दिल्ली के कांग्रेस नेता हारून यूसुफ ने गुलाम नबी आजाद पर बोला हमला, कहा- 2004 से 2014 तक क्यों चुप थे

हारून यूसुफ ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम को भी यह कहते हुए कठघरे में घसीटा है कि नेतृत्व पर अंगुली उठाने से पहले वे पार्टी के लिए अपना योगदान बताएं कि उन्होंने आज तक संगठन को मजबूत करने के लिए क्या किया?

By JP YadavEdited By: Publish:Mon, 23 Nov 2020 03:04 PM (IST) Updated:Mon, 23 Nov 2020 03:04 PM (IST)
दिल्ली के कांग्रेस नेता हारून यूसुफ ने गुलाम नबी आजाद पर बोला हमला, कहा- 2004 से 2014 तक क्यों चुप थे
हारून यूसुफ और गुलाम नबी आजाद की फाइल फोटो।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। नेतृत्व संकट और कार्यप्रणाली को लेकर कांग्रेस में चल रहा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। शीर्ष नेतृत्व जहां चुप्पी साधे है वहीं कांग्रेसी वरिष्ठ नेता आपस में उलझ रहे हैं। अब इस विवाद में दिल्ली के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री हारून यूसुफ भी कूद पड़े हैं। उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद पर जोरदार हमला है। सोमवार को हारून यूसुफ ने कहा है कि आज जबकि कांग्रेस मुश्किल दौर से गुजर रही है तो गुलाम नबी आजाद जैसे नेता बड़े बड़े बयान दे रहे हैं कि फाइव स्टार होटलों में बैठकर चुनाव नहीं जीते जाते और जमीन से कांग्रेस कट चुकी है। बकौल हारून यूसुफ वह इस सच को भूल रहे हैं कि जब 2004 से 2014 तक कांग्रेस सत्ता में थी तो वह (गुलाम नबी आजाद) भी उसका सत्ता सुख भोग रहे थे। उस समय उन्हें ऐसी कोई खामी नजर नहीं आई, जैसी अब नजर आने लगी है। हारून यूसुफ ने सवाल किया कि गुलाम नबी को अगर संगठन में इतनी खामियां दिखाई दे रही थी तो उन्होंने केंद्रीय कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठकों में क्यों नहीं कभी आवाज उठाई? 

हारून यूसुफ ने पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम को भी यह कहते हुए कठघरे में घसीटा है कि नेतृत्व पर अंगुली उठाने से पहले वे पार्टी के लिए अपना योगदान बताएं कि उन्होंने आज तक संगठन को मजबूत करने के लिए क्या किया? बकौल हारून, ये सभी नेता केवल सुख भोगना जानते हैं और जब दुख या कठिनाइयों का समय आता है तो भाग खड़े होते हैं।

पूर्व मंत्री हारून यूसुफ ने यह भी कहा कि कांग्रेस एक आंदोलन है, एक विचार है। देश की एक बहुत बड़ी आबादी इसके साथ है। जरूरत इसे मजबूती से आगे बढ़ाने की है, एक दूसरे की खामियां निकालकर उसे हाशिए पर ले जाने की नहीं।

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