है। हालांकि विभाग की ओर से खेल का सामान देने के लिए प्रक्रिया शुरू की हुई है। जिले में फुटबाल, स्वीमिंग, बैडमिंटन, तीरंदाजी, शूटिंग, वेट लिफटिंग, नौकायान, ताईक्वांडों, टेबल टेनिस, तलवारबाजी, साइकलिंग, लोन टेनिस का एक भी कोच नहीं है। सैंकड़ों खिलाड़ी अपने स्तर पर ही अभ्यास करते हैं।
हॉकी के गढ़ हाबड़ी गांव में स्टेडियम अधर में लटका
गांव हाबड़ी को हॉकी का गढ़ माना जाता है। सरकार की ओर से गांव में खिलाडिय़ों के लिए करीब 18 करोड़ रुपये की लागत से हॉकी स्टेडियम का निर्माण कार्य करवाना था। इसके लिए टेंडर भी हो चुका है, लेकिन उसके बाद भी काम शुरू नहीं हो पाया है। बैडमिंटन खिलाड़ी बिंद्र ने बताया कि वे कई बार खेल अधिकारियों को कोच के बारे में मांग कर चुके हैं। उन्हें स्वयं ही खेल का अभ्यास करना पड़ता है या प्राइवेट कोच से ट्रेनिंग लेनी पड़ती है। जिले में बैडमिंटन के सैकड़ों खिलाड़ी हैं और वे खेलने के लिए जिले से बाहर भी जाते हैं। सही ट्रेनिंग न मिलने के कारण वे ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते।
जींद में नहीं मिल खिलाडिय़ों को सुविधा
जींद जिले में खेल सुविधाओं के नाम पर ऊबड़-खाबड़ स्टेडियम हैं। जहां ना तो पर्याप्त कोच हैं और ना ही प्रशिक्षक। बेडमिंटन, लॉन टेनिस, बॉक्सिंग के कोच नहीं हैं। आठ राजीव गांधी खेल स्टेडियम हैं, जहां एक-एक कोच है। जींद शहर के सेक्टर नौ में एकलव्य स्टेडियम दो साल से बन कर तैयार है। एचएसवीपी इस स्टेडियम को हैंडओवर करने के लिए कई बार खेल विभाग को लिख चुका है। लेकिन खेल विभाग बजट नहीं होने का हवाला देकर स्टेडियम की जिम्मेदारी नहीं ले रहा है। जिससे इस स्टेडियम का फायदा खिलाडिय़ों को नहीं मिल पा रहा। पिछले चार साल से खेल का सामान नहीं आने से खिलाडिय़ों को दिक्कतें हो रही हैं।