गुरु दक्षिणा में रबड़ी, गुुड़-चना, लेने वाला गुुरु, संगीत के सम्पूर्ण अवतार थे पंडित बिरजू महाराज

पंडित बिरजू महाराज संगीत के सम्पूर्ण अवतार थे। वो गायक भी थे वादक भी और नर्तक भी। जितना बेहतर तबला बजाते थे उतना ही पखावज भी। उनके निधन की खबर सुनकर कला जगत में शोेक की लहर छा गई। शिष्यों की आंखों से आंसूं बहने लगे।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Mon, 17 Jan 2022 05:43 PM (IST) Updated:Mon, 17 Jan 2022 05:43 PM (IST)
गुरु दक्षिणा में रबड़ी, गुुड़-चना, लेने वाला गुुरु, संगीत के सम्पूर्ण अवतार थे पंडित बिरजू महाराज
पंडित बिरजू महाराज संगीत के सम्पूर्ण अवतार थे। वो गायक भी थे, वादक भी और नर्तक भी।

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। जब गायन, वादन और नर्तन, तीनों कलाएं एक साथ मिलती हैं तो संगीत का सम्पूर्ण स्वरूप उभरता है। पंडित बिरजू महाराज संगीत के सम्पूर्ण अवतार थे। वो गायक भी थे, वादक भी और नर्तक भी। जितना बेहतर तबला बजाते थे, उतना ही पखावज भी। उनके निधन की खबर सुनकर कला जगत में शोेक की लहर छा गई। शिष्यों की आंखों से आंसू बहने लगे। पंडित बिरजू महाराज शिष्यों का शिष्यों के प्रति अपार स्नेह था। ऐसे भी शार्गिद हैं, जिनसे उन्होने गुरु दक्षिणा में पैसे नहीं लिए।

पद्म श्री शोभना नारायण नेे बताया कि उन्होंने महाराज जी से 1964 में नृत्य संगीत सीखना शुरू किया था। उस समय भारतीय कला केंद्र का निर्माण हो रहा था ता हाल और स्टाफ क्वार्टर माता सुंदरी रोड पर शिफ्ट हो गया था। बकौल शोभना नारायण, मैं उनके दूसरे बैच में थी। वो प्रतिदिन तीन से चार घंटे तक पढ़ाते थे लेकिन बदले में एक रुपया तक नहीं लिया। उनकी गुरु-दक्षिणा केवल एक प्लेट रबड़ी और पान था। बहुत से शार्गिद उन्हें यही अर्पित करते थे।

शोभना नारायण ने अपनी पुस्तक में गंडा बंधन का भी विस्तार से जिक्र किया है। लिखतीं हैं कि हवन के बाद महाराज जी ने घुंघरु को आर्शिवाद दे पहनने के लिए दिया। साथ ही चना और गुड़ खाने को कहा। उन्होंने कहा कि चना को चबाना कठिन है, इसी तरह नृत्य सीखना भी कठिन होता है।

दरअसल, पंडित बिरजू महाराज जी कहते थे कि गंडा बंधन के तहत शुभ दिन, शुभ घड़ी में पूजा होती है। पूजा के बाद चना और गुुड़ खाने के लिए देते हैं। चना इस बात का प्रतीक होता है कि यह रास्ता कठिन है और गुड़ इस बात का कि अगर शिष्य ने तयकर लिया है तो जीवन में मिठास ही मिठास होगी।

पद्मश्री उमा शर्मा ने बताया कि उम्र बढ़ने केे साथ डायबिटीज के कारण महाराज जी मीठे से परहेज करने लगे थे। बकौल उमा शर्मा दिवाली पर घर आए थे तो जमकर रसगुल्ला खाए। उनके आवास पर जाने वाले को महाराज जी मिठाई जरूर खिलाते थे।

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