बस्तर में बकरा-भात पार्टी देकर आदिवासियों के बीच वोट बैंक बनाने में लगे उम्मीदवार

बस्तर और कोंटा विधानसभा क्षेत्र के गांवों से बकरा-भात के आयोजन की खबरें मिली हैं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Publish:Thu, 20 Sep 2018 07:54 PM (IST) Updated:Thu, 20 Sep 2018 07:55 PM (IST)
बस्तर में बकरा-भात पार्टी देकर आदिवासियों के बीच वोट बैंक बनाने में लगे उम्मीदवार
बस्तर में बकरा-भात पार्टी देकर आदिवासियों के बीच वोट बैंक बनाने में लगे उम्मीदवार

अनिल मिश्रा, नईदुनिया। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य बस्तर संभाग के जिलों में लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार चुनाव का रंग अलग ही चढ़ता है। दूसरे इलाकों में जहां प्रत्याशी लोगों को उपहार, रुपये, कंबल या शराब देकर वोट अपने पक्ष में करते हैं वहीं बस्तर में व्यक्तिगत तौर पर किसी को रुपये या उपहार देकर वोट बैंक बनाना मुश्किल रहता है। निर्णय सामूहिक होता है जिसमें परंपरा का पुट शामिल होता है। बस्तर में शादी-ब्याह से लेकर मृत्युभोज तक बकरा-भात का आयोजन किया जाता है।

अभी कांग्रेस-भाजपा ने टिकट वितरण नहीं किया है। यह भी तय नहीं है कि किसे टिकट मिलेगा और किसे नहीं, लेकिन बकरा-भात का अयोजन शुरू हो चुका है। पार्टी देने के बाद उम्मीदवार ग्रामीणों को माटी किरिया (मिट्टी की शपथ) भी दिला रहे हैं। आदिवासी अगर माटी किरिया ले लें तो फिर अपने वादे से नहीं डिगते। जाहिर है कि आचार संहिता लगने और टिकट वितरण से पहले ही बस्तर में चुनावी जंग के अस्त्र शस्त्र निकल चुके हैं।

चुनाव आते ही बस्तर में बकरा-भात का आयोजन

चुनाव आते ही सबसे ज्यादा चर्चा बस्तर की ही रही है। सभी प्रमुख दलों का फोकस बस्तर और आदिवासी हैं तो निर्वाचन आयोग का भी यहीं फोकस है। नक्सलवाद से प्रभावित बस्तर में चुनाव कराना बड़ी चुनौती माना जाता है। इधर निर्वाचन आयोग सुरक्षा प्रबंधों से लेकर दूसरी तैयारियों में जुटा है, पुलिस मुख्यालय में फोर्स की तैनाती पर मंथन हो रहा है और उधर गांवों में पार्टी शुरू हो चुकी है। बस्तर और कोंटा विधानसभा क्षेत्र के गांवों से बकरा-भात के आयोजन की खबरें मिली हैं।

न्यौता कबूलने का निर्णय भी सामूहिक

यह ऐसा आयोजन है जिसमें उत्सव का माहौल बन जाता है। महुआ की शराब और बकरे का गोश्त खाकर नाच-गान में डूबे आदिवासियों को इसी दौरान अपने पक्ष में करने की कवायद की जाती है। हालांकि ऐसे आयोजन सभी पार्टियां करती हैं लेकिन किसी गांव को किसका न्यौता मंजूर होगा यह ग्रामीण मिलकर तय करते हैं।

राजनीतिक जागरूकत की कमी नहीं

बस्तर के आदिवासी राजनीतिक रूप से बेहद शिक्षित माने जाते हैं। इन्हें अपने पाले में करना बहुत मुश्किल काम है। माटी किरिया ऐसी प्रथा है जिसे तोड़ा नहीं जाता है। हर प्रत्याशी चाहता है कि आदिवासी उसके लिए माटी किरिया उठा लें लेकिन ऐसा होता नहीं है। माटी किरिया किसके लिए खाई जाए यह सोच समझकर तय किया जाता है।

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