Bihar News: बक्‍सर और सिवान के मंदिरों में भाई-बहन की होती है पूजा; भैया-बहिनी पुल की है अलग ही कहानी

Rakshabandhan 2022 भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है सिवान का भैया-बहिनी मंदिर मुगल शासन काल में सिपाहियों से अपनी आबरू बचाने को धरती के गर्भ में समाहित हो गए थे भाई-बहन मंदिर प्रांगण में हैं दो वट वृक्ष जिन्हें माना जाता है भाई-बहन का प्रतीक

By Shubh Narayan PathakEdited By: Publish:Fri, 12 Aug 2022 11:08 AM (IST) Updated:Fri, 12 Aug 2022 11:17 AM (IST)
Bihar News: बक्‍सर और सिवान के मंदिरों में भाई-बहन की होती है पूजा; भैया-बहिनी पुल की है अलग ही कहानी
सिवान जिले के दारौंदा में है भैया-बहिनी मंदिर। जागरण

बक्‍सर/सिवान, जागरण टीम। Raksha Bandhan 2022: आपने तमाम देवी- देवताओं के मंदिर देखे होंगे, लेकिन बिहार के बक्‍सर और सिवान जिले में दो अनोखे मंदिर हैं। सिवान के दारौंदा प्रखंड के भीखा बांध में भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक भैया बहिनी मंदिर है। बक्‍सर जिले के चौसा में भी इसी नाम का एक मंदिर है। इस मंदिर से ठीक सटे बक्‍सर-चौसा स्‍टेट हाइवे पर एक पुल है, जिसे भैया-बहिनी पुल के नाम से जाना जाता है। इन दोनों मंदिरों के बारे में लोक कथाएं प्रचलित हैं। दोनों मंदिरों के पीछे लगभग एक जैसी और लगभग एक ही समय की कहानी सुनाई जाती है। 

सिवान के भैया-बहिनी मंदिर में रक्षाबंधन के दिन पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। इस मंदिर के प्रांगण में दो वट वृक्ष हैं। इन वृक्षों के प्रति लोगों की काफी आस्था है और रक्षाबंधन के दिन दूर-दराज से यहां ग्रामीण पहुंच कर पूजा-अर्चना करते हैं। देखने से ये दोनों वृक्ष ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे एक-दूसरे की रक्षा कर रहे हैं।  मंदिर के प्रति सोनार जाति के लोगों की विशेष आस्था है, इसलिए  रक्षाबंधन के दो दिन पूर्व हर वर्ष पूजा सोनार जाति द्वारा विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। 

धरती के गर्भ में समाहित हो गए थे भाई-बहन

लोक कथाओं में प्रचलित है कि मुगल शासन काल में एक भाई अपनी बहन की विदाई करा उसे डोली में लेकर भभुआ अपने घर जा रहा था। इसी दौरान दारौंदा के भीखाबांध गांव समीप मुगल सिपाहियों ने उसकी बहन की सुंदरता देखकर डोली रोक उसके साथ दुर्व्‍यवहार करने का प्रयास किया।

यह देख बहन की रक्षा के लिए उसका भाई सिपाहियों से उलझ गया। पीड़ि‍त बहन ने अपने आप को असहाय महसूस करते हुए भगवान का स्मरण किया। उसी समय धरती फटी और भाई-बहन दोनों धरती के गर्भ में समाहित हो गए। डोली उठा रहे कुम्हारों ने वहीं पास में मौजूद कुएं में कूद कर जान दे दी। 

दो वट वृक्ष कई बीघा में फैल गए 

कुछ दिनों बाद यहां एक ही स्थल पर दो वट वृक्ष हुए जो कई बीघा जमीन पर फैल गए। वृक्ष ऐसे दिखाई देते हैं लगता है कि एक-दूसरे की सुरक्षा कर रहे हों। इसके बाद इस वट वृक्ष की पूजा शुरू हो गई। शुरुआत में सोनार जाति के लोग पूजा-अर्चना करते थे। इसकी महत्ता बढ़ने के साथ यहां एक मंदिर का निर्माण हुआ।

मंदिर प्रांगण में मौजूद पेड़ को भाई-बहन का प्रतीक माना गया और इसकी भी पूजा-अर्चना शुरू की गई। बताया जाता है कि यहां जो भी श्रद्धालु पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि दोनों भाई-बहन सोनार जाति के थे, इसलिए सबसे पहले इसी जाति के लोगों द्वारा मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है।  

अतिक्रमण का शिकार भैया बहिनी मंदिर परिसर 

भैया बहिनी मंदिर परिसर में पूर्व से करीब पांच बीघा क्षेत्र में यह वट वृक्ष फैला हुआ है, परंतु प्रशासनिक अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों एवं गणमान्य व्यक्ति द्वारा लापरवाही  का नतीजा हुआ कि धीरे- धीरे वट वृक्ष अब कुछ ही कट्ठा में सिमट कर रह गया। पुजारी मुकेश उपाध्याय ने बताया कि मंदिर की महिमा अपार है, लेकिन देखरेख के अभाव में अतिक्रमण दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

ग्रामीणों ने बताया कि यहां अतिक्रमण के कारण वट वृक्ष कुछ कट्ठा में सिमट कर रह गया है। इस मंदिर परिसर में निजी प्राथमिक विद्यालय, उच्च विद्यालय एवं पंचायत भवन, दुकान रख कर अतिक्रमण कर लिया गया है। वट वृक्ष का काफी हिस्‍सा कट जाने से वीरान दिखने लगा है। ग्रामीणों ने प्रशासन से इस मंदिर एवं वटवृक्ष की ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की मांग की है। 

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