क्या टूट की ओर बढ़ रहा है संयुक्त किसान मोर्चा? दिल्ली में बैठक के दौरान हाथापाई तक की आई नौबत

Sanyukt Kisan Morcha तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध प्रदर्शन करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं में आपस में विवाद सामने आने लगे हैं। सोमवार को दिल्ली में हुई बैठक में इसकी झलक साफ साफ दिखाई दी।

By Jp YadavEdited By: Publish:Tue, 15 Mar 2022 09:12 AM (IST) Updated:Tue, 15 Mar 2022 09:44 AM (IST)
क्या टूट की ओर बढ़ रहा है संयुक्त किसान मोर्चा? दिल्ली में बैठक के दौरान हाथापाई तक की आई नौबत
क्या टूट की ओर बढ़ रहा है संयुक्त किसान मोर्चा? दिल्ली में बैठक के दौरान हाथापाई होते-होते बची

नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा में तकरार तेज हो गई है। चुनाव बाद पहली बार दीनदयाल उपाध्याय मार्ग स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में जुटे मोर्चे के पदाधिकारियों में खूब रार हुई। सोमवार को गुटों में बंटकर बैठकें हुईं और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का दौर भी खूब चला। कई बार नौबत हाथापाई तक की आती दिखाई दी, लेकिन बीचबचाव कर मामला संभाल लिया गया। विशेष बात यह रही कि बैठक में वामपंथी नेता अतुल अंजान के साथ अन्य सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद रहे। बताया जा रहा है कि संयुक्त किसान मोर्चा में आपसी फूट कभी भी सार्वजनिक रूप से सामने आ सकती है।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव में संयुक्त किसान मोर्चा ने खुलकर भाजपा का बहिष्कार करने के लिए कहा था। उसे उम्मीद थी कि उसका बहिष्कार भाजपा के विजय रथ को रोक देगा और उसका कंधा लेकर विपक्षी दल जीत दर्ज करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समय रहते विवाद का कारण बने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया। इससे चुनाव में किसान आंदोलन को भुनाने के मोर्चे के नेताओं के मंसूबे पर पानी फिर गया। इसके उलट चुनाव में मतदाताओं का सत्ता पक्ष की ओर ही रुझान रहा। यही कारण रहा कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर में भाजपा ने जोरदार तरीके से जीत दर्ज की और कई मिथक टूट गए।

बैठक में आंदोलन से उपजे आक्रोश को भुनाने के लिए मोर्चा के एक गुट द्वारा राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने के मामले को लेकर भी टकराव देखने को मिला। राजनीतिक दल बनाकर पंजाब में चुनाव लड़ने वाले मोर्चा के नेता बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम सिंह चढूनी को मोर्चा से बाहर का रास्ता दिखाने के पक्ष में दूसरा गुट दिखा। फिर कुछ नेता इसको लेकर गांधी शांति प्रतिष्ठान के मुख्य हाल के बाहर बैठक करने लगे। इसमें मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव, दर्शन पाल सिंह और हन्नान मोल्ला शामिल थे।

वहीं, दूसरा गुट इस संबंध में दबे स्वर से योगेंद्र यादव पर सवाल उठा रहा था, जिनकी खुद की एक राजनीतिक पार्टी है। इस बीच संगठन से जुड़े कार्यकर्ता असमंजस में थे कि वो किस गुट में शामिल हों। फिलहाल योगेंद्र यादव वाले गुट की ओर से संगठन में अनुशासन के लिए एक मसौदा तैयार करने का प्रस्ताव दिया गया है। उसे सभी गुट के नेताओं को भेजा जाएगा।

गौरतलब है कि 10 मार्च को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत पांच राज्योें के चुनाव परिणामों में 4 में भाजपा की दमदार वापसी हुई। यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार बनी है। हैरत की बात है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में किसान आंदोलन का असर नहीं दिखाई दिया और यहां पर भारतीय जनता पार्टी को झोलीभर के वोट और सीटें मिलीं  है। दिल्ली से सटे जिन इलाकों में किसान आंदोलन अधिक प्रभावी रहा वही की सभी 11 सीटों पर भाजपा बड़े अंतर से जीती।

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