बिहार में सियासत नहीं, अभी तो पानी और हरियाली की बात कीजिए

बिहार में आजकल राजनीति नहीं सिर्फ पानी और हरियाली की बात हो रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल जल-जीवन-हरियाली यात्रा पर बिहार के प्रत्येक जिले में भ्रमण कर रहे हैं।

By Kajal KumariEdited By: Publish:Sat, 11 Jan 2020 03:53 PM (IST) Updated:Sat, 11 Jan 2020 10:13 PM (IST)
बिहार में सियासत नहीं, अभी तो पानी और हरियाली की बात कीजिए
बिहार में सियासत नहीं, अभी तो पानी और हरियाली की बात कीजिए

 बिहार (मनोज झा, स्थानीय संपादक)। चुनाव और राजनीति से इतर प्रदेश के चुनावी साल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिस शिद्दत से पूरे प्रदेश में जल, जीवन और हरियाली के मिशन पर निकले हैं, वह सियासी पंडितों को थोड़ा चौंका जरूर रहा है। चौंकने की वजहें भी हैं। पहले महाराष्ट्र और अभी पिछले दिनों झारखंड में विपक्षी एकता ने जिस तरह राजनीतिक गलियारे में चीजों को उलट-पुलट कर दिया, उससे अब तमाम निगाहें दिल्ली और बिहार पर आ टिकी हैं।

दिल्ली में तो खैर अगले माह चुनाव है और वहां की तस्वीर करीब-करीब साफ है। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधा मुकाबला होने के आसार हैं।

दूसरी ओर, बिहार का चुनावी परिदृश्य न सिर्फ काफी रोचक दिखाई दे रहा है, बल्कि अभी चुनाव की घोषणा तक कई सियासी समीकरण बन और बिगड़ भी सकते हैं। विपक्ष में खींचतान शुरू होती भी दिखाई देने लगी है। ऐसे माहौल में यदि प्रदेश का मुखिया चुनावी तैयारियों से दूर पानी, पेड़ और जीवन बचाने-संवारने की बात करे तो निश्चित रूप से यह थोड़ा लीक से हटकर तो है ही।

दरअसल, सियासत के नये तौर-तरीकों में आज वह सब कुछ शुमार नहीं है, जो नीतीश कुमार या उनकी तरह के अन्य नेता सोचते या करते हैं। राजनीति को समाज सुधार का माध्यम बनाने का चलन तो पता नहीं कितना पुराना और अरुचिकर-सा हो गया है। इस मामले में बाकी राजनेताओं से नीतीश थोड़े अलग दिखाई देते हैं।

वह पिछले 15 साल से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन ऐसा कुछ याद नहीं आता कि उन्होंने इस दौरान कोई बहुत बड़ा राजनीतिक अभियान चलाया हो। इसके उलट, उन्होंने ऐसे कई कदम जरूर उठाए हैं, जिनकी बदौलत सामाजिक क्षेत्र में बदलाव दिखाई देने लगा है। चर्चित शराबबंदी के फैसले को छोड़ भी दें तो पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण और बालिका शिक्षा के क्षेत्र में उनकी ठोस पहल ने प्रदेश में आधी आबादी की तस्वीर को एक हद तक संवारने का प्रयास किया है।

इसी प्रकार दहेज प्रथा, बाल विवाह को लेकर शासन के कड़े रुख ने कुछ नहीं तो कम से कम माहौल जरूर बदला है। अब ताजातरीन उदाहरण जल, जीवन और हरियाली मिशन का है। इसमें कोई शक नहीं कि पानी और हरियाली पर आज चौतरफा संकट है, लेकिन दिक्कत यह है कि भारत जैसे देश में वोटबैंक सहेजने या चुनाव जीतने के लिए ये मुद्दे अनुत्पादक ही कहे जाएंगे।

यही कारण है कि पर्यावरण पर लाख संकट के बावजूद शायद ही कोई राजनेता हो, जिनकी सभा में पानी और हरियाली जैसे विशद विषयों की गूंज सुनाई पड़ती हो। नीतीश लीक से हटकर थोड़े इसलिए दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि वह पिछले करीब तीन माह से पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर इस मिशन का प्रचार-प्रसार करने में लगे हैं। इन दिनों उनकी जनसभाओं पर गौर करें।

