अधूरी रह गई समुद्र में छिपे खजाने की खोज

By Edited By: Publish:Sat, 19 Apr 2014 01:46 AM (IST) Updated:Sat, 19 Apr 2014 01:46 AM (IST)
अधूरी रह गई समुद्र में छिपे खजाने की खोज

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली :

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की महत्वपूर्ण विंग अंत:जलीय पुरातत्व विंग (अंडर वाटर ऑर्कोलाजी) के निष्क्रिय हो जाने से समुद्र में छिपे पुरातात्विक खजाने को ढूंढने की खोज अधूरी रह गई है। 2009 से ही इस विंग में काम ठप पड़ा है।

लालकिला स्थित इस विंग के मुख्यालय में बड़ी योजनाओं पर काम करने की रणनीति तय होती रहती थी, लेकिन आज इस विंग के पास योजनाएं ही नहीं है। वहीं सरकार ने भी इस विंग को बजट देना बंद कर दिया है। इस सब के पीछे एएसआइ में शीर्ष स्तर पर रणनीतिकारों और नीतिगत मामलों में फैसला लेने वालों का न होना माना जा रहा है।

ज्ञात हो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का अंत:जलीय पुरातत्व विंग एक महत्वपूर्ण विंग है। जो लंबे समय से काम करता आ रहा है। इसका काम देश के जलीय क्षेत्र (समुद्री क्षेत्र) में डूबी हुई पुरातात्विक धरोहर का पता लगाना व उसे निकाल कर लाना है।

इंडस जहाज को खोजने का काम रुका

बता दें कि 2002 में इस विंग ने इंडस नाम के उस जहाज को ढूंढने के लिए पहल शुरू की थी, जो 1885 में भारत से इंग्लैंड जाते समय श्रीलंका की सीमा वाले क्षेत्र उत्तरी समुद्री क्षेत्र में डूब गया था। इंडस जहाज में मध्यप्रदेश के भरहुत स्पूत की बहुत से महत्वपूर्ण मूर्तियां भी डूब गई थीं। हालांकि भरहुत से जुड़ी कुछ मूर्तियां एएसआइ के कलकत्ता स्थित संग्रहालय व ब्रिटेन के संग्रहालय में उपलब्ध हैं। एएसआइ के सूत्र बताते हैं कि 2002 में भारत के श्रीलंका के साथ संबंध बेहतर नहीं थे। इसलिए इस योजना पर उस समय काम रोक दिया गया था।

विशेष अधिकारियों ने काम छोड़ा

लाल किला स्थित इस विंग ने पुन: योजना पर 2008 में काम करना शुरू किया। तभी विभाग में विशेष अधिकारी काम छोड़ कर चले गए और कुछ कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। उस समय के बाद से इस योजना पर काम शुरू नहीं हो सका है।

इस समय केवल दो ही अधिकारी

इस विभाग में जहां कभी तीन अंत:जलीय पुरातत्व विशेषज्ञों सहित आधा दर्जन से अधिक अधिकारी होते थे, मगर अभी केवल दो ही अधिकारी हैं। ंउसमें भी एक भी विशेषज्ञ नहीं हैं। 2009 में ही इस विंग को सक्रिय करने के लिए 12 दर्जन के करीब अधिकारियों की भर्ती किए जाने की योजना बनाई गई थी। मगर बाद में यह कार्य भी ठप पड़ गया।

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कुछ महत्वपूर्ण खोज

- इसने 2002 में लक्ष्यद्वीप के पास 1792 में अरब सागर में डूबे एक जहाज को खोजा था और गोताखोरों की मदद से पानी की सतह से 60 मीटर गहराई में जाकर तोप, बर्तन व अन्य पुरातात्विक वस्तुएं निकाल कर लाया था।

- इस विंग ने 2007 में गुजरात के भगवान कृष्ण की नगरी द्वारिका के बारे में कुछ मिसिंग प्वाइंट ढूंढ निकाले थे।

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भारत का सात हजार किलोमीटर में फैला समुद्री क्षेत्र पुरातत्व की दृष्टि से बहुत धनी है। यहां काम करके इतिहास की गुम कड़ियों को जोड़ा जा सकता है। एएसआइ को इस दिशा में काम करना चाहिए।

- प्रो. आलोक त्रिपाठी, पुरातत्व विशेषज्ञ

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अंत:जलीय पुरातत्व विंग में विशेषज्ञों व कर्मचारियों की नियुक्ति का मामला संस्कृति मंत्रालय के पास लंबित है। वहां से अनुमति मिलने के बाद ही विशेषज्ञों व कर्मचारियों की नियुक्ति हो सकेगी।

- डॉ. बीआर मणि, अतिरिक्त महानिदेशक, एएसआइ

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