700 साल पुराने गांव के 12 हजार मकानों पर फिर लटकी तलवार, एएसआइ ने शुरू किया सर्वे

गांव का इतिहास तुगलकाबाद गांव सात सौ साल पुराना है। माना जाता है कि इसे उसी समय बसाया गया था जब 1325 में गयासुद्दीन तुगलक का शासन यहां था। एएसआइ ने अब सर्वे शुरू किया है।

By Edited By: Publish:Tue, 25 Dec 2018 07:01 PM (IST) Updated:Wed, 26 Dec 2018 08:13 AM (IST)
700 साल पुराने गांव के 12 हजार मकानों पर फिर लटकी तलवार, एएसआइ ने शुरू किया सर्वे
700 साल पुराने गांव के 12 हजार मकानों पर फिर लटकी तलवार, एएसआइ ने शुरू किया सर्वे

नई दिल्ली, जेएनएन। बारह हजार मकान टूटेंगे या बचेंगे यह मुद्दा फिर से तुगलकाबाद में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस चर्चा का कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा पुलिस को साथ लेकर तुगलकाबाद में सर्वे शुरू कराया जाना है। लोगों से उनके मकानों के बारे में दस्तावेजों की डिटेल ली जा रही है। जिससे यह पता चल सके कि वे यहां कितने साल से रह रहे हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हो रहा सर्वे
एएसआइ यह सर्वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत करा रहा है। एएसआइ का दावा है कि जिस जमीन पर गांव का विस्तार हुआ है वह जमीन उसकी है। इस जमीन पर 12 हजार से भी अधिक मकान बन गए हैं। 2011 व 12 में भी इस जमीन को खाली कराने के प्रयास हुए थे। मगर मामला बीच में ही लटक गया था। क्योंकि उस समय कुछ लोग केंद्र सरकार के पास चले गए थे।

केंद्र सरकार ने नहीं की कार्रवाई
केंद्र सरकार के दबाव में यह कार्रवाई नहीं हो सकी थी। एएसआइ का कहना है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है। जिसमें कोर्ट ने सर्वे कराने के लिए कहा है। एएसआइ पिछले एक माह से सर्वे करा रहा है। जिसमें 300 के करीब ही मकानों का सर्वे अभी हो सका है। माना जा रहा है कि इस कार्य में समय लग सकता है। सर्वे कराने के बाद एएसआइ रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में सौंपेगा। जिसके आधार पर तय होगा कि यहां के मकानों को क्या फैसला लिया जाए।

सांसद रमेश बिधूड़ी ने बताया कि तुगलकाबाद से मेरा पुराना संबंध है। जब केंद्र सरकार ने 2014 में स्पेशल प्रोविजनल एक्ट पास कर दिया है तो 2014 तक यहां बसे लोगों को रहने की इजाजत दी जानी चाहिए। मै एएसआइ के लोगों से बात करूंगा कि सर्वे क्यों कराया जा रहा है? उन्होंने कहा कि यह जमीन 1995 में दिल्ली सरकार से एएसआइ को मिली है। ऐसे में इस पर कार्रवाई का मामला नहीं बनता है। 

साढ़े छह किलोमीटर में फैला हुआ था तुगलकाबाद का रकबा
दक्षिणी दिल्ली के महरौली से बदरपुर मार्ग पर कभी तुगलकाबाद किला का रकबा साढ़े छह किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था। एएसआइ के अनुसार उसकी 800 बीघे जमीन पर अवैध कब्जा हो गया। 2001-2002 में इस जमीन को खाली कराने के लिए कार्रवाई शुरू की। 350 बीघा जमीन खाली हुई थी कि उसी समय इस कार्रवाई के विरोध में कुछ लोगों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर हाई कोर्ट ने गांव के लोगों के पक्ष में स्टे दे दिया।

खाली कराई जमीन पर फिर हो गया कब्‍जा
इसके बाद खाली कराई गई 350 बीघा जमीन पर फिर से कब्जा हो गया। एएसआइ इस मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय चला गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने आठ सितंबर 2011 को अपने आदेश में इस जमीन से स्टे हटा दिया और दो माह में इस जमीन को खाली कराने के लिए कहा।

सुप्रीम कोर्ट करा चुकी है सीबीआइ जांच
मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने पर अदालत ने इस मामले की जांच सीबीआइ से कराई कि आखिर सच्चाई क्या है कौन गलत है। सीबीआइ ने इसकी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। जिसमें साफ कहा गया कि जमीन एएसआइ की ही है। सीबीआइ की रिपोर्ट पर दिल्ली पुलिस ने एएसआइ की जमीन पर कब्जा करने के 300 से अधिक लोगों पर मुकदमे किए।

क्या है स्थिति
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इन मकानों को तोड़ने के लिए सितंबर 2011 में कार्रवाई शुरू करने जा रहा था, मगर इसी बीच गांव के लोग भी सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष लेकर पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने एएसआइ से कहा है कि पहले 1993 के बाद के बने मकानों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराएं। उसके बाद से इस बारे में कार्रवाई चल रही है। कानून के जानकार बताते है कि कार्रवाई तो होगी ही। बताया जाता है कि उन लोगों पर कार्रवाई पहले हो सकती है जो 1993 के बाद यहां आकर बसे हैं।

गांव का इतिहास सात सौ साल पुराना
गांव का इतिहास तुगलकाबाद गांव सात सौ साल पुराना है। माना जाता है कि इसे उसी समय बसाया गया था जब 1325 में गयासुद्दीन तुगलक का शासन यहां था। यह गांव उस परिधि के अंदर आता है जो जगह कभी गयासुद्दीन तुगलक के साढे़ 6 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले शहर का भाग था। गयासुद्दीन तुगलक के बाद उसके पुत्र और उत्तराधिकारी मुहम्मद बिन तुगलक ने 1351 तक यहां शासन चलाया। उसके बाद सब छिन्न-भिन्न हो गया। 1908 में गांवों के तय किए गए लालडोरा में तुगलकाबाद प्रमुख रूप से शामिल है। अन्य गांवों की तरह यहां भी बसावट बढ़ती गई और गांव का विस्तार लालडोरा से अलग हो गया है।

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