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दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की पता चली वजह, IIT के शोध में आया सामने; जीवन और स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा खराब असर

स्थानीय स्रोत वायु प्रदूषण बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले मुख्य कारक हैं। दिल्ली में यातायात आवासीय गर्मी और औद्योगिक गतिविधियों से अमोनियम क्लोराइड और कार्बनिक एरोसोल प्रमुख योगदानकर्ता हैं। दिल्ली के बाहर कृषि अपशिष्ट जलाने से होने वाला उत्सर्जन और इस उत्सर्जन से बनने वाले द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल अधिक प्रचलित हैं। इस समस्या में लकड़ी गोबर कोयला और पेट्रोल जैसे ईंधन का दहन भी शामिल है।

By sanjeev Gupta Edited By: Geetarjun Published: Tue, 30 Apr 2024 12:21 AM (IST)Updated: Tue, 30 Apr 2024 12:21 AM (IST)
दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की पता चली वजह, IIT के शोध में आया सामने।

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। स्थानीय स्रोत वायु प्रदूषण बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले मुख्य कारक हैं। दिल्ली में यातायात, आवासीय गर्मी और औद्योगिक गतिविधियों से अमोनियम क्लोराइड और कार्बनिक एरोसोल प्रमुख योगदानकर्ता हैं। दिल्ली के बाहर, कृषि अपशिष्ट जलाने से होने वाला उत्सर्जन और इस उत्सर्जन से बनने वाले द्वितीयक कार्बनिक एरोसोल अधिक प्रचलित हैं।

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इस समस्या में लकड़ी, गोबर, कोयला और पेट्रोल जैसे ईंधन का दहन भी शामिल है। इससे हानिकारक कण बनते हैं, जो हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।

स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को जाना

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी कानपुर) के सिविल इंजीनियरिंग और सस्टेनेबल एनर्जी इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी के इस नए शोध ने उत्तरी भारत में हानिकारक वायु प्रदूषकों के प्रमुख स्रोतों के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उनके प्रभाव का भी पता लगाया है।

दिल्ली के कई इलाकों से लिया डेटा

"नेचर कम्युनिकेशंस" में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चलता है कि स्थानीय उत्सर्जन, विशेष रूप से विभिन्न ईंधनों के अधूरे दहन से क्षेत्र में खराब वायु गुणवत्ता और संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रो. त्रिपाठी की टीम ने दिल्ली और उसके आसपास की जगहों सहित भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में पांच स्थानों से वायु गुणवत्ता डेटा का विश्लेषण किया है।

स्थान की परवाह किए बिना, इस अध्ययन ने वायु प्रदूषण की ऑक्सीडेटिव क्षमता को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक के रूप में बायोमास और जीवाश्म ईंधन के अधूरे दहन से कार्बनिक एरोसोल की पहचान की है, जो प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव पैदा करने की इसकी क्षमता का एक प्रमुख संकेतक है।

प्रो. त्रिपाठी ने बताया, “ऑक्सीडेटिव क्षमता उन मुक्त कणों को संदर्भित करती है जो तब उत्पन्न होते हैं जब प्रदूषक पर्यावरण या हमारे शरीर में कुछ पदार्थों के साथ संपर्क करते हैं। ये मुक्त कण कोशिकाओं, प्रोटीन और डीएनए के साथ प्रतिक्रिया करके नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऑक्सीडेटिव क्षमता मापती है कि वायु प्रदूषण के कारण इस प्रतिक्रिया की कितनी संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप श्वसन संबंधी रोग, हृदय रोग और तेजी से उम्र बढ़ने जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मनिन्द्र अग्रवाल ने कहा कि “यह अध्ययन उन व्यापक रणनीतियों की आवश्यकता पर जोर देता है जो स्थानीय उत्सर्जन स्रोतों को संबोधित करती हैं। विशेष रूप से परिवहन, आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देती हैं। सख्त उत्सर्जन मानकों को लागू करने, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने और वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने से न केवल उत्तर भारत बल्कि देश के बाकी हिस्सों के लिए स्वच्छ हवा और स्वस्थ भविष्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी।


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