Murgi Palan : मुर्गी पालन से कैसे होगा बंपर मुनाफा? चारे में मिलाना होगा ये बीज, चिकन में दिखने लगेगा असर
Murgi Palan मुर्गी पालन से बंपर कमाई हो सकती है। इसके लिए बस एक काम करना होगा। दरअसल एक रिसर्च में पाया गया है कि मुर्गी चारा (पोल्ट्री फीड) में कुसुम के बीज मिलाने से चिकेन की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। कुसुम के बीज में अन्य पोषक तत्व और एंटी आक्सीडेंट्स भी होते हैं। यह मुर्गियों में स्वास्थ्य वृद्धि विकास और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। मुर्गी चारा (पोल्ट्री फीड) में कुसुम के बीज मिलाने से चिकेन की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र राय के निर्देशन में यह शोध बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के डेयरी साइंस एंड फ़ूड टेक्नोलाजी विभाग में हुआ है।
शोधार्थी अमन राठौर के शोध में कुसुम बीज में मौजूद ओमेगा 6, फैटी एसिड, प्रोटीन पोल्ट्री फीड में शामिल करने से चिकेन के मांस की पौष्टिकता के बेहतर होने के वैज्ञानिक प्रमाण मिले हैं। इसके अलावा कुसुम के बीज में अन्य पोषक तत्व और एंटी आक्सीडेंट्स भी होते हैं।
यह मुर्गियों में स्वास्थ्य वृद्धि, विकास और समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। कुलपति प्रो. दिनेश चंद्र राय की देख-रेख में कुसुम के बीज को 10 प्रतिशत तक पोल्ट्री फीड में समावेश किया गया। यह शोध ब्रायलर चिक्स कब्ब 400 स्ट्रेन पर विभाग के पोल्ट्री फार्म में एक से 42 दिन तक किया गया।
200 चिक्स को विभन्न स्तर पर 5 भागों में बांटा गया
इसमें 200 चिक्स को विभन्न स्तर पर 5 भागों में बांटा गया। शोध में पाया गया कि कुसुम के बीज का 10 फीसदी तक प्रयोग करने से ब्रायलर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ा। फीड में इसका प्रयोग करने से ब्रायलर के वजन में वृद्धि हुई और चारा उपभोग कम हुआ। परीक्षण में पेट की चर्बी का स्तर कम होता हुआ पाया गया।
आहार में कुसुम बीज अनुपूरण के बढ़ते स्तर ने ब्रायलर के रक्त में कोलेस्ट्राल, कम घनत्व वाले लिपो प्रोटीन कोलेस्ट्राल, ट्राइग्लिसराइड, बहुत कम घनत्व वाले लिपो प्रोटीन कोलेस्ट्राल स्तरों को कम किया। शोध में ब्रायलर में क्रिएटिनिन और यूरिक एसिड भी रक्त में कम होते पाए गए।
उत्पादकों को अधिक मुनाफा होगा
कुलपति प्रो. दिनेश चन्द्र राय ने बताया कि किसान और पोल्ट्री उत्पादक अब चिकेन की समग्र गुणवत्ता में सुधार के लिए कुसुम के बीजों को अपने फ़ीड फार्मुलेशन में शामिल कर रहे हैं। यह सरल जोड़ अंतिम उत्पाद में बड़ा अंतर ला सकता है।
इससे ग्राहकों की संतुष्टि में वृद्धि होगी और उत्पादकों के लिए संभावित रूप से अधिक मुनाफा होगा। यह शोध कार्य एडिनबर्ग विश्वविद्यालय यूके के जर्नल ट्रापिकल एनिमल हेल्थ एंड प्रोडक्शन, स्प्रिंगर (इम्पैक्ट फैक्टर 1.7) व इंडियन जर्नल आफ एनिमल रिसर्च (इम्पैक्ट फैक्टर 0.5) और एनिमल न्यूट्रिशन एंड फीड टेक्नोलाजी (इम्पैक्ट फैक्टर 0.29) जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध शोध जर्नलों में प्रकाशित हुआ है।
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