जीवाश्म ईंधन से बढ़ता वायु प्रदूषण, दुनिया को प्रतिदिन करीब आठ अरब डॉलर का नुकसान

Fossil Fuel Increases Air Pollution रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण से चीन में प्रतिवर्ष होने वाले नुकसान की लागत 900 अरब डॉलर us में 600 अरब डॉलर और भारत में 150 अरब डॉलर है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 04 Mar 2020 09:59 AM (IST) Updated:Wed, 04 Mar 2020 10:13 AM (IST)
जीवाश्म ईंधन से बढ़ता वायु प्रदूषण, दुनिया को प्रतिदिन करीब आठ अरब डॉलर का नुकसान
जीवाश्म ईंधन से बढ़ता वायु प्रदूषण, दुनिया को प्रतिदिन करीब आठ अरब डॉलर का नुकसान

[देवेंद्रराज सुथार]। Fossil Fuel Increases Air Pollution: पर्यावरणीय अनुसंधान समूह सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) और ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया ने अपने अध्ययन में दावा किया है कि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से होने वाले वायु प्रदूषण से दुनिया को प्रतिदिन करीब आठ अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। यह लागत वैश्विक अर्थव्यवस्था का 3.3 प्रतिशत है। समूह ने रिपोर्ट में तेल, गैस और कोयले से होने वाले वायु प्रदूषण के नुकसान का आकलन किया है।

दुनियाभर में 45 लाख लोगों की मौत : रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषण से चीन में प्रतिवर्ष होने वाले नुकसान की लागत 900 अरब डॉलर, अमेरिका में 600 अरब डॉलर और भारत में 150 अरब डॉलर है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) ने बताया है कि जीवाश्म ईंधन को जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण की चपेट में प्रतिवर्ष दुनियाभर में 45 लाख लोगों की मौत होती है। चीन में जहां 18 लाख तो भारत में 10 लाख मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। अधिकतर मौतें हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और तीव्र श्वसन संक्रमण से होती हैं। हाल के अध्ययनों में यह सामने आया था कि भारत की राजधानी नई दिल्ली में रहने का मतलब 10 सिगरेट के बराबर धुआं ग्रहण करना है।

करीब 20 लाख बच्चों का जन्म समय से पहले : शोधकर्ताओं ने बताया है कि पीएम 2.5 की स्थिति सबसे ज्यादा खतरनाक है। इसकी वजह से प्रतिवर्ष दुनिया में दो ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होता है। पीएम 2.5 की वजह से पांच साल से कम उम्र वाले 40,000 बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। करीब 20 लाख बच्चों का जन्म समय से पहले होता है। पीएम 2.5 कण फेफड़ों में गहराई से प्रवेश करते हैं और रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं, जिससे हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियां उत्पन्न होती हैं।

डब्ल्यूएचओ ने इन्हें कैंसर के कारक के रूप में पाया है। वायु प्रदूषण का प्रभाव विकसित से लेकर विकासशील देशों में एक जैसा ही है। इसकी वजह से सालाना जहां यूरोपीय यूनियन के देशों में 3,98,000 लोगों की मौत तो अमेरिका में 2,30,000 लोगों की मौत होती है। वहीं बांग्लादेश में 96,000 तो इंडोनेशिया में 44,000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है।

ग्रामीण परिवार चूल्हे पर भोजन पकाने को मजबूर : हालांकि भारत में सरकार द्वारा महिलाओं को लकड़ी इकट्ठा करने और उससे होने वाले धुएं से राहत देने के उद्देश्य से चलाई जा रही उज्ज्वला योजना से कई गांवों में फायदा हुआ है, लेकिन अभी तक यह योजना पूरी तरह से कारगर साबित नहीं हुई है। भारत में आज भी अधिकतर ग्रामीण परिवार चूल्हे पर भोजन पकाने को मजबूर हैं। रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पैसनेट इकोनॉमिक्स (आरआइसीई) के एक नए अध्ययन से पता चला है कि पैसे की कमी की वजह से बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में 85 फीसद उज्ज्वला लाभार्थी अभी भी खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन यानी कि मिट्टी के चूल्हे का उपयोग करते हैं।

