Loksabha Election 2019: उत्तराखंड में माया की हुंकार, कांग्रेस असहज

उत्तराखंड में मायावती की हुंकार से कांग्रेस असहज हो गई है। इस लोकसभा चुनाव में बसपा कांग्रेस के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है।

By Raksha PanthariEdited By: Publish:Sun, 07 Apr 2019 01:50 PM (IST) Updated:Sun, 07 Apr 2019 01:50 PM (IST)
Loksabha Election 2019: उत्तराखंड में माया की हुंकार, कांग्रेस असहज
Loksabha Election 2019: उत्तराखंड में माया की हुंकार, कांग्रेस असहज

देहरादून, विकास धूलिया। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद तीसरी सबसे बड़ी सियासी ताकत के रूप में उभरी बसपा इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है। पुख्ता जनाधार वाली दो लोकसभा सीटों हरिद्वार और नैनीताल में दो जनसभाओं में बसपा सुप्रीमो मायावती  ने जिस तरह कांग्रेस को निशाने पर लिया, उससे इस बात के काफी ज्यादा आसार हैं। अगर बसपा इन दो सीटों पर मजबूत होकर उभरती है, तो इसका सीधा खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा।

बसपा राज्य में तीसरी बड़ी ताकत

उत्तराखंड में वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 70 सदस्यीय विधानसभा में सात विधायकों के साथ प्रवेश कर कांग्रेस और भाजपा के बाद तीसरी बड़ी सियासी पार्टी का रुतबा हासिल किया। वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपनी हनक बरकरार रखी और इस बार आठ सीटों पर कब्जा जमाया। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को झटका लगा और यह महज तीन सीटों तक सिमट गई लेकिन तब भी यह विधानसभा में तीसरी सबसे बड़ी सियासी पार्टी बनी। अलबत्ता, वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी मैजिक के कारण बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। 

दो लोस सीटें बसपा के निशाने पर

महत्वपूर्ण बात यह कि बसपा को विधानसभा चुनावों में यह सफलता दो मैदानी जिलों हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में ही मिली। इस लोकसभा चुनाव में भी बसपा हरिद्वार और नैनीताल, जिसके अंतर्गत ऊधमसिंह नगर जिला भी है, इन्हीं दो लोकसभा सीटों को लक्ष्य बनाकर मैदान में उतरी है। उस पर इस चुनाव में बसपा और सपा गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं, लिहाजा सपा वोट बैंक का लाभ भी बसपा के खाते में जाएगा। गठबंधन में सपा को मिली सीट पौड़ी गढ़वाल में तो पार्टी ने प्रत्याशी नहीं उतारा, मगर बसपा शेष चारों सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें से हरिद्वार और नैनीताल लोकसभा सीटों पर बसपा मुकाबले का तीसरा कोण बनने और नतीजा तय करने में अहम भूमिका निभाने में सक्षम है।

जातीय गणित बसपा के लिए मुफीद

हरिद्वार व नैनीताल लोकसभा सीटों का जातीय गणित भी बसपा के लिए मुफीद है। हरिद्वार सीट पर मुस्लिम लगभग 25 फीसद, अनुसूचित जाति व जनजाति लगभग 26 फीसद, ओबीसी लगभग 16 फीसद व बाकी अन्य हैं। इसी तरह नैनीताल सीट के अंतर्गत लगभग 33 फीसद ब्राह्मण व राजपूत, लगभग 19 फीसद अनुसूचित जाति व जनजाति, 18 फीसद ओबीसी और लगभग 15 फीसद मुस्लिम और बाकी अन्य हैं। यानी हरिद्वार सीट पर मुस्लिम व अनुसूचित जाति व जनजाति का आंकड़ा देखें तो यह 50 फीसद से ज्यादा बैठता है। नैनीताल सीट पर भी यह वोट बैंक खासा महत्वपूर्ण है। यहां अनुसूचित जाति व जनजाति और मुस्लिम मतदाताओं का कुल आंकड़ा लगभग 34 फीसद है। यही बसपा, सपा और कांग्रेस का साझा वोट बैंक भी है। अब अगर इनमें बसपा पूरी तरह सेंध मारने में कामयाब रहती है, तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस को ही होगा।

बसपा तीन चुनाव में तीसरे स्थान पर

पिछले तीन लोकसभा चुनावों में बसपा को मिले मत प्रतिशत पर नजर डालें तो वर्ष 2004 में पार्टी को कुल 6.75 फीसद मत मिले थे। इनमें हरिद्वार संसदीय सीट पर 13 प्रतिशत मत लेकर बसपा दूसरे स्थान पर रही थी, जबकि नैनीताल में पार्टी को 8.24 फीसद मत मिले। वर्ष 2009 के चुनावों में बसपा को 15.24 फीसद मत मिले। इन चुनावों में बसपा को हरिद्वार सीट पर 14 फीसद और नैनीताल में 19.04 फीसद मत मिले। वर्ष 2014 के चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन में जरूर थोड़ी गिरावट आई। मोदी लहर में बसपा को प्रदेश में कुल 4.75 फीसद मत ही मिले। इसमें भी हरिद्वार सीट में पार्टी को छह प्रतिशत और नैनीताल में तीन फीसद मत हासिल हुए। 

वोट बैंक खिसका तो कांग्रेस को मुश्किल

शनिवार को उत्तराखंड में बसपा सुप्रीमो मायावती ने दो जनसभाओं को संबोधित किया। इनमें हरिद्वार व नैनीताल सीट पर एक-एक जनसभा हुई। अब भाजपा क्योंकि केंद्र और राज्य, दोनों जगह सत्ता में है तो भाजपा पर मायावती का हमला लाजिमी ही था लेकिन जिस तरह उन्होंने कांग्रेस को निशाना बनाया, वह जरूर चौंकाने वाला और साथ ही कांग्रेस के लिए बड़ी चिंता का सबब भी बन गया। मायावती ने सीधे कहा कि आजादी के बाद से सबसे ज्यादा राज कांग्रेस ने ही किया है, लेकिन अपनी गलत नीतियों के कारण ही वह केंद्र के साथ ही कई राज्यों की सत्ता से बाहर हो गई। अब अगर मायावती की इस हुंकार से हरिद्वार व नैनीताल सीटों पर अनुसूचित जाति-जनजाति और मुस्लिम मतदाता बसपा की ओर धु्रवीकृत होते हैं तो कांग्रेस दोनों सीटों पर मुश्किल में फंस सकती है। खासकर उस स्थिति में, अगर मुकाबला त्रिकोणात्मक शक्ल ले या भाजपा-कांग्रेस के बीच नजदीकी मुकाबला हो।

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