Delhi Pollution 2020: पराली जलाने से फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता होती है प्रभावित

किसानों को सलाह है कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाए क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज्यादा होता है और स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणे फसलों तक कम पहुंचती है।

By Edited By: Publish:Wed, 28 Oct 2020 10:04 PM (IST) Updated:Wed, 28 Oct 2020 10:54 PM (IST)
Delhi Pollution 2020: पराली जलाने से फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता होती है प्रभावित
बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। किसानों को सलाह है कि खरीफ की प्रमुख फसल धान के बचे हुए अवशेष (पराली) को ने जलाएं, क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज्यादा होता है और स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुंचती हैं, जिससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें। इससे मृदा की उर्वरकता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है, जिससे मृदा से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है। नमी मृदा में संरक्षित रहती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डिकंपोजर कैप्सूल का उपयोग किया जा सकता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि मौसम को ध्यान में रखते हुए गेहूं की बुवाई के लिए खाली खेतों को तैयार करें व उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें। उन्नत प्रजातियों में सिंचित परिस्थिति(एचडी-3226), (एचडी-2967), (एचडी-3086), (एचडी-2733), (एचडी- 2851) शामिल है। बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें। जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाइरिफांस 20 ईसी को पांच लीटर प्रति हैक्टर की दर से पलेवा के साथ दें। नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। मिट्टी की जांच के बाद यदि गंधक की कमी हो तो 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई पर डालें।

बुवाई से पूर्व मृदा में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें। उन्नत किस्मों में पूसा विजय, पूसा सरसों-29, पूसा सरसों-30, पूसा सरसों-31 शामिल है। बीज की दर डेढ़ से दो किलोग्राम प्रति एकड़ रखें। बुवाई से पहले खेत में नमी के स्तर को अवश्य ज्ञात कर लें, ताकि अंकुरण प्रभावित न हो। कम फैलने वाली किस्मों की बुवाई 30 सेंटीमीटर और अधिक फैलने वाली किस्मों की बुवाई 50 सेंटीमीटर दूरी पर बनी पंक्तियों में करें। विरलीकरण से पौधे से पौधे की दूरी करीब 15 सेंटीमीटर कर ले। वैज्ञानिकों के मुताबिक मटर की बुवाई में और अधिक देरी न करें, नहीं तो फसल की उपज में कमी होगी व कीड़ों का प्रकोप अधिक हो सकता है। उन्नत किस्मों में पूसा प्रगति व आर्किल शामिल है। गुड़ को पानी में उबालकर ठंडा कर ले और राइजोबियम को बीज के साथ मिलाकर उपचारित करें। सूखने के लिए किसी छायेदार स्थान में रख दें तथा अगले दिन बुवाई करें। किसान इस समय लहसुन की बुवाई कर सकते हैं।

उन्नत किस्मों में जी-1, जी-41, जी-50, जी-282 शामिल है। खेत में देसी खाद और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। किसान चने की बुवाई इस सप्ताह कर सकते हैं। छोटी एवं मध्यम आकार के दाने वाली किस्मों के लिए 60 से 80 किलोग्राम तथा बड़े दाने वाली किस्मों के लिए 80 से 100 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज डाले। प्रमुख काबुली किस्मों में पूसा-267, पूसा-1003, पूसा चमत्कार (बीजी-1053) और देशी किस्मों में सी-235, पूसा-246, पीबीजी-1, पूसा-372 शामिल है।

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