36 फीसद लोग सिर्फ मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाते हैं : आरआइसीई के सर्वेक्षण के मुताबिक इन राज्यों के 76 फीसद परिवारों के पास अब एलपीजी कनेक्शन है। हालांकि इनमें से 98 फीसद से अधिक घरों में मिट्टी का चूल्हा भी है। केवल 27 फीसद घरों में विशेष रूप से गैस के चूल्हे का उपयोग किया जाता है। वहीं 37 फीसद लोग मिट्टी का चूल्हा और गैस चूल्हा दोनों का उपयोग करते हैं, जबकि 36 फीसद लोग सिर्फ मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाते हैं। उज्ज्वला लाभार्थियों की स्थिति ज्यादा खराब है। सर्वेक्षण में पता चला है कि जिन लोगों को उज्ज्वला योजना का लाभ मिला है उसमें से 53 फीसद लोग सिर्फ मिट्टी का चूल्हा इस्तेमाल करते हैं, वहीं 32 फीसद लोग चूल्हा और गैस स्टोव, दोनों का इस्तेमाल करते हैं।

घरों में होने वाला प्रदूषण बाहरी प्रदूषण की तुलना में 10 गुना ज्यादा : रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लोगों ने खुद अपने घर में एलपीजी कनेक्शन की व्यवस्था की है, उनके मुकाबले उज्ज्वला लाभार्थी काफी गरीब हैं। अगर ऐसे लोग सिलेंडर दोबारा भरवाते हैं तो उनके घर की आय का एक बड़ा हिस्सा इसमें खर्च हो जाता है। इस वजह से ये परिवार सिलेंडर के खत्म होते ही दोबारा इसे भरवाने में असमर्थ होते हैं। देश में हर साल घरेलू वायु प्रदूषण से 5,27,700 लोगों की मौत हो जाती है। भारतीय शहरों में घरों में होने वाला प्रदूषण बाहरी प्रदूषण की तुलना में 10 गुना ज्यादा होता है। ईंधन का उपयोग करने वाले 0.2 बिलियन लोगों में से 49 प्रतिशत लकड़ी, 8.9 प्रतिशत गाय के गोबर, 1.5 प्रतिशत कोयला, लिग्नाइट या चारकोल, 2.9 प्रतिशत केरोसिन, 28.6 प्रतिशत द्रवीभूत पेट्रोलियम गैस, 0.4 प्रतिशत बायोगैस तथा 0.5 प्रतिशत अन्य साधनों का इस्तेमाल करते हैं।

लैंगिक असमानता इन सबमें एक मुख्य भूमिका निभाती है। सर्वेक्षणकर्ताओं ने पाया है कि लगभग 70 फीसद परिवार ठोस ईंधन पर कुछ भी खर्च नहीं करते हैं। दरअसल सब्सिडी दर पर भी सिलेंडर भराने की लागत ठोस ईंधन के मुकाबले कहीं ज्यादा है। ऊर्जा के अनवीकरणीय स्नोत (जीवाश्म ईंधन, कोयला, पेट्रोलियम या खनिज तेल, प्राकृतिक गैस) के अधिक उपयोग होने के कारण पर्यावरण जगत को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। साफ है आधुनिक वाहनों एवं कल कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं कई बीमारियों को न्योता दे रहा है।

प्रदूषण के इस विकराल रूप से मानव के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। जीवाश्म ईंधन से होने वाला वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक तंत्र के लिए भी खतरा है। इससे लाखों लोगों की जान जा रही है, लेकिन यह ऐसी समस्या नहीं है जिससे निजात नहीं पाया जा सकता है। ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन को छोड़कर नवीकरणीय स्रोतों को अपनाना होगा। अत: आवश्यकता है कि उज्ज्वला लाभार्थियों को सब्सिडी की अधिकाधिक राहत प्रदान कर उन्हें चूल्हे की जगह गैस के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करें। चूल्हे के प्रदूषण से मुक्ति की दिशा में सौर ऊर्जा भी एक बेहतरीन विकल्प है। सौर ऊर्जा के उपयोग को लेकर लोगों में जागरूकता लाई जानी चाहिए, ताकि घरेलू प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सके।

विश्वभर में वायु प्रदूषण के सबसे खराब स्तर वाले शहरों की सालाना सूची में भारत के शहर एक बार फिर शीर्ष पर हैं। यह स्थिति तब है जब भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारी संख्या में कानून, नियम और दिशानिर्देश मौजूद हैं। जाहिर है कि असली समस्या इन्हें ईमानदारी से लागू नहीं करा पाने की है। इसीलिए यह आवश्यक हो जाता है कि सरकारें अपनी जिम्मेदारियों के प्रति और लोग अपने कर्तव्यों के प्रति समय रहते जागरूक हो जाएं।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]

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