बैंक खाता पोर्टेबिलिटी के साथ अन्य कदम जरूरी

एक्सपर्ट का मानना है कि बैंक अकाउंट पोर्टेबिलिटी से पहले कुछ अन्य जरूरी कदम भी उठाने होंगे

By Praveen DwivediEdited By: Publish:Sun, 11 Jun 2017 01:06 PM (IST) Updated:Sun, 11 Jun 2017 03:09 PM (IST)
बैंक खाता पोर्टेबिलिटी के साथ अन्य कदम जरूरी
बैंक खाता पोर्टेबिलिटी के साथ अन्य कदम जरूरी

नई दिल्ली (धीरेन्द्र कुमार, वैल्यू रिसर्च सीईओ)। मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) की तर्ज पर बैंक अकाउंट पोर्टेबिलिटी की चर्चा शुरू हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक के चार डिप्टी गवर्नरों में से एक एसएस मुंद्रा ने हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि तकनीकी तौर पर बैंक अकाउंट पोर्टेबिलिटी ‘संभावनाओं के दायरे के भीतर आ गई’ है। उन्होंने आधार और नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआइ) के विभिन्न प्लेटफॉर्म के जरिये एमएनपी की तरह बैंक अकाउंट नंबर पोर्टेबिलिटी भी शुरू करने की वकालत की। वह बोले कि यूपीआइ (यूनिवर्सल पेमेंट्स इंटरफेस) और बैंक खातों के आधार से जुड़ने की व्यापक पहुंच को देखते हुए इस तरह की पोर्टेबिलिटी संभव है।

जाहिर है, इसके बाद इस मुद्दे पर चर्चा करने वाली खबरों की झड़ी लग गई। कमोबेश सभी खबरें बैंकरों के हवाले से आईं। हर खबर में बताया गया कि यह एमएनपी की तरह है। यानी ग्राहकों को बिना अपना अकाउंट नंबर बदले एक बैंक से दूसरे बैंक में खाता ट्रांसफर करने की सुविधा मिलेगी। लेकिन यह भी सच है कि दुनिया के किसी भी देश में बैंक अकाउंट पोर्टेबिलिटी की सुविधा नहीं है।

बेशक जितनी जल्दी हो सके बैंक अकाउंट पोर्टेबिलिटी को भारत में लागू किया जाना चाहिए। हालांकि, पोर्टेबिलिटी अपने में उस समस्या का हल नहीं है जिस तरह से भारतीय बैंक अपने ग्राहकों के साथ व्यवहार करते हैं। वास्तव में अगर सार्वजनिक बहस को अन्य बदलावों की कीमत पर अकेले पोर्टेबिलिटी की तरफ धकेल दिया जाएगा तो इससे ग्राहकों को नुकसान होगा। बैंक अकाउंट पोर्टेबिलिटी के मुकाबले अन्य बदलाव कहीं ज्यादा जरूरी हैं। आइए, जरा पीछे चलते हैं और यहां तमाम तरह की संभावनाओं की पड़ताल करते हैं। हर कोई क्यों सोच रहा है कि एक मोबाइल ऑपरेटर को छोड़कर दूसरे को अपनाना ही विकल्प है?

दरअसल, फ्री-मार्केट इकोनॉमी में रहते हुए आप लगातार एक वस्तु या सेवा के आपूर्तिकर्ता को दूसरे के साथ बदलते या पोर्ट किया करते हैं। पिछले एक आध साल में पसंदीदा ई-कॉमर्स साइट से लेकर आइएसपी और कार सर्विस सेंटर से लेकर शर्ट ब्रांड तक में मैंने कई को बदला। विक्रेताओं के बीच चयन करना और एक से दूसरे में स्विच करना स्वतंत्र बाजार का चरित्र है। इसमें उपभोक्ताओं को अच्छी सेवा प्राप्त करने का मौका मिलता है। अगर आप देखते हैं कि उत्पाद या सेवाओं से आप संतुष्ट हैं, तो पोर्टिंग की आसानी के साथ उसका सीधा संबंध होगा।

हालांकि, पोर्टिंग की आसानी में पहला कदम स्विचिंग के लिए तंत्र या अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया नहीं है। इसके पहले दो अन्य चीजों की जरूरत है। पहला, पारदर्शी रूप से जानकारी की उपलब्धता जिस आधार पर उपभोक्ता एक विकल्प चुन सके। दूसरा, उन विकल्पों का होना जो स्पष्ट तौर पर बेहतर हों। क्या इन स्थितियों में से कोई भी भारतीय बैंकों के मामले में मौजूद है? कतई नहीं। मुंद्रा ने जो कहा मैं उसकी सराहना करता हूं, लेकिन आरबीआइ दोनों पूर्व शतोर्ं में से किसी एक को भी प्रभावी बनाने में पूरी तरह विफल रहा है जो पोर्टेबिलिटी को व्यावहारिक रूप से सफल बनाने के लिए आवश्यक हैं।

बतौर ग्राहक, क्या मैं सभी संभव शुल्क, जुर्माने और फीस की एक भी समेकित सूची प्राप्त कर सकता हूं जो कि पूरा होने की गारंटी देती हों? अगर बैंक मनमाने ढंग से फीस बढ़ाते हैं तो क्या वे मेरे साथ इस तरह का ताजा समझौता करेंगे जिसे इन्कार कर देने का मेरे पास अधिकार हो? क्या हमारे पास ऐसा सिस्टम हो सकता है जिससे बैंक मेरे पैसे नहीं काट सकते हैं जब तक कि मैं अनुमति न दूं?

वास्तव में हमें बैंकिंग कानूनों में एक बुनियादी बदलाव की दरकार है ताकि जब भी किसी बैंक को किसी शुल्क की वसूली करनी हो तो वे आपको बिल भेजें और आप उस बिल का भुगतान करें। उन्हें आपका पैसा काट लेने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए, जैसा कि अन्य व्यवसायों के साथ है। यह सिर्फ शुरुआती बिंदु हैं। इस तरह के कई अन्य मुद्दे हैं।

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