नए साल से आरबीआई नोट प्रबंधन की नई व्यवस्था लागू करने में जुटा, सुधरेगी नोटों की किल्लत
नई व्यवस्था के तहत बाजार में पर्याप्त मात्र में 50 व 20 रुपये के नोटों की आपूर्ति सुनिश्चित करना है
नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। नए नोटों की किल्लत कब तक पूरी तरह खत्म होगी, यह कहना तो संभव नहीं है लेकिन इतना तय है कि नए साल में नोट प्रबंधन की पूरी नई व्यवस्था काम करने लगेगी। भारतीय रिजर्व बैंक इसके लिए सरकार के साथ मिलकर नई व्यवस्था को तैयार करने में जुटा हुआ है। नई व्यवस्था के तहत बाजार में पर्याप्त मात्र में 50 व 20 रुपये के नोटों की आपूर्ति सुनिश्चित करने, बाजार में पुराने नोटों के बदले लगातार साफ सुथरे नोट पहुंचाने, दूर दराज के इलाके में स्थित एटीएम व बैंक शाखाओं में सीधे करेंसी चेस्टों से शीघ्रता से पहुंचाना तय किया जाएगा।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक वर्ष के अंत तक नई व्यवस्था का पूरा खाका तैयार हो जाएगा। इस बारे में नए वर्ष में रिजर्व बैंक की तरफ से घोषणा होने की उम्मीद है। दरअसल, तब तक सरकार के सामने नोट बंदी की पूरी तस्वीर भी होगी और उस हिसाब से आगे क्या करना है, इसका फैसला भी किया जा सकेगा। लेकिन इतना तय है कि अब केंद्रीय बैंक के लिए नोट प्रबंधन एक बड़ी समस्या नहीं रहेगी क्योंकि उसे पहले के 17.5 लाख करोड़ रुपये के बजाय सिर्फ 9-10 लाख करोड़ रुपये का प्रबंधन करना होगा। बाजार में कम मुद्रा होने की वजह से ही आरबीआई का काम काफी आसान हो जाएगा। मसलन, उसे अब नोटों की छपाई पर कम पैसा खर्च करना पड़ेगा। यही नहीं नकदी को प्रिटिंग प्रेस से बैंक शाखाओं और एटीएम में पहुंचाने पर भी कम खर्च होगा।
नोट बंदी लागू होने के समय प्रचलन में तकरीबन 17.5 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा थी। इनमें 14.50 लाख करोड़ रुपये के 1000 व 500 के नोट रद्द किये जा चुके हैं। जबकि बाजार में अभी तक 5 लाख करोड़ रुपये के नए नोट जारी हो चुके हैं। इस तरह से बाजार में अभी तकरीबन 7.50 लाख करोड़ रुपये के नोट प्रचलन में है। सरकार की मंशा है कि अब 10 लाख करोड़ रुपये से यादा की रकम प्रचलन में न हो। वित्त मंत्रलय के अधिकारियों के मुताबिक 10 लाख करोड़ रुपये की नकदी का प्रचलन भी विकसित देशों की तुलना में यादा है क्योंकि अभी तक भारत में जितने वित्तीय लेनदेन होते थे, उसका 90 फीसद नकदी में होता था जो नई व्यवस्था में यह घटकर 60 फीसद के करीब रह जाएगा। लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ जैसे देशों में यह औसतन 30-40 फीसद के करीब है। बहरहाल, नई व्यवस्था के तहत बाजार में 100, 50 व 20 रुपये के नोटों की संख्या तेजी से बढ़ाई जाएगी।