लोकसभा चुनाव 2019ः गुटबाजी से पार पाना मनोज तिवारी के लिए बड़ी चुनौती

अध्यक्ष के रूप में अगला साल उनके लिए बड़ी चुनौतियां भी लेकर आएगा।

By JP YadavEdited By: Publish:Fri, 01 Dec 2017 10:05 AM (IST) Updated:Fri, 01 Dec 2017 12:01 PM (IST)
लोकसभा चुनाव 2019ः गुटबाजी से पार पाना मनोज तिवारी के लिए बड़ी चुनौती
लोकसभा चुनाव 2019ः गुटबाजी से पार पाना मनोज तिवारी के लिए बड़ी चुनौती

नई दिल्ली (संतोष कुमार सिंह)। विधानसभा चुनावों में लगातार हार के बाद दिल्ली नगर निगमों के चुनाव में ऐतिहासिक जीत, चुनावी सभाओं व पार्टी के कार्यक्रमों में उमड़ी भीड़ और पुरबिया चेहरे से दिल्ली के जमीनी नेता के रूप में स्वीकार्यता...। यह मनोज तिवारी के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में एक साल के कार्यकाल की उपलब्धियां कही जा सकती हैं।

वहीं, इन उपलब्धियों के बीच बवाना विधानसभा उपचुनाव में करारी हार और पार्टी में गुटबाजी पर नियंत्रण न हो पाना, उनके इस कार्यकाल की बड़ी विफलता रही है। ऐसी स्थिति में अध्यक्ष के रूप में अगला साल उनके लिए बड़ी चुनौतियां भी लेकर आएगा।

गुटबाजी के बीच अगले चुनावों में मिशन 50 फीसद वोट शेयर का लक्ष्य हासिल करना उनके लिए आसान नहीं होगा। साफ है कि मनोज तिवारी को पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही मोर्चों पर बराबर शक्ति झोंकनी होगी, ताकि भाजपा के लिए दिल्ली की सत्ता का सफर आसान हो सके।

निगम चुनाव से ठीक पहले पुरबिया चेहरे पर भाजपा का दांव बिल्कुल सही बैठा और मनोज तिवारी की सभाओं में लोगों की भीड़ उमड़ने लगी। इससे कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बढ़ा। मनोज तिवारी ने भी दिल्ली की सड़कों पर खूब पसीना बहाया।

गरीबों के बीच पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए उन्होंने झुग्गी बस्तियों और गांवों में प्रवास भी किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत का असर और प्रदेश अध्यक्ष की मेहनत की वजह से भाजपा ने निगम की सत्ता में तीसरी बार भारी बहुमत से वापसी की।

इस जीत से पार्टी में गुटबाजी खत्म होने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चुनाव परिणाम आने के कुछ दिनों बाद ही केंद्रीय राज्यमंत्री विजय गोयल द्वारा पार्षदों को सम्मानित करने के लिए आयोजित कार्यक्रम से लड़ाई और तेज हो गई।

प्रदेश नेतृत्व ने पार्षदों को इस कार्यक्रम से दूरी बनाने को कहा था। इसके बावजूद कुछ पार्षद कार्यक्रम में शामिल हुए थे। इस लड़ाई की वजह से निगम के पदाधिकारियों की घोषणा भी काफी समय तक नहीं हो सकी थी। अब भी इन दोनों नेताओं के बीच सियासी वर्चस्व की जंग जारी है।

वहीं, प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू के साथ भी प्रदेश नेतृत्व के संबंध मधुर नहीं हैं। प्रदेश के कई पदाधिकारी भी प्रदेश अध्यक्ष से ज्यादा जाजू और विजय गोयल के नजदीकी बताए जाते हैं। इससे संगठन का काम प्रभावित हो रहा है। इसका असर बवाना विधानसभा उपचुनाव में भी दिखा।

पंजाब विधानसभा चुनाव व निगम चुनाव में हार से बैकफुट पर चली गई आम आदमी पार्टी को भाजपा ने थाली में सजाकर बवाना सीट दे दी। गुटबाजी से प्रदेश में पार्टी का विस्तार भी प्रभावित हो रहा है। शीर्ष नेतृत्व ने अगले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में आप व कांग्रेस के बीच वोट बंटवारे के सहारे जीत तलाशने के बजाय अपना जनाधार बढ़ाने का निर्देश दिया है।

इसके लिए पार्टी ने दिल्ली में 50 फीसद वोट शेयर हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसे हासिल करने के लिए पार्टी में एकता जरूरी है। मनोज तिवारी खेल मुकाबले, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और गरीबों से संवाद कर जनाधार बढ़ाने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन उन्हें विरोधी नेताओं को साधकर अपना घर भी मजबूत करना होगा।

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