घंटे भर के भाषण में राजनीति, चुनाव, सीएए, एनआरसी जैसे मुद्दों की परछाई तक नहीं दिखाई देती है। वह सिस्टम से लेकर जनता तक को सिर्फ यही बताते-समझाते नजर आते हैं कि पानी और हरियाली को बचाइए, अन्यथा जीवन संकट में फंस जाएगा।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री इस अभियान के तहत अब तक दर्जनों गांव गए, वहां जलाशयों की सेहत देखी और खुद के साथ-साथ लोगों को भी इनके संरक्षण का संकल्प दिलाया।

सवाल है कि क्या नीतीश प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव को लेकर बेफिक्र हैं। बेफिक्र न भी हों, लेकिन पर्यावरण जैसे गैर-सियासी सवालों से जूझकर वह साहस तो दिखा ही रहे हैं। उन्हें पता है कि बिहार जैसे जटिल सियासी परिदृश्य वाले प्रदेश में पानी और हरियाली चुनाव के नैरेटिव नहीं बन सकते, बावजूद उनके प्रति बारंबार आसक्ति दिखाना यह बताता है कि इतिहास में ऐसी ही जिद और जुनून की बदौलत चीजें बदली हैं, सुधरी हैं।

शराबबंदी, छात्राओं को साइकिल या फिर पंचायत में महिला आरक्षण जैसे उनके फैसले राष्ट्रीय सुर्खियों में भी रहे। इनके नतीजों ने मुख्यमंत्री को एक हद तक ताकत भी दी है। हालांकि यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि जल, जीवन, हरियाली मिशन किस मुकाम तक पहुंच पाता है और इसके क्या-क्या नतीजे सामने आते हैं, लेकिन इतनी बात तो है ही कि घोर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और दूषण के इस दौर में पर्यावरण की इस स्तर तक जाकर चिंता करना उन्हें भीड़ से अलग तो करता ही है।  

जहां तक विधानसभा चुनाव की बात है तो फिलहाल यह स्पष्ट दिख रहा है कि बिहार में नीतीश की अगुआई में एनडीए का विपक्ष के महागठबंधन से सीधा मुकाबला होगा। एनडीए में तस्वीर एक हद साफ है। फिलहाल किसी प्रकार का कोई विवाद भी नहीं दिखाई देता है।

दूसरी ओर, विपक्ष का कुनबा महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी नतीजों से खुद की हौसलाअफजाई तो जरूर कर सकता है, लेकिन वहां चीजें तय करने में कब महाभारत छिड़ जाए, कहा नहीं जा सकता। वहां खटपट सुनाई भी पडऩे लगी है।

विपक्षी खेमे में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के नेता जीतनराम मांझी जैसे किरदार कब किस ओर पलट जाएं, किस पर निशाना साध लें, कहा नहीं जा सकता। इसी प्रकार विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया मुकेश सहनी कहां हैं और उनकी चुनावी तैयारियां क्या हैं, कोई नहीं जानता।

जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू यादव किसके पक्ष में कितना जोर लगाएंगे, कुछ पता नहीं। क्या इस बात की अभी कोई गारंटी दे सकता है कि मांझी, सहनी या पप्पू जैसे नेता महागठबंधन के अगुआ के तौर पर तेजस्वी यादव को हंसी-खुशी स्वीकार कर लेंगे। फिर इस बात की कौन गारंटी लेगा कि इस बार सीटों को लेकर कांग्रेस और राजद में टूट जाने की हद तक खींचतान नहीं होगी। मतलब कि एनडीए के सामने विपक्ष कितना एकजुट रह पाएगा, इसका अंदाजा कम से कम इस समय तो नहीं ही लगाया जा सकता।

फिलहाल चुनाव तैयारियों और गहमागहमी से दूर मुख्यमंत्री प्रदेश में पानी और हरियाली की अलख जगाने में लगे हुए हैं। कायदे की बात तो यह है कि इस मिशन को एक बार गैर-सियासी चश्मे से देखा जाए और पानी और हरियाली की चिंता से पूरे समाज को जोड़ा जाए।

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